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Credit war for budget allocation for Polo ground of Mount abu - Sabguru News
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माउंट आबू का एक पोलो ग्राउण्ड, दो-दो उद्धारक!

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माउंट आबू का एक पोलो ग्राउण्ड, दो-दो उद्धारक!
माउंट आबू का पोलो ग्राउंड
माउंट आबू का पोलो ग्राउंड

सबगुरु न्यूज-सिरोही। वित्त एवं विनियोग मांगो पर शुक्रवार को चर्चा के दौरान की गई घोषणाओं के दौरान माउण्ट आबू के पोलो ग्राउण्ड के उद्धार की भी घोषणा की गई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसके लिए 18 करोड़ रुपये की बजट घोषणा की।

इसके बाद इसके उद्धार का श्रेय लेने के लिए दो नेताओं के समर्थक दावे कर रहे हैं। एक सिरोही विधायक संयम लोढ़ा दूसरे विधानसभा के पूर्व उप मुख्य सचेतक रतन देवासी। लेकिन, तीन दशकों से मकान बनाने, टूटे मकानों का पुनर्निर्माण करने, परिवार बढऩे पर मकानों में अतिरिक्त कमरे बनाने, शौचालयों की टॉयलेट शीट लगाने जैसी सुविधाओं से महरूम कर दिए गए माउण्ट आबू के लोगों के बीच ये मुद्दो वोट जुटाउ हो सकता है।

यूं सिरोही विधायक संयम लोढ़ा माउण्ट आबू में अधिकारियों के द्वारा लोगो को सुप्रीम कोर्ट और सरकार द्वारा दी गई राहतों को नहीं पहुंचने देने का मामला उठाते रहे हैं। वहीं रतन देवासी अपने ही बनाए हुए कांग्रेस बोर्ड द्वारा लोगों को राहत दिलवाने के प्रयास करते रहे, ये बात अलग है कि दोनों के ही प्रयासों को स्थानीय अधिकारियों और भाजपा के छोटे नेताओं ने घुटने टिकवा दिए हैं। जिन्हें कंट्रोल करने में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार पूरी तरह से नाकाम रही है।

आबू के लोगों और आबू के विकास के लिये खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कितना संजीदा है इसका पता इसी बात से लग जाता है कि अपने दूसरे कार्यकाल में आबू विकास समिति की बैठक नहीं लिए हैं। अशोक गहलोत सरकार को कथित कांग्रेस नेता के लिमबड़ी कोठी के अवैध निर्माण में सहयोग करके माउंट आबू का दोहन करना है, लेकिन वहां जोनल मास्टर प्लान के माध्यम से विकास और स्थानीय लोगों को राहत देने में परहेज है। इसके विपरित वसुंधरा राजे आबू विकास समिति के माध्यम से आबू के विकास और उनके कार्यकाल में लगाये गए अधिकारी स्थानीय लोगों के प्रति संवेदनशील रहे हैं।

आबू में टूरिज्म के लिहाज से नक्की परिक्रमा यह का आखिरी माइलस्टोन काम वसुंधरा राजे के समय में लगे अधिकारियों ने ही करवाया है। गहलोत सरकार में लगे गौरव सैनी से कनिष्क कटारिया तक के एसडीएम विजन लैस रहे हैं। ये ऐसे उपखण्ड अधिकारी थे जिन्हें ये नहीं पता था कि महात्मा गांधी दिखते कैसे हैं और इन्होंने महात्मा गांधी की जगह अन्य चेहरे की मूर्ति का टेंडर करके, स्थापित करके मुख्यमंत्री से आवरण करवा दिया और उसे कई दिनों तक पहचान तक नहीं पाए।

भ्रष्टाचार में आकंठ डूबने के आरोपों के घिरी नगर पालिका के आयुक्त और स्थानीय उपखण्ड अधिकारी अशोक गहलोत सरकार के चार सालों में कथित ‘जयपुर सरकार’ के द्वारा आ रहे आदेशों पर लीम्बड़ी कोठी के अवैध निर्माण में इस कदर व्यस्त रहे कि किचन गार्डन पार्किंग निर्माण के CMO के आदेश के बाद भी दो साल पहले की बजट घोषणा में एक ईंट तक नहीं जुड़वा पाए। ऐसे में जिस तरह पिछले चार साल की लापरवाही पूर्ण कार्यप्रणाली रही है उससे पोलो ग्राउण्ड के उद्धार के 18 करोड़ रुपये की राशि से वहां मिट्टी भी हिला पाएंगे ये लग नहीं रहा है।

-पिछली बार भी निरस्त कर दिया था बजट
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 15 वी विधानसभा के अंतिम बजट की तरह ही 11 वी और 13 वी विधानसभा के अंतिम बजट में भी मुक्त हस्त से पैसा लुटाने की घोषणा की थी। दोनों ही बार बुरी हारे। कारण था बदहाल गवर्नेंस के कारण निरंकुश और भ्रष्टाचारी हो चुके अधिकारी।

इस बार पहले से भी बदतर हालात हैं, तो 120 सीटों को साधने के लिए जारी किए गए इस बजट से उन्हें कुछ राहत मिल जाए ऐसा मुश्किल लगता है। ऐसा हुआ तो 13 वी विधानसभा के अंतिम बजट में जिस तरह माउण्ट आबू के किचन गार्डन पार्किंग के लिए जारी किए गए 10 करोड़ रुपये की राशि को सरकार बदलने पर निरस्त कर दिया गया था वैसा ही हाल इस राशि का भी नहीं होवे।

-सिरोही को ये मिला
यूं सिरोही विधानसभा पर इस बार भी भरपूर मेहरबानी दिखाई है। सिरोही के विधि महाविद्यालय पीजी क्रमोन्नत किया गया है। इसकी मांग संयम लोढ़ा ने मुख्यमंत्री से की थी। सिरोही पीजी महाविद्यालय में एमीबीए पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। शिवगंज में पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय खुलेगा। सिरोही रोडवेज बस स्टेण्ड का जीर्णोद्वार करने की भी घोषणा की गई है। वाण व सिलदर में में 33 केवी जीएसएस स्थापित किए जाएंगे। इसी तरह मातरमाता एवं वाडाखेडा सिरोही वन रेंज में वृक्षारोपण व वन्यजीव का संरक्षण कार्य  की घोषणा की गई। वाण फलिया स्कूल से अणदौर  तथा मडिया सिरोही से पावटी जालोर 5-5 किमी सडक के लिए 2 करोड 10 लाख अलग-अलग घोषणा की गई है।
– फिर ठगे गए पिण्डवाड़ा और रेवदर के मतदाता
जाति, धर्म और पार्टियों के बंधुआ मजदूर बनकर मतदान करने का दंश रेवदर और पिण्डवाड़ा-आबू  विधानसभा के मतदाता झेल रहे हैं। मुख्य बजट और वित्त विनियोग घोषणाओं में जहां सिरोही विधानसभा पर बारिश कर दी तो रेवदर और पिण्डवाड़ा आबू विधानसभा पर छींटे डाले।
सिरोही विधानसभा में पंद्रहवी विधानसभा में कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े संयम लोढ़ा ने बिना जातीय बहुलता के जीत हासिल की। वहीं जातीय बहुलता के आधार पर दूसरे मतदाताओं ने बेहतर केंडिडेट की बजाय पार्टियों के प्रति वफादारी निभाते हुए पिण्डवाड़ा से समाराम गरासिया और रेवदर से भाजपा  जगसीराम कोली को जिताया। दोनों ही भाजपा से हैं।
जीतने के बाद संयम लोढ़ा ने सिरोही विधानसभा में जितना ढांचागत विकास करवाया उतना शायद सिरोही के राजस्थान में विलय के बाद आज तक नहीं हुआ। ये बात अलग है कि कथित रूप से सरकारी कार्यालयों में हर काम संयम लोढ़ा की सहमति के माध्यम से होने  की अघोषित शर्त जो सिरोही विधानसभा पर सरकारी अधिकारियो ने लादी हुई है उसने विधानसभा के उन अस्सी प्रतिशत लोगों को गवर्नेंस से दूर कर दिया जो अपने काम करवाने के लिए संयम लोढा  पहुंच नहीं सके।
समाराम गरासिया और जगसीराम कोली इस बार भी अपने क्षेत्र में ढांचागत विकास नहीं करवा पाए। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में ऐसा हुआ है। गरासिया लगातार दो बार और कोली चौथी बार के विधायक हैं। ये लोग भाजपा शासन में भी अपने क्षेत्र में इतना ढांचागत विकास नहीं करवा जितना अकेले इस बार सिरोही विधानसभा में हो गया।
भ्रष्टाचार और गवर्नेंस के मामले में तो पूरे प्रदेश और सिरोही विधानसभा की तरह इन दोनों विधानसभाओं में समान हाल रहा। अब ये नौ महीने बाद पता चलेगा कि ढांचागत विकास दिखाकर गवर्नेंस से दूर करने के मॉडल को मतदाता जिताते हैं या ढांचागत विकास और गवर्नेंस से महरूम करने को नसीब मान लेते हैं या तीनों ही विधानसभाओं के मतदाता इतने नसीब वाले निकलते हैं कि ढांचागत विकास के साथ-साथ बिना अपनी ड्योडी पर हाजिरी बजवाए गवर्नेंस दिलवाने वाला जनप्रतिनिधि मिलता है।