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MPs और MLAs के खिलाफ मुकदमा हाईकोर्ट की अनुमति के बिना वापस नहीं - Sabguru News
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MPs और MLAs के खिलाफ मुकदमा हाईकोर्ट की अनुमति के बिना वापस नहीं

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MPs और MLAs के खिलाफ मुकदमा हाईकोर्ट की अनुमति के बिना वापस नहीं

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई मुकदमा संबंधित उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं लिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों की स्थापना के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेष अदालतों में सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय के अगले आदेश तक अपने वर्तमान पदों पर बने रहें। उनका तबादला नहीं किया जाएगा। न्यायाधीशों में बदलाव उसी स्थिति में होगा, जब सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति होती है या उनका निधन हो जाता है।

खंडपीठ ने कहा कि पहला मुद्दा मामलों को वापस लेने के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत शक्ति के दुरुपयोग के बारे में है। खंडपीठ ने कहा कि हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि सांसदों/ विधायक के खिलाफ कोई भी मुकदमा बिना उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना वापस न लिया जाए।

न्यायालय का यह निर्देश न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया के उस अनुरोध पर जारी किया गया कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना किसी संसद सदस्य या विधान सभा/परिषद के मौजूदा या पूर्व सदस्य के विरुद्ध किसी भी अभियोजन को वापस लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

48 घंटे के भीतर आपराधिक रिकॉर्ड साझा करने का ‘सुप्रीम’ निर्देश

सुप्रीमकोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर नकेल कसने के लिए अपने पूर्व के दिशानिर्देशों में संशोधन करते हुए मंगलवार को आदेश दिया कि उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के 48 घंटे के भीतर सभी राजनीतिक दलों को उनसे जुड़ी जानकारी साझा करनी होगी।

न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ ने इस संबंध में अपने 13 फरवरी, 2020 के फैसले में संशोधन किया। अपने पूर्व के फैसले में न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने के लिए न्यूनतम दो दिन और अधिकतम दो सप्ताह का समय दिया था, लेकिन आज इसमें संशोधन करके यह अवधि अधिकतम 48 घंटे कर दी गई है।

न्यायालय ने अपने फैसले में संशोधन ब्रजेश मिश्रा नामक एक अधिवक्ता की ओर से दायर अवमानना याचिका के आधार पर किया है, जिसमें यह दावा किया गया था कि राजनीतिक दल पिछले वर्ष के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।

खंडपीठ ने इस मामले में निर्वाचन आयोग और न्यायमूर्ति वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन की व्यापक दलीलें सुनी थीं और फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय का मुख्य बिंदु था कि 2020 के फैसले पर पूरी तरह अमल न करने वाले राजनीतिक दलों से कैसे निपटा जाए और उन्हें क्या सजा दी जाए? शीर्ष अदालत के इस फैसले का मकसद राजनीति में अपराधीकरण को कम करना है।

न्यायालय ने फरवरी 2020 के फैसले के पैरा 4.4 में सभी दलों को आदेश दिया था कि उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले उनका विवरण प्रकाशित करना होगा।

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने न्यायालय से अपील कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली पार्टियों के चुनाव चिह्न को फ्रीज या निलंबित रखा जाए।

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