राजस्थान सरकार ने वैपिंग (ई-सिगरेट) के स्वास्थ्य पर असर के आकलन के लिए एक अध्ययन कराने का ऐलान किया है। ई-सिगरेट यूजर्स का प्रतिनिधित्व करने वाले एक राष्ट्रीय संगठन एसोसिएशन ऑफ वैपर्स इंडिया (एवीआई) ने राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।
राज्य सरकार ने गैर तम्बाकू उत्पादों के भविष्य पर कोई फैसला लेने से पहले यह कदम उठाया है। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री कालीचरण सराफ ने गुरुवार को राज्य सरकार के इस फैसले की घोषणा की थी। सराफ ने कहा कि यदि अध्ययन में इसे (ई-सिगरेट) नुकसानदेह पाया जाता है तो राज्य में इस पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
एवीआई ने मीडिया को उन लोगों के बारे जानकारियां मुहैया कराने की पेशकश की है, जिन्होंने तम्बाकू की सिगरेट छोड़कर ई-सिगरेट अपनाकर फायदा उठाया है। एसोसिएशन ने मंत्री से मिलकर वैश्विक स्तर पर हुए प्रतिष्ठित संगठनों द्वारा ई-सिगरेट के स्वास्थ्य पर प्रभाव से संबंधित 100 से ज्यादा अध्ययन को उनके साथ साझा करने की पेशकश की है।
एवीआई के निदेशक सम्राट चौधरी ने कहा, ‘हमारा मानना है कि तम्बाकू से होने वाले नुकसान में कमी के वास्ते विज्ञान आधारित सोच से भारत और राज्य में धूम्रपान करने वालों के जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा। हमारा राज्य सरकार से इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (ईएनडीएस), जिसे इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के तौर पर भी जाना जाता है, पर नीति तैयार करते समय विज्ञान आधारित तथ्यों को संज्ञान में लेने का अनुरोध है।’
चौधरी ने कहा कि ई-सिगरेट एक तकनीक विकास है, जिससे तम्बाकू उत्पादों के सेवन से होने वाले नुकसान में 95 प्रतिशत तक कमी आती है। उन्होंने कहा कि वैपिंग के विकल्प को अनुमति देना भारत में 12 करोड़ स्मोकर्स के जीवन की रक्षा के लिहाज से अहम होगा। उन्होंने कहा कि अगर ई-सिगरेट जैसे कम जोखिम वाले विकल्पों तक पहुंच से इनकार कर दिया जाता है तो इनमें से आधे स्मोकर्स की जान जाने की संभावनाएं पैदा हो सकती हैं।
चौधरी ने कहा कि वैज्ञानिक समुदाय में तुलनात्मक रूप से ईएनडीएस के ज्यादा सुरक्षित होने पर सहमति है। इस तथ्य को रॉयल चौलेंज फिजीशिएंस, यूकेय पब्लिक हेल्थ इंग्लैंडय नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग मेडिसिन, यूएसएय कैंसर रिसर्च यूके और अमेरिकन कैंसर सोसायटी सहित कई ने स्वीकार किया है।
निकोटिन के लोग आदी हो जाते हैं, जो तम्बाकू के जलने से पैदा होने वाला टार होता है। यह स्मोकर्स के लिए नुकसानदेह होता है। ई-सिगरेट से टार पैदा नहीं होता है।
इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट में इस्तेमाल होने वाला निकोटिन हर उम्र के लोगों के लिए काउंटर पर बिकने वाले निकोटिन गम और पैचेस में इस्तेमाल होने वाली निकोटिन रिप्लेसमेंट थेरेपीज (एनआरटी) की तरह होता है। चौधरी ने कहा कि एनआरटी की सफलता की दर कम होती है, समाप्ति दर महज 7 प्रतिशत होती है, वहीं वैपिंग 60 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में प्रभावी होती है।
एवीआई के पदाधिकारी ने कहा कि तम्बाकू सिगरेट के मामले में पैसिव स्मोकिंग वास्तविक चुनौती है और इससे बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारियों का जोखिम बढ़ता है, वहीं ईएनडीएस का अनचाहा जोखिम खासा कम होता है।
चौधरी ने ‘गेटवे थ्योरी’ का उल्लेख किया, जिसमें ईएनडीएस से तम्बाकू के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलने जैसे अध्ययन खारिज कर दिए गए हैं। एवीआई निदेशक ने कहा कि इसके विपरीत ई-सिगरेट जैसे सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा देने वाले देशों में धूम्रपान करने वालों की संख्या में तेजी से कमी आई है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर वैपिंग के सकारात्मक प्रभाव का प्रमाण है।
चौधरी ने कहा, ‘ईएनडीएस पर प्रतिबंध से तम्बाकू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, अवैध कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा और सुरक्षित माकनों के अभाव में ईएनडीएस के यूजर्स के लिए जोखिम बढ़ जाएगा। साथ ही तम्बाकू छोड़ने और नुकसान में कमी से जुड़े क्षेत्र में स्वदेशी नवाचार और विकास के लिए यह एक बड़े झटके के समान होगा।’