नई दिल्ली। कांग्रेस ने सरकार से कहा है कि वह देश को बताए कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने की प्रक्रिया कब और किस तरह से चली तथा नवनियुक्त मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस को कब विधानसभा में बहुमत साबित करना है।
कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीपसिंह सुरजेवाला ने शनिवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 23 नवंबर का दिन लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन के रूप में जाना जाएगा, जब महाराष्ट्र में अवसरवादी अजीत पवार को जेल की सलाखों का डर दिखाकर सत्ता के लिए ‘अंधी’ भारतीय जनता पार्टी ने प्रजातंत्र की हत्या की और जनादेश के साथ विश्वासघात किया है।
उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब अंधेरी रात में राज्यपाल ने कानून की धज्जियां उड़ाईं और ‘अवैध’ रूप से महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने की प्रक्रिया पूरी की। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान रौंदने की यह सारी ‘अवैध प्रक्रिया’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पूरी की है।
प्रवक्ता ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के संबंध में भाजपा, मोदी और शाह से सवाल किया कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा कब और किसने पेश किया। सरकार बनाने के दावे पर भाजपा तथा राकांपा के कितने विधायकों के हस्ताक्षर थे और राज्यपाल ने उनके हस्ताक्षरों को रात के अंधेरे में एक घंटे में कब और कैसे प्रमाणित किया।
इसके साथ ही उन्होंने पूछा कि राज्यपाल ने केन्द्र सरकार को राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा कितने बजे की और केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक इसको लेकर रात कितने बजे हुई और बैठक में कौन-कौन मंत्री मौजूद थे। मंत्रिमंडल ने कितने बजे राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से की थी।
सुरजेवाला ने कहा कि मोदी तथा शाह की तरफ से देश की जनता को यह भी जानकारी मिलनी चाहिए कि मंत्रिमंडल की महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति को कितने बजे भेजी गई और राष्ट्रपति ने मंत्रिमंडल की राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा को कितने बजे स्वीकार किया। फडनवीस तथा अजीत पवार को राज्यपाल ने शपथ के लिए किस पत्र द्वारा और कितने बजे आमंत्रित किया।
उन्होंने पूछा कि सरकार यह भी बताए कि शपथ कितने बजे हुई और एक निजी न्यूज एजेंसी को छोड़कर दूरदर्शन सहित किसी भी मीडियाकर्मी को तथा राजनीतिक दलों, महाराष्ट्र के प्रशासनिक अधिकारियों, वहां के प्रबुद्ध नागरिकों और महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को परंपरा के अनुसार मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में क्यों नहीं बुलाया गया।
प्रवक्ता ने कहा कि फडनवीस को शपथ दिलाने के बावजूद भी राज्यपाल ने अब तक यह क्यों नहीं बताया कि फणनवीस सरकार बहुमत कब साबित करेगी। उन्होंने कहा कि सवाल यह भी है कि लोकतंत्र का चीरहरण इस तरह से कब तक होता रहेगा। उन्होंने कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, गोवा, मणिपुर, हरियाणा और उत्तराखंड के बाद अब महाराष्ट्र में भी संविधान की धज्जियां उडाई गईं हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन हटाने की एक प्रक्रिया होती है और इसमें राज्यपाल को संतुष्ट होकर ही नयी सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है लेकिन महाराष्ट्र में इस परंपरा की धज्जियां उड़ाई गई हैं। पहली बार किसी मुख्यमंत्री को चोरी छिपे पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गई है। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मर्यादाओं की परवाह किए बिना केंद्र की कठपुतली बनकर संविधान को रौंदने का काम किया है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि उनको मिली सूचना के अनुसार कोई विधायक राज्यपाल के पास सरकार के समर्थक विधायक के रूप में नहीं गया है तो राज्यपाल ने किस आधार पर नई सरकार का गठन किया। फडनवीस ने पहले भी कहा था उनके पास बहुमत नहीं है और जिन 36 विधायकों के समर्थन देने की बात की गई है, उनके हस्ताक्षर का कोई मिलान नहीं किया गया है तो किस आधार पर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
सुरजेवाला ने कहा कि किसी राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने की एक प्रक्रिया होती है जिसके तहत पहले मंत्रिमंडल की बैठक होती है तथा उसके बाद अनुशंसा होती है और फिर राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के फैसले से अवगत कराया जाता है। राष्ट्रपति से अनुशंसा होती है जिसे राज्यपाल को भेजा जाता है फिर राष्ट्रपति शासन वापस लेने की अनुशंसा की जाती है। इस क्रम में दावा करने वाले पक्ष को भी चिट्ठी जाती है लेकिन एक रात में और वह भी तीन घंटे के भीतर यह सारी प्रक्रिया पूरी की गई। इतनी कम अवधि में इस प्रक्रिया को पूरा कना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तरफ से सरकार के गठन को लेकर प्रक्रिया लगातार जारी रही है। प्रदेश तथा लोकतंत्र के हित में न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय करने जैसे कई काम पूरे किए जाने थे जिनको करना आवश्यक था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के विधायक मजबूती से पार्टी के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि वहां जिस तरह से सरकार का गठन किया गया है, उसके बहुमत का निर्णय विधानसभा के पटल पर तो होगी ही लेकिन अदालत में इस बात का निर्णय होगा कि सरकार का गठन कानून सम्मत है या नहीं।