नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि आपराधिक मामलों में महज आरोप पत्र दायर होने के आधार पर किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय जनता पार्टी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह तथा गैर-सरकारी संगठन ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन’ की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।
संविधान पीठ ने, हालांकि राजनीति के अपराधीकरण पर विराम लगाने के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किये। न्यायालय ने कहा कि चनुाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी ‘मोटे अक्षरों’ में देनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी चाहिए, साथ ही मीडिया में भी इसका प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। संविधान पीठ ने अयोग्यता के मसले को संसद के जिम्मे यह कहते हुए छोड़ दिया कि अदालत अयोग्यता की शर्तों में अपनी ओर से कुछ जोड़ नहीं सकती।
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं। दरसअल मार्च 2016 में शीर्ष अदालत ने यह मामला संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई थी कि जिन लोगों के खिलाफ आरोप तय हो गये हों और उन मामलों में पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो, उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाये।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पूछा था कि क्या चुनाव आयोग ऐसी व्यवस्था कर सकता है कि जो लोग आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं उनके बारे में ब्योरा सार्वजनिक किया जाये। एटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि न्यायालय उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान यही कहता है।