नई दिल्ली। दिल्ली में 2020 के दंगे के मामले में कथित भड़काऊ भाषण देने के आरोपों पर उच्च न्यायालय ने प्रमुख दलों के शीर्ष नेताओं- केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत अन्य लोगों को मंगलवार को फिर नोटिस जारी किया।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने संबंधित याचिकाकर्ताओं को प्रक्रिया शुल्क (प्रोसेस फी) दो दिनों के अंदर जमा करने एवं कुछ संभावित प्रतिवादियों के सही पते दो दिनों के भीतर उपलब्ध कराने का आदेश देने के साथ ही संबंधित पक्षों को पुनः नोटिस जारी किया। उच्च न्यायालय इस मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल को करेगा।
उच्च न्यायालय ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगाने वाली विभिन्न याचिकाओं पर भारतीय जनता पार्टी के नेता अनुराग ठाकुर (केंद्रीय मंत्री) प्रवेश साहिब सिंह वर्मा (सांसद), कपिल मिश्रा, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एवं राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के अलावा सांसद असदुद्दीन ओवैसी, बांबे उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश न्यायमूर्ति बीजी कोलसे पाटिल के अलावा स्वर्णा भास्कर, हर्ष मंदर एवं अन्य लोगों को पुनः नोटिस जारी किया।
पूर्व में जारी नोटिस याचिकाकर्ताओं की ओर से आवश्यक प्रक्रिया शुल्क और संबंधित कई लोगों के सही पते उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण तामिल नहीं किए जा सके थे। उच्च न्यायालय की पीठ ने सुनवाई के दौरान पूर्व में जारी नोटिस के मामले में जरूरी प्रक्रिया शुल्क जमा नहीं करने तथा कई संभावित प्रतिवादियों के सही पते उपलब्ध नहीं कराने पर संबंधित याचिकाकर्ता के वकील से गहरी नाराजगी व्यक्त की।
याचिकाकर्ता शेख मुजतबा फारूक ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार के साथ पिछले साल दिसंबर में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर को उच्च न्यायालय को संबंधित याचिकाओं पर तीन महीने के भीतर फैसला करने को कहा था।
फारूक की याचिका में भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई है। ‘लॉयर्स वॉइस’ की याचिका में कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी नेताओं और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ताओं के रवैये से लगता था कि इस मामले में उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी।
पीठ ने कहा कि ‘लॉयर वॉइस’ की याचिका में 20 से अधिक लोगों को प्रतिवादी बनाने की मांग की गई है, लेकिन वे उमर खालिद, मौलाना तौकिर रजा और बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीजी कोलसे पाटिल सहित कम से कम नौ लोगों के सही पते प्रस्तुत करने में विफल रहे।
पीठ ने कहा कि आपके आवेदन में पक्षकार बनाए गए व्यक्तियों में से एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं। आपको उनका पता नहीं मिल रहा है? हम आपको उनके पते प्रस्तुत करने के लिए दो दिनों का समय देंगे, लेकिन यदि आप पते उपलब्ध नहीं कर सकते हैं, तो आप अपनी याचिका से उन व्यक्तियों के नाम हटा देंगे।
शेख मुजतबा फारूक के वकील को संबोधित करते हुए पीठ ने कहा कि उनके आग्रह पर ही शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से तीन महीने में मामले का फैसला करने को कहा था, बावजूद इसके याचिकाकर्ता ने प्रक्रिया शुल्क दाखिल नहीं किया। न्यायमूर्ति मृदुल ने कहा कि आप कुछ व्यक्तियों को पक्षकार बनाना चाहते हैं लेकिन आपने अभी तक प्रक्रिया शुल्क जमा नहीं किया है। बिना इस बुनियादी प्रक्रिया को पूरा किए नोटिस कैसे जारी होंगे?