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Dev uthani Prabodhini Ekadashi on 19 november 2018-शुभ मुहूर्त : 19 नवम्बर को देव प्रबोधिनी एकादशी - Sabguru News
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शुभ मुहूर्त : 19 नवम्बर को देव प्रबोधिनी एकादशी

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शुभ मुहूर्त : 19 नवम्बर को देव प्रबोधिनी एकादशी

सबगुरु न्यूज। प्रकृति अपने नियम कानून और सिद्धांतों से ही अपना कार्य करती है। जो प्राणी इस व्यवस्था को आदेश मानकर कार्य करता है वह सदा सुखी और समृद्ध रहता है। प्रकृति के मौन आदेशों की जो भी अवहेलना करता है तो प्रकृति बिना गवाह और सुनवाई के उसे दंड देकर अपने कानून कायदों का परिचय दे देती है और मानव को निर्देश देती है कि उसके फैसलों की अवहेलना नहीं की जा सकती चाहे वह शक्तिमान हो या दुर्बल।

वर्षा ऋतु संकेत देती है कि हे मानव, तू सतर्क होकर रहना मैं कही भी कुछ भी आंधी, बरसात, तूफान, भूकंप, भूसखलन, ज्वालामुखी, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, बर्फबारी, सूखा, अकाल और भयंकर अग्नि कांड कर सकती हूं। प्रचंड हवाओं के साथ धूल का बंवडर, पानी का तूफान ला सकती हूं। मेरे इस रूप से जगत में भौतिक खुशहाली और तबाही दोनों ही आएगी।

मेरी इस प्रकृति से तू तालमेल बैठा कर खुशाल बन और मुझे चुनौती देकर बदहाल मत होना क्योंकि मेरे द्वारा की गई तबाही से जन धन और भौतिक विकास रूक जाएगा तथा लाखों विषैले जीवजन्तु पैदा होकर रोगों को फ़ैला देंगे। आवागमन के साधन बाधित हो जाएंगे तथा सर्वत्र मानव की बनाई व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो जाएंगी।

वर्षा ऋतु के चार मास हर तरह से व्यवस्था को अव्यवस्थित कर देंगे, अत: चौमासे के इन चार महीनों में पूर्ण रूप से सजगता और सावधानी बरतनी चाहिए। प्रकृति के इसी रौद्र रूप से बचने के लिए आदि ऋषियों ने इन चार महीनों को ही देवों का शयनकाल मानकर मांगलिक कार्यों पर प्रतिबंध लगा केवल अपने आप को ऋतुओं के अनुसार व्यवहार करने के निर्देश दिए हैं ताकि जन धन की क्षति को बचाया जा सके और प्रकृति की ऋतु के अनुसार लाभ उठाते हुए अपार जलराशि को संग्रहित ओर सुरक्षित किया जा सके। कही आपदा व विपदा हो रही है तो उन्हें हर संभव प्रयास कर मदद दी जा सके।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक का समय देवशयन काल माना जाता है। अर्थात ऐसी मान्यता है कि सारे देवता सो जाते हैं तथा हर तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जातीं हैं। कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को विष्णु जी निद्रा से जाग जाते हैं तथा सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं।

आदि ऋषियों ने इस पूरे चतुर्थ मास में एक स्थान पर बैठकर जप तप के निर्देश दिए तथा वर्षाकाल मे होने वालीं बीमारियों से बचने के लिए तथा वर्षा से सभी अव्यवस्था फ़ैल जाने के कारण इन चार माह में सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाने के निर्देश दिए। यह वर्षा ऋतु का चतुर्थ मास देव शयन काल कहलाया। वास्तव में ये ही जमीनी हकीकत है।

प्रकृति ने अपना प्रबन्धन सुव्यवस्थित करते हुए जीव और जगत को मौसम के अनुसार ही व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है। सूर्य के दैनिक चालन से दिन रात बनाई तो वही सूर्य की वार्षिक गति से ऋतु निर्माण कर उसी अनुसार कार्य करनें के संदेश दिए।

वर्षा ऋतु के साथ चार महिनों में अपनें विशेष प्रबन्धन में प्रकृति ने आन्तरिक ऊर्जाओं को बढाने, सृजन करने के सूत्र को बताकर सर्वत्र वर्षा के जरिए गर्मी की ऋतु से तपती धरती को जल से परिपूर्ण कर पृथ्वी को उपजाऊ बना वनस्पतियों तथा खाद्यान्नों को उत्पन्न किया।

वर्षा ऋतु के काल में यातायात, खानपान, उद्योग धंधे सभी प्रभावित होते हैं इस कारण इन चार माह में सभी कार्य में अवरोध पैदा होने से सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं तथा उसके बाद सभी कार्यो को सुचारु रूप से किया जा सकता है।

वर्षा ऋतु के बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से पुनः शुभ मांगलिक कार्यों के कार्य शुरू हो जाते हैं। यही शुभ कार्यो के जागरण का काल है। देव अर्थात शुभ करने वालीं शक्ति अतः यही देव ऊठनी एकादशी है और शुभ कार्यो के प्रारंभ का काल है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति का हर काल जाग्रत रहता है और हर काल में उसकी क्रिया अपना काम करती है। प्रकृति स्वयं शक्ति है और उसके सो जाने से प्रलय के अतिरिक्त और कुछ भी नही होगा। ये सदैव जाग्रत रह कर जगत और जीव का कल्याण करती हैं। चाहे कोई सा भी ऋतु काल क्यो ना हो।

इसलिए हे मानव, तू संयमित और व्यवस्थित होकर हर ऋतुओं मे अपने कर्म को अंजाम दे, क्योंकि हर काल की सकारात्मक देव ऊजाएं जाग्रत रहती हैं जो प्रकृति की विनाशकारी लीला के बाद लाखों जनजीवन को बचाती हैं और हर अवरोध को दूर कर व्यवस्था को सुचारू बनाती है।

वर्षा ऋतु के बाद सभी प्रकार की अव्यवस्था को सुचारु रूप दे दिया जाता है और यही काल देवो का जागरण काल बन जाता है और सूर्य भी शनै: शनै: दक्षिणायन की यात्रा करते हुए उतरायन की ओर अग्रसर होने लगता है।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर