उदयपुर। उप राष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापित जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि किसी लोकतंत्र में विधायिका ठीक से न चले तो उससे लोकतांत्रिक मूल्य कमजोर हो सकता है और उसके विकास में बाधा हो सकती है। उन्होंने कहा कि सदस्यों को सदन में अभिव्यक्ति का असाधारण अधिकार मिला हुआ है , पर इसके दुरुपयोग को सदन में क्षमा नहीं किया जा सकता।
धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तालमेल चक्र को चलाने वाली धुरी की तरह महत्वपूर्ण है। वह यहां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के नौवें अधिवेशन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। यह सम्मेलन दो दिन चला।
धनखड़ ने कहा कि सरकार के तीन अंगों विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका में से न्यायपालिका और कार्यपालिका सामंजस्य के साथ काम करती हैं, लेकिन विधायिका, जो सर्वोच्च है, इन दिनों कमजोरियों से घिर गई है।
उप राष्ट्रपति ने संसद की कार्रवाई में व्यवधान पर गहरी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि जन प्रतिनिधियों की संस्था गंभीर तनाव में है और लोकतंत्र के मंदिर जो संवाद, विचार-विमर्श, बहस और विचार-विमर्श के लिए बने हैं, इन दिनों अशांति और व्यवधान का केंद्र बन गए हैं।
उन्होंने आगाह किया कि कोई विधायिका ठीक से नहीं चल रही हो तो वह लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर सकती है और यह स्थिति लोकतंत्र के विकास में बाधाक हो जाएगी।
लोकतंत्र के मंदिरों में अव्यवस्था एक नया नियम बन गया है। उन्होंने कहा कि संसद ही लोगों की इच्छा की थाती होती है और विधायिका का प्रभावी और सक्रिय कामकाज लोकतांत्रिक मूल्यों के फलने-फूलने की सबसे सुरक्षित गारंटी है। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि हम संसद में यदि अपनी जिम्मेदारियों का एहसास और लोगों के कल्याण और भलाई का काम नहीं करेंगे तो मेरे मन में जरा भी संदेह नहीं है कि संसद के बाहर के लोग संसद को अत्यंत अवमानना की दृष्टि से देखेंगे।
उन्होंने कहा कि संसद और विधानसभाओं में सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक ऐसा बड़ा अधिकार मिला है कि सदन में उनके द्वारा कही गई किसी भी बात के लिए एक सौ चालीस करोड़ जनता भी दीवानी या फौजदारी मुकदमा नहीं कर सकती। इतना बड़ा अधिकार मिलता है, पर यह अधिकार बेलगाम नहीं हो सकता , यह गंभीर विषय है, आप इसका दुरुपयोग नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि इसका दुरुपयोग यदि होता है तो सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी उन लोगों पर है जो सदन में बैठते हैं… हम दुरुपयोग को क्षमा नहीं कर सकते क्योंकि एक सौ चालीस करोड़ लोगों की हिफ़ाज़त हमें करनी है। धनखड़ ने कहा कि हम यह इजाजत नहीं दे सकते कि अनर्गल बात, गलत बात, तथ्यहीन बात, तथ्यों से परे बात, आप तुरन्त कह दो और उत्तरदायित्व नहीं लो। उन्होंने कहा यह चिंतन का विषय है इस पर मंथन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम सभी को हमारे गणतंत्र के संस्थापकों की इन भविष्यसूचक चिंताओं और चेतावनियों के प्रति सचेत रहने और संकट की स्थिति से उबरने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार और विपक्ष दोनों संसदीय लोकतंत्र के ढांचे के अंतर्गत अपरिहार्य भूमिकाएं निभाते हैं, जब संसद में सरकार और विपक्ष मिलकर काम करते हैं तो वह राष्ट्र के हित में होता है। ऐसे में सरकार और विपक्ष के बीच तालमेल चक्र की धुरी की तरह महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि विधायिका में विपक्ष की मुख्य भूमिका सरकार में जवाबदेही और पारदर्शिता उत्पन्न करने का काम है। धनखड़ ने कहा कि भारत इस समय प्रगति पर है और दुनिया भर में अवसर तथा निवेश के लिए सबसे पसंदीदा स्थानों में से एक है। उन्होंने कहा कि यदि जनप्रतिनिधि अपनी शपथ के प्रति सच्चे होते और जनता के ट्रस्टी के रूप में काम करते तो हमारी स्थिति आज और भी अच्छी हो सकती थी।
यह कहते हुए कि युवा लोग इस देश में शासन के सबसे बड़े हितधारक हैं, उन्होंने कहा कि इस समय युवाओं का भविष्य दांव पर है, इसलिए युवाओं को अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि वे 2047 में भारत को तैयार करने के अभियान के सैनिक हैं जबकि भारत अपनी स्वाधीनता की शताब्दी मना रहा होगा।
उप राष्ट्रपति ने जनप्रतिनिधियों को लोगों के लिए आदर्श माना जाता है और लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की उनकी जिम्मेदारी है, धनखड़ ने शासन में कार्यकारी जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए जन प्रतिनिधियों की सर्वोपरि भूमिका को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि सीपीए (भारत क्षेत्र) लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा करने और उन मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है। समापन समारोह में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी और ब्रिटेन की संसद में जनप्रतिनिधि और सीपीए के अध्यक्ष इयान लिड्डेल्ल-ग्रेंजर भी थे।