अजमेर। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. विकास सक्सेना ने हाल ही में आधुनिक और परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों की प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।
भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध परिषद तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में यह अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इसका विषय समसामयिक पाश्चात्य स्वास्थ्य पद्धति के साथ परम्परागत भारतीय उपचार पद्धतियों का संकलन था। इसमें विश्व के लगभग 15 देशों के प्रतिनिधियों तथा देश के 50 से अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया।
पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान पर आधारित होती है। साथ ही परम्परागत उपचार प्रणालियां अनुभवजन्य होती है। आधुनिक पद्धतियां बिमारी को नष्ट करने तथा परम्परागत प्रणालियां स्वास्थ्य को सुदृढ़ करके मानव कल्याण करती है।
इस संगोष्ठी के आयोेजन का उद्देश्य मुख्य धारा की साईकाथैरेपी तथा काउन्सलिंग में परम्परागत प्रणालियों की भुमिका तलाशना रहा। इससे बिमार व्यक्ति की सांस्कृतिक संवेदनशीलता के आधार पर उपचार करने की सुविधा प्राप्त हो सकेगी।
जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. विकास सक्सेना ने बताया कि राजकीय नर्सिंग कॉलेज अजमेर में तीन माह तक इस सम्बन्ध में शोध किया गया। इस शोध के परिणामों के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष को संगोष्ठी में प्रस्तुत किया गया।
स्वास्थ्य संगठन के 19 देशों के विशेषज्ञों के द्वारा बनाए गए प्रश्नों के आधार पर शोध को आगे बढ़ाया गया। शोध के लिए परम्परागत भारतीय उपचार प्रणालियों में से राजयोग की हृदय आधारित पद्धति को चुना गया। इस प्रकार लगातार 12 सप्ताह तक हार्टफुलनेस के सत्र आयोजित कर शोध किया गया।
उन्होंने बताया कि शोध के निष्कर्षों में सांख्यिकी विज्ञान की मदद ली गईं। आधार पर शोध की पी-वैल्यू एक्ट्रीमली सिग्निफिकेन्ट के वर्ग में आंकी गई। यह प्रभागियों को सीधे सकारात्मक प्रभावित करने वाली श्रेणी होती है। शोध में चार आयामों सामाजिक, शारीरिक, परिवेशिय तथा भावनात्मक पर फोकस किया गया।
सबसे ज्यादा प्रभाव भावनात्मक तथा परिवेश स्तर पर दर्ज किया गया। सामाजिक आयाम में सकारात्मक परिवर्तन हुए। शारीरिक आयाम के अन्र्तगत प्रतिभागियों की रूग्णता में शोध के दौरान कमी रिकॉर्ड की गई।
उन्होंने बताया कि इस शोध में काम में ली गई हार्टफुलनेस पद्धति के शिथिलीकरण, ध्यान, शुद्धिकरण एवं प्रार्थना का उपयोग वैज्ञानिक तरीके से स्वास्थ्य शिक्षा में करने से विद्यार्थियों तथा भवि6य के चिकित्सा प्रदाताओं के साथ-साथ समाज के लिए भी फायदेमन्द होगा।
चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने वाले स्नातक स्तरीय विद्यार्थियों में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर पर जीवन के दृष्टिकोण में बदलाव आता है। सकारात्मक अथवा नकारात्मक बदलाव से उनके जीवन में गुणवत्ता और व्यवहार मूर्त रूप ग्रहण करते हैं। इससे व्यक्तिगत जीवन तथा सेवाओं पर भी सकारात्मकता प्रतिबिम्बित होती है।
आदर्श चिकित्सा शिक्षा के अन्तर्गत बौद्धिक और कौशल विकास के साथ-साथ भावनापूर्ण दिल का भी विकास किया जाना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जीवन की गुणवत्ता निर्धारण में अनुभूति की विशेष भूमिका होती है।
उन्होंने बताया कि दिल में अनूभूति को भारतीय परम्परागत आध्यात्मिक प्रणालियां सकारात्मक तरीके से प्रभावित करती है। हार्टफुलनेस पद्धति से हृदय पर ध्यान करके अनुभूति में अभिवृद्धि की जा सकती है। इससे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।