सबगुरु न्यूज-सिरोही। निकटवर्ती सारणेश्वर में शुक्रवार को भाजपा की चिंतन बैठक होगी। इसमें जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी और निवर्तमान विधायक ओटाराम देवासी यहां पर भाजपा की हार पर चिंतन करेंगे। लेकिन, चिंतन की आवश्यकता इसलिए नहीं है कि चुनाव परिणाम से ये स्पष्ट हो रहा है कि सिरोही विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी ओटाराम देवासी को खुद ओटाराम देवासी ने ही हराया।
सबसे प्रमुख कारण ये है कि ओटाराम देवासी ने सिरोही विधानसभा के पूर्व दो विधायकों से सबक नहीं सीखा। तारा भंडारी और संयम लोढ़ा दोनों ने जो गलतियां की उसे ओटाराम देवासी ने दोहराया। दो-दो बार विधायक बनने के लिए बाद भंडारी और लोढ़ा दोनों ही इस बात को नहीं समझ पाए कि दस साल में उनकी एंटीइंकम्बेंसी आ चुकी है।
विधानसभा में उनके लिए सेचुरेशन आने के बाद भी दोनों ही यहां से चुनाव लड़े। ब्रेक लेने के लिए दोनों ने ही अपनी विधानसभाएं नहीं बदली। परिणामस्वरूप दो कार्यकाल के बाद दोनों को ही हार का मुंह देखना पड़ा।
ओटाराम देवासी ने इनकी हारों से सबक नहीं सीखा और अपनी धार्मिक छवि के कारण फिर से सिरोही से जीतने का मुगालता पालते हुए यहां से चुनाव लड़ लिया। तीनों ही ने यह नहीं सोचा कि उनके पीछे भी कुछ नेता हैं तो अपनी राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं और उन्हें जगह बनानी है। खुद नहीं हटे तो इन्हें हरवाकर इन नेताओं ने अपने लिए जगह बना ली।
दूसरा कारण है नगर निकायों में अपनी ही पार्टी के बोर्ड़ों के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की अनदेखी। तारा भंडारी के समय में सिरोही में बोर्ड था। उसकी अनियमितता पर वह रोक नहीं लगा सकीं। संयम लोढ़ा भी उनकी पार्टी के बोर्ड में अपनी पार्टी के कार्यकाल में भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा सके।
यही ओटाराम देवासी ने किया सिरोही और शिवगंज नगर निकायों में पनप रहे भ्रष्टाचार को रोक नहीं सके। शहर लुटता रहा और व तमाशबीन बने रहे। शहर में कोई माइलस्टोन कार्य नहीं हुआ। उनकी इस अनदेखी के कारण दोनों शहरों ने ओटाराम देवासी को बुरी तरह नकार दिया।
पार्टी में अकर्मण्य लोगों को बढ़ावा देने का आरोप भी ओटाराम देवासी पर लगता रहा। पार्टी के पूर्व पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की अनदेखी ने उनके मन में ओटाराम देवासी के प्रति नीरसता भर दी। जिलाध्यक्ष और विधायक ओटाराम देवासी पर यह आरोप लगते रहे कि वह लोग पुराने कार्यकर्ताओं के सम्मान के प्रति सजग नहीं हैं।
दोनों पर अपने हित के लिए पार्टी का इस्तेमाल करने का आरोप लगा। वरिष्ट पदाधिकारियों की अवहेलना के कारण उनके अनुभव का लाभ ओटाराम देवासी को चुनावी रणनीति में नहीं मिला। और हर बूथ पर उन्हें लगभग हार का सामना करना पड़ा।
पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के गलत कामों पर कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को कथित रूप से प्रताड़ित करना ओटाराम देवासी की उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी भूल रही। इसने सीधे तौर पर उनकी छवि को जनता के बीच में बिगाड़ा।
जिला कलक्टर अभिमन्यु कुमार, एसपी सुमित कुमार और राजीव पचार, शिवगंज एसडीएम मीणा, सिरोही तहसीलदार विरेन्द्रसिंह और ऐसे ही हर विभाग के कई अधिकारियों को सिर्फ इसलिए सिरोही छोड़ना पड़ा कि उन्होंने भाजपाइयों के हितों को नियम से परे जाकर नहीं साधा। इसने विपक्ष को देवासी की छवि को जनता में खराब करने का मौका दे दिया।
भले ही ओटाराम देवासी खुदको 36 कौम के नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश में रहे हों, लेकिन विधानसभा में जाति विशेष के नेता बन चुके थे। एक कार्यक्रम के वायरल वीडियो में उनके भाषण ने यह संदेश प्रसारित किया कि उनका मकसद जाति विशेष से है पार्टी या उसकी विचारधारा से नहीं। इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी यही संदेश गया।
चुनाव के समय पाड़ीव के अमराराम देवासी के वीडियो ने इस बात पर मोहर लगा दी कि वो जाति विशेष के नेता हैं। खुद देवासी ने भी कभी भी ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने की कोशिश नहीं की। परिणामस्वरूप 36 कौम इस जतिवादी राज्रनीति के खिलाफ लामबद्ध हो गई। इसके अलावा जाति विशेष में भी सम्पन्न लोगों के आगे दबे कुचलों का साथ नहीं देने के आरोप लगने से उन्हें अपनी जाति में भी नुकसान उठाना पड़ा।
अपने मातहतों पर ओटाराम देवासी अंकुश नहीं लगा सके। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों द्वारा उनके मातहत द्वारा उत्पीड़न किए जाने का भी उन्होंने संज्ञान नहीं लिया। परिणामस्वरूप उत्पीडन उनकी सहमति से किए जाने की भावना कर्मचारियों में आ गई।
दस साल विधायक रहने के बाद भी अफसरशाही पर नियंत्रण नहीं कर पाने, पार्टी में पार्टी की विचारधारा के विपरीत काम करने वाले कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का मजमा लग जाने और ऐसे कई कारण रहे जिसने ओटाराम देवासी को गांव से शहर तक डेढ़ सौ से ज्यादा बूथों पर हार का स्वाद चखाया।