जयपुर। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिंदंबरम ने कहा कि कोरोना काल में केंद्र सरकार की केंद्रीकृत व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है और सच्चे लोकतंत्र में केंद्रीकरण नहीं होना चाहिए। जिसकी वजह से हमारे वैकसीनेशन कार्यक्रम पर असर पड़ा और वैक्सीन खरीद पर फैसला लेने में देरी हुई।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चिदंबरम ने आज जयपुर में विधानसभा में वैश्विक महामारी और लोकतंत्र की चुनौतियां विषय पर सेमीनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि वैक्सीन राष्ट्रवाद के चलते यूरोप के कुछ देशों ने हमारी कोवैक्सिन को अनुमति दी।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए कई देशों ने अपनी जनता के लिए भारी संख्या में विदेशी वैक्सीन खरीदी। उनका कहना था कि कई देशों ने तो दोगुनी और तिगुनी संख्या में वैक्सीन खरीदी और इसका नतीजा रहा की भूटान जैसा छोटा देश तो वैक्सीन ले ही नहीं पाया।
चिदंबरम ने कहा कि हमें इस महामारी के दौरान उभरे कई सवालों के जवाब खोजने होंगे, इसे क्या कहा जाए और क्या समझा जाए? क्या देश की सरकार ऐसे हालात में गरीबों, वंचितों के जीवन की रक्षा कर पाई? इस सवाल के जवाब कई बार एक-दूसरे को काटते दिखेंगे। लेकिन गरीब, वंचित वर्ग को बचाने और उसके उत्थान के लिए हमें इन सवालों का जवाब खोजना ही होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की सबसे डरावनी बात यह है कि किसी को नहीं पता की यह कब खत्म होगी।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने कहा कि महामारी की वजह से आज करोड़ों लोग वापस गरीबी रेखा के नीचे जाने लगे हैं। दो विचार चल रहे हैं, एक तो लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाकर अर्थवयवस्था में तेजी लाई जाए और दूसरा ज्यादा नोट छापे जाएं। महामारी के वक्त क्यूरेटिव मेजर लिए, प्रिवेंटिव मेजर नहीं लिए। गरीब और दूर दराज के इलाकों में रहने वाले लोग महामारी की चपेट में कम आए।
सेमिनार में प्रतिपक्ष नेता गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में हमारे भी हाथ पांव फूल गए। उन्होंने कहा कि कोरोना के पहले फेज को तो देश पार कर गया, आज तक कोरोना महामारी का सटीक इलाज नहीं मिल रहा था। पहले चरण में लॉकडाउन लगाया तो लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फैसले पर नाराज और आलोचना भी हुई, लेकिन ऐसा नहीं करते तो हमारी हालत भी अमरीका जैसी हो जाती, यह जरुर है कोरोना की दूसरी लहर में हमारे भी हाथ पांव फूल गए।