आबूरोड (सिरोही)। राजस्थान के सिरोही जिले के आदिवासी बहुल कई इलाकों में डिजिटल इंडिया का सपना महज सपना बनकर रह गया है।
नेटवर्क के अभाव के चलते आबूरोड तहसील के भाखर क्षेत्र के पाबा गांव की रतोरा फली से एक वृद्धा को 3 किलोमीटर दुर्गम पहाड़ी पर चारपाई के सहारे पहुंचाया गया तब कहीं जाकर डाकिए ने अंगूठे की आनलाइन निशानी लेने के बाद उसकी पेंशन दी।
आबूरोड तहसील के 24 गांवों के हालात डिजिटल इंडिया की पोल खोल रहे हैं। पाबा गांव के रतोराफली निवासी वृद्धा मोतली पत्नी भाणा गरासिया को वृद्धावस्था पेंशन का भुगतान पाने के लिए कडी मशक्कत से गुजरना पडता है।
एक बानगी देखिए, गांव में नेटवर्क नहीं होने से परिवार के सदस्य इंडिया पोस्ट पेमेंट के डाकिए के साथ महिला को चारपाई पर लेटाकर तीन किलोमीटर दुर्गम पहाड़ी पर लेकर पहुंचते हैं, जहां आधार इनेबल पेमेंट सिस्टम से अंगूठा लगाने के बाद कुछ मिनट के लिए जुडे नेटवर्क से भुगतान संभव हो पाया।
भूमिगत केबल से डिजिटल लाइजेशन का सपना चकनाचूर
कुछ महीनों पूर्व आबूरोड के आदिवासी 24 गांवों के ग्रामीणों को उम्मीद जगी थी कि भूमिगत केबल से गोपाला बड़ा से निचला गढ़ के बीच कनेक्ट कर नेटवर्क मिलने का सपना साकार हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं सप्ताह भर पूर्व दोनों ही गांवों में स्थापित जिओ के टावर को सक्रिय करने पर मात्र टॉवर के एक और डेढ़ किलोमीटर के बीच ही कनेक्टिविटी सीमित होकर रह गई।
दरअसल डिजिटल इंडिया के दावे का सपना पहाड़ों के बीच साकार नहीं हो पाया। महीनों की जगी उम्मीदे दगा दे गई, हजारों बाल नौनिहालों के ऑनलाइन से पढ़ाई करने का सपना निराशा में बदल गया।
इन गांवों में नहीं नेटवर्क
जायदरा, उपला टाकिया, निचला टाकिया, निचला खेजड़ा, उपला खेजड़ा, दानबोर, पाबा, रणोरा, भमरिया, बूजा, जांमबूडी, बोसा, कलोरा, उपलीबोर, निचली बोर, मीण, मीनतलेटी राडा, मथारा फली, वेराफली, सातखेजड़ा, क्यारी आदि गांव आज भी नो नेटवर्क जोन, का दंश भोग रहे हैं!