नई दिल्ली। राज्यसभा में सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व देने की मांग करते हुए साेमवार काे कहा गया कि सदन की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए इसके सदस्यों को कामकाज के प्रति सक्रिय तथा और गंभीर होना होगा।
राज्यसभा के 250 वें सत्र के अवसर पर सदन में “ भारतीय शासन व्यवस्था में राज्यसभा की भूमिका और सुधारों की आवश्यकता पर विशेष चर्चा” में भाग लेते हुए समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने कहा कि राज्यसभा का काम लोकसभा में किये गये कार्यों का अनुमोदन करना नहीं बल्कि उसमें जनहित और राष्ट्रहित के अनुरुप सुधार करना है। उन्होेंने ब्रिटेन की संसद के कामकाज की प्रक्रिया और विकास का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्यसभा का कामकाज किसी भी कानून या विधान पर विस्तृत चर्चा करना और उसमें सुधार करना है। यदि कुछ गलत है तो उसे रोकना भी राज्यसभा की जिम्मेदारी है।
यादव ने कहा कि राज्यसभा का गठन जनसंख्या के आधार पर नहीं बल्कि राज्यों के प्रतिनिधित्व से होना चाहिए। प्रत्येक राज्य काे समान प्रतिनिधित्व देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे राज्यों के हितों का संरक्षण करने में मदद मिलेगी और संघीय ढांचा मजबूत होगा। उन्होेंने कहा कि राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्ष का होता है और दो तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में बदल जाते हैं इसलिए प्रत्येक राज्य से कम से कम छह सदस्य होने चाहिए।
उन्हाेंने कहा कि ब्रिटेन की हाऊस ऑफ लार्डस् की तर्ज पर राज्यसभा का गठन किया गया है। उन्होेंने तंज करते हुए कहा, “ इसके सदस्य भी लार्डस् हो गये हैं। वे सदन के कामकाज में सक्रियता से भाग नहीं लेते हैं। उन्हें चुनाव नहीं लड़ना है और वोट नहीं मांगना है इसलिए वे कामकाज में रुचि नहीं लेते हैं। इससे राज्यसभा के अधिकार भी कमजोर हो जाएगें।” उन्होंने कहा कि राज्यसभा की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए सदस्यों को सक्रियता से कामकाज में भाग लेना होगा और जनता के मुद्दों के प्रति गंभीर होना होगा।
यादव ने कहा कि राज्यसभा भारतीय संघ का प्रतीक है। इसे राज्य सूची में विषयों पर कानून बनाने तथा अखिल भारतीय स्तर की सेवाओं का गठन करने का अधिकार है। सदन को राष्ट्रीय विधि सेवा का गठन करना चाहिए और न्यायपालिका पर भी चर्चा करनी चाहिए।
चर्चा में हिस्सा लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदू शेखर राय ने कहा कि संसद के दोनों दोनों सदनों में अधिकारों का स्पष्ट विभाजन है इसलिए कोई भी सदन छोटा या बड़ा नहीं है। दोनों की अपनी अपनी भूमिका है। उन्होंने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि विगत समय में राज्यसभा को खत्म करने की बात की गई है और कहा गया है कि राज्यसभा व्यवधान पैदा करती हैं। उन्हाेंने कहा कि राज्यसभा भारतीय लोकतंत्र का जरुरी और अभिन्न अंग है। लोकतंत्र में अवरोधक जरुरी होते हैं और ये जनहित में काम करते हैं। उन्होेंने कहा कि सदन में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए जिससे राज्यों के कामकाज में केंद्र का हस्तक्षेप रोका जा सके।
राय ने केंद्र और राज्य संबंधों पर पुंछ समिति की सिफारिशों का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्यपाल की भूमिका को निगमित किया जाना चाहिए। इसका प्रावधान किया जाना चाहिए कि राज्यपाल सक्रिय राजनीति से दूर रहे।
अन्ना द्रमुक के ए. नवनीत कृष्णन ने कहा कि केंद्र कई बार मनमाने तरीके से काम करता है जिससे संघीय ढ़ांचे का नुकसान पहुंचता है लेकिन इसका विरोध करने का काेई मंच उपलब्ध नहीं होता है। उन्होंने कहा कि संसद को हमेशा चलना चाहिए जिससे राज्यों की समस्याओं को तुरंत और जल्दी समाधान हो सके।
उन्होंने कहा कि सदस्यों को यह समझना चाहिए कि वे सदन में जनता के काम के लिए आयें हैं। सदन में किसी को भी व्यवधान पैदा करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। इसके लिए सदन को व्यवस्था करनी चाहिए।
बीजू जनता दल के प्रसन्ना आचार्य ने कहा कि दोनों सदन एक दूसरे पूरक हैं। राज्यों को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अाधार पर नहीं बल्कि समान होना चाहिए। उन्होेंने कहा कि सदन के नामित सदस्यों के चयन में राजनीति नहीं होनी चाहिए और राष्ट्रपति के पास इस संबंध में पूर्ण अधिकार होने चाहिए।
जनता दल युनाईटेड के रामचंद प्रसाद सिंह ने कहा कि सदन के पास कानून बनाने के विशेष अधिकार हैं। इनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सदन को इस संबंध में राष्ट्रीय विधि सेवा का गठन करना चाहिए। सदन में सभी राज्यों को समान अधिकार देने से संघीय ढ़ांचे को मजबूती मिलेगी और जनहित के मुद्दों को स्थान मिलेगा। तेलंगाना राष्ट्र समिति के के. केशव राव ने कहा कि वे अन्य सदस्यों के विचारों से सहमत हैं। सदन कानून बनाता है और इसमें समय लगता है। इससे विधान बेहतर बनता है।
बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के विश्वजीत डेमैत्री ने कहा कि सदन को प्रासंगिक बनायें रखना बेहद जरुरी है। इसके लिए सदन में सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई राज्यों से मात्र एक प्रतिनधि हैं और वह अपना मुद्दा सदन में नहीं उठा पाता है। सदन में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि प्रत्येक सदस्य अपना मुद्दा उठा सके अौर अपने राज्य के बारे में बात कर सके।
असम गण परिषद के वीरेंद्र प्रसाद वैश्य ने कहा कि राज्यसभा संसदीय लाेकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। यह सदन हमेशा चलता है और लोकसभा के नहीं रहने से काम करता है। प्रत्येक सदस्यों को अपना मुद्दा उठाने का मौका दिया जाना चाहिए।