नयी दिल्ली । लोकसभा में विपक्षी दलोें ने मानव तस्करी रोकने तथा इससे पीड़ित लोगों का पुनर्वास करने संबंधी मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 को महत्वपूर्ण बताते हुये इसे और सशक्त बनाने की आज मांग की तथा कहा कि विधेयक में कई खामियाँ हैं जिन्हें दूर करने के लिए इसे स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस के शशि थरूर ने विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है और व्यक्तियों – विशेषकर महिलाओं और बच्चों – की तस्करी तथा उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए इस तरह के कानून की सख्त जरूरत है। यह विधेयक पारित होने के बाद भारत दक्षिण एशिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जायेगा जहां इस तरह के कदम उठाए गए हैं।
उन्होंने विधेयक को समय की जरूरत बताया और कहा कि इसमें तस्करी के शिकार हुए लोगों के लिए राहत तथा पुनर्वास की बात की गयी है, लेकिन इसके लिए मजह दस करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है जबकि सरकार करोड़ों रुपए विज्ञापनों पर खर्च कर रही है। उन्होंने कहा कि विधेयक में बहुत सारी खामियां हैं और इसे संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।
कांग्रेस सदस्य ने कहा कि इस कानून को और कठोर बनाए जाने तथा पीड़ितों के व्यापक हितों पर ध्यान देने की जरूरत है। विधेयक के प्रावधानों को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि इसकी खामियों काे दूर करने तथा इसे मजबूूत बनाने के लिए विधेयक को और अधिक सुझावों के वास्ते संसद की स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विधेयक में कई उपबंध हैं जहां भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इसमें पुलिस अधिकारी को मानव तस्करी के मामले पकड़ने पर मजिस्ट्रेट के पास जाने की आवश्यकता नहीं है। पुलिस अधिकारी को ही मजिस्ट्रेट के बराबर अधिकार दिए गए हैं इसलिए वह सीधे अपराधी के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
तृणमूल कांग्रेस की प्रतिमा मंडल ने कहा कि इस कानून में कुछ भी नया नहीं है। अपराधों की ग्रेडिंग भी गलत तरीके से की गयी है। बँधुआ मजदूरी के लिए मानव तस्करी को बड़ा अपराध माना गया है जबकि यौन शोषण के लिए मानव तस्करी को सामान्य श्रेणी में रखा गया है। इसमें पुलिस को जरूरत से ज्यादा अधिकार दे दिया गया है।
उन्होंने कहा कि पुलिस को ऐसे किसी भी परिसर को बंद करने का अधिकार दिया है जिसका मानव तस्करी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें 10 से अधिक एजेंसियों के शामिल होने से सभी एक-दूसरे पर जिम्मेदारियाँ टालती रहेंगी।
बीजू जनता दल के तथागत सत्पथी ने भी कहा कि विधेयक में कई खामियाँ हैं और इसे स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि विधेयक को पीड़ित को केंद्र में रखकर तैयान नहीं किया गया है तथा मानवाधिकार के दृष्टिकोण की अनदेखी की गयी है। पुनर्वास के नाम निगरानी की पूरी व्यवस्था की गयी है। किसी संपत्ति को सिर्फ इस सोच के आधार पर जब्त करने के प्रावधान कि उसका मानव तस्करी में इस्तेमाल हो सकता है को उन्होंने गलत बताया। उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल पूर्वी राज्यों से बड़ी संख्या में पंजाब जैसे विकसित प्रदेशों में आने वाले मजदूरों के मामले में भी किया जा सकता है और उनकी रोजी जा सकती है। वे ज्यादातर बिचौलियों के माध्यम से पंजाब के बड़े किसानों के यहाँ काम करते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के ओम बिरला ने कहा कि मानव तस्करी रोकने के लिए गरीबी, शिक्षा और बेरोजगारी को समाप्त करना होगा। उन्होंने इस कानून को व्यापक बताया और कहा कि यह मानव तस्करी रोकने में कामयाब होगा।
शिवसेना के विनायक राउत ने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि बालिकाओं के अनाथाश्रयों और बालिकाश्रमों में पुरुष अधिकारी रखे जाने पर पाबंदी लगनी चाहिये। तेलुगुदेशम् पार्टी के एम. श्रीनिवास राव ने विधेयक का समर्थन किया, लेकिन कहा कि इसे स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिये। उन्होंने विधेयक में जुर्माने को काफी कम बताया। साथ ही कहा कि राष्ट्रीय तस्करी रोकथाम ब्यूरो का प्रमुख ‘किरण बेदी’ जैसे किसी दमदार महिला को बनाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि देश में कानून बहुत सारे हैं, लेकिन वे सही से लागू नहीं हो पाते। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि इस कानून के तहत बना पुनर्वास कोष भी निर्भया कोष की तरह अनुप्रयुक्त न रह जाये।
तेलंगाना राष्ट्र समिति की के. कविता ने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि इन-कैमरा और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई का प्रावधान अच्छा कदम है। पहली बार मानव तस्करी रोकने के लिए कोई कानून बना है, पहली बार समयबद्ध सुनवाई और समयबद्ध पुनर्वास की व्यवस्था की गयी है। किसी भी मौजूदा कानून में पीड़ितों के संरक्षण की बात नहीं थी। उन्होंने कहा कि कानून का प्रारूप तैयार करने से श्रम संगठनों और उद्योग से भी बात करनी चाहिये थी। साथ ही मानव तस्करी में कई बार विदेशी नागरिक भी लिप्त होते हैं। उनके बारे में कानून खामोश है।