मुुंबई। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद एक महीने तक चले राजनीतिक गतिरोध के बाद अचानक एक बड़े सियासी उलटफेर में शनिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के देवेन्द्र फडनवीस ने मुख्यमंत्री पद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के एक धड़े के अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सुबह करीब साढ़े सात बजे श्री फड़नवीस को मुख्यमंत्री और राकांपा के श्री अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। कोश्यारी ने फडनवीस को सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए 30 नवंबर तक का समय दिया है।
कोश्यारी ने पहले राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा की। सुबह करीब साढ़े पांच बजे राष्ट्रपति शासन हटाये जाने के बाद राजभवन में फड़नवीस को मुख्यमंत्री और राकांपा के पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। कोश्यारी ने राजभवन में दोनों नेताओं को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर भाजपा और राकांपा दोनों पार्टियों का कोई भी बड़ा नेता उपस्थित नहीं था।
सरकार के गठन के बाद राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार ने सरकार में शामिल होने के अजीत पवार के निर्णय से किनारा कर लिया जबकि फड़नवीस ने दावा किया कि उनके पास पूर्ण बहुमत है।
शरद पवार ने दावा किया कि अजीत पवार के पास मात्र 10-11 विधायक हैं, पहले उनके साथ 15 विधायक थे जिनमें से चार विधायक लौट आये हैं। इस प्रकार से शपथ ग्रहण के बावजूद सरकार के समीकरणों के बारे में अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। अजीत पवार को कितने विधायकों का समर्थन हासिल है और बहुमत के लिए बाकी विधायक कहां से आएंगे, इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया है।
शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के अध्यक्ष एवं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फड़नवीस और अजीत पवार को ट्वीट पर बधाई दी। फड़नवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का मौका देने के लिये मोदी, शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा को धन्यवाद दिया।
महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव 21 अक्टूबर को हुए थे और परिणाम 24 अक्टूबर को मतगणना हुई थी। 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को सर्वाधिक 105, शिवसेना को 56, राकांपा को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें हासिल हुईं थीं।
विधानसभा चुनाव में भाजपा एवं शिवसेना तथा कांग्रेस एवं राकांपा गठबंधन के रूप में चुनावी मैदान में उतरे थे। भाजपा एवं शिवसेना के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद सरकार का गठन नहीं हो पाया। शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद पर दावा कर दिया था जिसे भाजपा ने स्वीकार नहीं किया। कई दिनों तक गतिरोध कायम रहने के कारण राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।