पटना। भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा है। खुशियों और उल्लास से भरे दीपावली यानी दीपों के त्योहार को लोग हमेशा धूम-धाम से मनाते हैं। इस दिन ना सिर्फ लोग अपने परिवार वालों के साथ भगवान गणेश और लक्ष्मी मां की पूजा करते बल्कि दीपोत्सव भी मनाते हैं।
मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम, लंकापति रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटे थे। जिसके बाद लोगों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। दीपों के इस त्योहार की तैयारी कितने ही दिन पहले से लोग शुरू कर देते हैं।
अमावस्या की अंधेरी रात में दीये की जगमगाती रोशनी से चारों तरफ उजियारा छा जाता है। भले ही आधुनिकता के चलन में दीयों का स्थान रंग-बिरंगी झालरों ने ले लिया हो लेकिन इसके बावजूद दीयों का क्रेज आज भी कम नहीं है।
अंधेरे को चीरते इन खूबसूरत दीयों के बगैर दीपावली का त्योहार अधूरा सा है। दीयों से न सिर्फ दीवाली रोशन होती है बल्कि उनकी रोशनी से मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा आज भी बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीये का इस्तेमाल अधिक करते हैं। मिट्टी के दीये शुद्धता का प्रतीक है। इसीलिए इसे प्राथमिकता दी जाती है।दीपावली के त्योहार को लेकर सजे बाजारों में जहां एक ओर परंपरागत मिट्टी के दीयों की बादशाहत अभी भी कायम है वहीं दीयों के साथ सजावट के सामान, झालरों और मूर्तियां भी बाजार की रौनक बढ़ा रहे हैं।
दीपावली मनाने के तौर-तरीकों में तमाम बदलाव आए हैं लेकिन मिट्टी के दीये जलाने का ट्रेंड आज भी वैसा ही है। हालांकि दीयों के पैटर्न और स्टाइल में जबर्दस्त बदलाव देखने को मिला रहा है। राजधानी पटना के बाजारों में दीपावली को लेकर रौनक देखी जा रही है। अधिकांश चौक-चौराहों पर दीवाली के बाजार सज गये हैं,जहां अलग-अलग तरह के दीये, रंगोली, खिलौने समेत अन्य सजावटी सामान मिल रहे हैं। बाजार में चाइनीज लाइट होने के बावजूद भी पारंपरिक दीया स्टैंड, गोल्डन पेंटेड दीए और कंदीलों के प्रति खासा आकर्षण देखा जा रहा है। ये कई रंगों, आकारों और कीमत में उपलब्ध हैं।
पारंपरिक दीयों के साथ ही कई सजावटी दीये भी मिल रहे हैं। बाजार में इस साल काफी अलग-अलग तरह की मिट्टी के दीये हैं, जिसमें पारंपरिक दीया 80 रुपये से सौ रुपये प्रति सैकड़ा है, डिजाइनर सिंगल दीया तीन रुपये पीस, डिजाइन वाले बड़े दीये दस रुपये पीस, मैजिक दीया 40 रुपये, स्टैंड दीया 60 रुपये , ढक्कन वाले दीये 80 रुपये पीस उपलब्ध हैं।
दीपावली हर घर में खुशियां लाता है। इस त्योहार पर हर व्यक्ति अपना घर रोशन करता है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर दीये और कलश बनाने में जुटे हुये हैं। मिट्टी नहीं मिलने की समस्या के बावजूद शहर में मिट्टी के बर्तन और दीयों का कारोबार दीपावली पर चमक उठता है, इसी उम्मीद के साथ न केवल बाजार में दुकानें सजी हुई हैं बल्कि मिट्टी के बर्तन बनाने का काम तेज हो गया है।
मिट्टी के बर्तन व्यवसायियों का कहना है कि भले ही आधुनिक साजो-सामान, लाइटिंग के ट्रेंड आ गए हों लेकिन आज भी मिट्टी के दीये और कलश ही दीपावाली पर सबसे ज्यादा बिकते हैं। बाजारों में हर बार की तरह लुक-झुक करती लाइटों और दीयों की जमकर खरीददारी होती है। पहले तो दीपावली पर पारंपरिक मिट्टी के दीये ही लगाए जाते थे लेकिन अब बदलते समय के साथ फैशनेबल दीयों का चलन बढ़ गया है।
दीयों का उपयोग दीवाली के दिन घर सजाने के लिए तो होता ही है, साथ ही यह उपहार में भी दिये जाते हैं। बाजार में इन दिनों दीये भी विभिन्न प्रकार के आ रहे हैं। डिजाइन वाले दीये लोगों को लुभा रहे हैं। इस वर्ष विशेष तौर पर टेराकोटा के बने जादुई दीये बाजार में बिक रहे हैं, जो दस घंटे तक लगातार जल सकते हैं। इसके अलावा मोम के सुंदर दीये, इलेक्ट्रानिक दीये, बैटरी से घूमने वाले दीये भी बाजार की शोभा बढ़ा रहे हैं।