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देव उठनी एकादशी एवं भीष्म पंचक प्रारंभ - Sabguru News
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देव उठनी एकादशी एवं भीष्म पंचक प्रारंभ

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देव उठनी एकादशी एवं भीष्म पंचक प्रारंभ

सबगुरु न्यूज। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु की भक्ति करते हुए योग निद्रा ने कहा कि हे भगवान, मुझे भी आप अपने शरीर मे बैठने का स्थान दें। तब विष्णु भगवान ने उसे चार मास अपनी आंखों में बसने का वरदान देते हुए कहा कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तक तुम मेरी आंखों में बसों तथा एकादशी को मैं तुम्हे त्याग दूंगा। तभी से देव शयन व देव उठने की मान्यता विधमान है।

ये चारों मास चतुर्थ मास के नाम से जाने जाते हैं और विष्णु भगवान के शयन के कारण सभी मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है, देव ऊठनी एकादशी से फिर मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।

पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र नारदजी को प्रबोधिनी एकादशी का महात्म्य बतलाया था। प्रबोधिनी एकादशी का उपवास करने से पापों का नाश व पुण्य की वृद्धि होती है।पितरों के मोक्ष, धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु शयन त्यागते हैं और उसे ही देव जागना या निद्रा से ऊठना माना जाता है।

पांच दिन का भीष्म पंचक

हरि प्रबोधिनी एकादशी की रात जागरण कथा कीर्तन किया जाना शुभ फल देने वाला माना गया है। प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक के पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाता है। इन पांचों दिनों के व्रत का रहस्य भीष्म पितामह को वासुदेव श्रीकृष्ण ने बताया था। पांच दिन लगातार भगवान के समीप दीपक जलाएं तथा उत्तम नैवेध का भोग अर्पण किया जाना चाहिए।

पांचों दिन नदी, झरने या तीर्थ सरोवर में स्नान कर विष्णु व लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिए तथा घी डाल कर गूगल जलाना चाहिए। पूर्णिमा के दिन दान पुण्य करना शुभ फल देने वाला माना गया है। भीष्म पंचक व्रत में असत्यभाषण अनुचित कार्य नहीं करने चाहिए। भीष्म पंचक व्रत शय्या पर पडे हुए भीष्म पितामह ने किया था। जो इस व्रत को करता है वह पापों से मुक्ति पाता है और शुद्ध सदगति को प्राप्त होता है। ऐसा भीष्म का वचन है।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है इस दिन तुलसी विवाह की भी मान्यता है। कार्तिक पूर्णिमा को मत्स्यावतार भी माना जाता है और इस दिन सायंकाल में देव मंदिरों, चौराहों, गलियों, पनघट, पीपल के वृक्ष व तुलसी के पास दीपक जलाए जाते हैं और देव दीपावली पर्व मनाया जाता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर