नई दिल्ली । 15-18 से आयुवर्ग के बच्चों को ध्यान में रखते हुए क्राई- चाईल्ड राईट्स एण्ड यू ने अपनी रिपोर्ट ‘चाइल्डएसेन्ट्स आॅफ इण्डियाः वी आर चिल्ड्रन टू’ पेश की है। रिपोर्ट में 15-18 आयु वर्ग के बच्चों, उनसे जुड़ी समस्याओं और उन अधिकारों का उल्लेख किया गया, जिनसे आज भी ये बच्चे वंचित हैं।
अपनी इस रिपोर्ट के माध्यम ये क्राई ने बच्चों और किशारों की समस्याआंे, संवेदनशीलताओं पर रोशनी डालने का प्रयास किया है, जिससे वे गुज़र रहे हैं। इस अध्ययन के उद्देश्य के बारे मंे बात करते हुए क्राई की सीईओ पूजा मारवाह ने कहा, ‘‘यह रिपोर्ट बच्चों और किशोरों की संवेदनशीलताओं को रोशनी में लाती है। पिछले चार दशकों से क्राई बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रहा है और इस दौरान हमने पाया कि किशोर आयु वर्ग के बच्चें इनमें से सबसे ज़्यादा संवेदनशील हैं, जो अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।’’
‘वे आरटीई अधिनियम (निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, जिसके अनुसार 6 से 14 आयुवर्ग के हर बच्चे के लिए शिक्षा अनिवार्य है) के तहत अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। 14 साल की उम्र पार करते ही ब्स्च्त्। ;ब्ीपसक स्ंइवनत च्तवीपइपजपवद ंदक त्महनसंजपवद ।बजद्धके तहत भी उनका संरक्षण समाप्त हो जाता है, क्योंकि यह अधिनियम 15-18 आयुवर्ग के बच्चों को काम (कुछ निर्धारित खतरनाक कामों को छोड़कर) करने की अनुमति देता है। इस समय ये बच्चे जीवन के ऐसे मोड़ पर होते हैं, जब वे व्यस्क जीवन शुरूआत करने जा रहे होते हैं, ऐसे में इनका यौन एवं मानसिक स्वास्थ्य बेहद महत्वपूर्ण होता है। जिसके चलते इन बच्चों का संरक्षण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इसी उम्र में बच्चों को बाल विवाह जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसी उम्र के बच्चे अक्सर बाल तस्करी और देह व्यापार की चपेट में भी आ जाते हैं।’’
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर जारी की गई यह रिपोर्ट इस तथ्य को बताती है कि वर्तमान में भारत में 15-18 आयुवर्ग के तकरीबन 100 मिलियन किशोर हैं और अगले दशक में एक बिलियन बच्चे जीवन की इस अवस्था से गुज़र चुके होंगे। लेकिन इतनी बड़ी आबादी अपने अधिकारों से उपेक्षित रह जाती है।
आंकड़ों के अनुसार देश में स्कूल जाने वाला हर 3 में 1 बच्चा सही उम्र में बारहवीं कक्षा पास करता है, भारत के 15 फीसदी से भी कम स्कूलों में माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक शिक्षा ;न्.क्प्ैम् 2015.16द्ध की उचित व्यवस्था है। माध्यमिक शिक्षा इन किशोरों के जीवन में नए मार्ग प्रशस्त करती है, उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती है, ऐसे में ज़रूरी है कि इस स्तर की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जाए। आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर समुदायों से आने वाले बच्चों पर खासतौर से ध्यान देना चाहिए, ऐसे बच्चों को पहचानना चाहिए, जिनके स्कूल छोड़ने की संभावना हो। इन बच्चों को शिक्षा के लिए उचित सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 23 मिलियन किशोर काम करते हैं, इनमें से 83 फीसदी बच्चे अपनी स्कूली पढ़ाई अधूरी छोड़ चुके हैं। इस आयुवर्ग में घरेलू कामों एवं मजदूरी के लिए बच्चों के अपहरण के मामले बहुत अधिक देखे जाते हैं। ऐसे में बाल तस्करी एवं अपहरण पर सख्त से सख्त कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता है।
बाल विवाह और कम उम्र में मां बनना जैसे मुद्दे भी चिंता का विषय हैं, वर्तमान में भारत में 55 फीसदी विवाहित महिलाओं की उम्र 14-19 वर्ष के बीच है, 15-19 आयुवर्ग की 3.4 मिलियन लड़कियां मां बन चुकी हैं (2011 की जनगणना)। ऐसे में बाल विवाह पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर जागरुकता बढ़ाने की आवश्यकता है। लड़कियों के संरक्षण के लिए च्ब्ड। ;2006द्ध और च्व्ब्ैव् ;2012द्ध को सख्ती से लागू करना ज़रूरी है।
छथ्भ्ै.4 ;2016द्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में 15-19 आयुवर्ग के 40 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं, इस आयुवर्ग की 54 फीसदी लड़कियां एवं 29 फीसदी लड़के एनीमिया यानि खून की कमी का शिकार हैं। ऐसे में इन बच्चों के शारीरिक, मानसिक एवं यौन स्वास्थ्य पर ध्यान देने के साथ न्यूट्रिशन सप्लीमेंटेशन प्रोग्राम शुरू करने की आवश्यकता है।
एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार देश में शोषित बच्चों में से 60 फीसदी मामले अपहरण के होते हैं और 25 फीसदी मामले बलात्कार के होते हैं। इन आंकड़ों के मद्देनज़र किशोरों का संरक्षण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
‘‘हमें समझना होगा कि किशोरावस्था जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है, इस अवस्था के साथ जहां एक ओर जीवन के सभी अवसर जुड़े हैं, वहीं दूसरी ओर ढेर सारी चुनौतियां और संवेदनशीलताएं भी है।ं हमें अपनी सामाजिक अवधारणाओं में बदलाव लाना होगा ताकि इन बच्चों के बचपन को खुशहाल, स्वस्थ और रचनात्मक बनाया जा सके।’’ पूजा ने कहा।