नई दिल्ली। केंद्र ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि हर बाल यौन उत्पीड़न के मामले का जवाब मौत की सजा नहीं है और पॉस्को अधिनियम, 2012 में अपराध के स्तर के अनुसार अलग-अलग सजा का प्रावधान है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए.एम.खानविलकर व न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ से कहा कि हर समस्या का हल मौत की सजा नहीं है। पॉस्को के तहत वर्गीकृत अपराधों के अनुसार वर्गीकृत दंड हैं।
यह पीठ आठ महीने की बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म के मामले की सुनवाई कर रही है। बच्ची का अभी एम्स में इलाज चल रहा है। केंद्र मामले पर अपनी स्थिति रख रहा था क्योंकि याचिकाकर्ता वकील ने आरोपी के लिए मौत की सजा की मांग की है।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने जानना चाहा कि यौन अपराध बाल संरक्षण अधिनियम (पॉस्को) के तहत क्या सजा है। उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि हम मौत की सजा का सुझाव नहीं दे सकते, जैसा कि आप सुझाव दे रहे हैं।
इस मामले को नृशंस बताते हुए अदालत ने पॉस्को के तहत लंबित मामलों की संख्या, उनके मुकदमे की स्थिति व मुकदमे में लगने वाले समय का आंकड़ा मांगा।
अदालत ने यह आंकड़ा याचिकाकर्ता द्वारा पॉस्को मामलों की फास्ट ट्रैक सुनवाई की मांग पर मांगा, जिसमें उसने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि इस तरह के मामलों में तीन साल में फैसले आते हैं।
अदालत के बुधवार के आदेश के पालन में एम्स के दो चिकित्सक कलावती सरण अस्पताल गए और बच्ची की जांच की। अदालत को बताया गया कि अब बच्ची को एम्स में स्थानांतरित कर दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च को निर्धारित की गई है।