सबगुरु न्यूज। सावन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायकी चतुर्थी और दूर्वा गणपति व्रत तिथि कहते हैं। इस दिन भगवान गणेश को दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाने की परंपरा है। रविवार को चतुर्थी होने से इस दिन गणेशजी के साथ ही सूर्यदेव की भी विशेष पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गणेशजी चतुर्थी तिथि के स्वामी हैं और रविवार का कारक ग्रह सूर्य है।
रविवार और चतुर्थी के योग में सुबह जल्दी उठें, स्नान के बाद गणेशजी का ध्यान करें और सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। इसके लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें। लोटे में चावल और लाल फूल जरूर डालें। सूर्य मंत्र ऊं सूर्याय नम: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
सूर्य पूजा के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। गणेशजी को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं। चावल सहित अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।
गणेश मंत्र ओम गं गणपतयै नम: बोलते हुए दूर्वा की 21 गांठ च?ाएं। लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर से आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले व्यक्ति को शाम को चंद्र दर्शन करने की परंपरा है।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ मंत्र का जाप करें। अगर आप चाहें तो श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। मंत्र जाप सही उच्चारण के साथ करना चाहिए। इस प्रकार सुबह पूजा करें।
व्रत में फलाहार, पानी, दूध, फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है। दिनभर भगवान का ध्यान करें और अधार्मिक कामों से बचें, सूर्यास्त के बाद गणेशजी के सामने दीपक जलाएं। पूजा करें। इसके बाद उनके मंत्रों का जाप कम से कम 108 बार करें। मंत्र- एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
पूजा पूरी होने के बाद अन्य भक्तों को प्रसाद वितरित करें और गणेशजी से दुख दूर करने की प्रार्थना करें। पूजा में हुई अनजानी भूल के लिए गणेशजी से क्षमा अवश्य मांगे।
ध्यान रखें पूजा के दौरान परिक्रमा करते समय गणेशजी की पीठ के दर्शन न करें। मान्यता है कि भगवान गणपति की पीठ पर दरिद्रता का वास होता है। इस वजह इनकी पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए।
श्रीगणेश और दूर्वा की पौराणिक कथा
हम सभी यह जानते हैं कि श्रीगणेश को दूर्वा बहुत प्रिय है। दूर्वा को दूब भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की घास होती है, जो सिर्फ गणेश पूजन में ही उपयोग में लाई जाती है। आखिर श्रीगणेश को क्यों इतनी प्रिय है दूर्वा? इसके पीछे क्या कहानी है? 21 दूर्वा ही श्रीगणेश को क्यों चढ़ाई जाती है? इन सब सवालों के जवाब इस पौराणिक कथा में मिलते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें।
तब महादेव ने समस्त देवी-देवताओं तथा मुनि-ऋषियों की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी।
इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा एकत्र कर समूह बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। यह दूर्वा श्रीगणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।