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dushyant chautala on chaudhary devi lal death anniversary-हरियाणा की राजनीति को क्षेत्रवाद और जातिवाद से सिर्फ जननायक चौधरी देवीलाल की नीतियां उबार सकती हैं - Sabguru News
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हरियाणा की राजनीति को क्षेत्रवाद और जातिवाद से सिर्फ जननायक चौधरी देवीलाल की नीतियां उबार सकती हैं

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हरियाणा की राजनीति को क्षेत्रवाद और जातिवाद से सिर्फ जननायक चौधरी देवीलाल की नीतियां उबार सकती हैं

प्रदेश के बदले हुए राजनीतिक हालात में इस वर्ष पड़दादा जननायक चौधरी देवीलाल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करना मेरे लिए एक भावुक पल है, लेकिन जैसे-जैसे मैं उनके राजनीतिक संघर्ष और सफर को याद कर रहा हूं, मुझे भावुकता के साथ रोमांच और गजब की प्रेरणा महसूस हो रही है। चौटाला से चंडीगढ़ और फिर दिल्ली तक की जननायक की यात्रा किसी विजयगाथा से कम नहीं, संघर्ष-त्याग-बुलंदी समेटे किसी ग्रंथ से कम नहीं।

मैंने अपने पड़दादा के स्वर्गवास के 13 साल बाद राजनीतिक जीवन में कदम रखा और आज उन्हें गए 18 साल हो गए। लोगों के जहन में उनकी यादें, जुबान पर उनके किस्से ज्यों के त्यों ताज़ा हैं और सूबे की राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र आज भी वे ही हैं।

कुछ वर्षों बाद 1930 की उस घटना के 100 साल पूरे हो जाएंगे जब 16 साल के देवीलाल पहली बार जेल गए। एक सदी का यह चक्र अपने भीतर एक शख्स के प्रयासों, त्याग और सफलताओं की जो गाथाएं समेटे है, वही सब एक आम किसान के बेटे को जननायक बनाता है।

वैसे तो उनके बचपन से लेकर आखिरी वक्त तक सैकड़ों बातें याद की जा सकती हैं लेकिन मैं चौधरी देवीलाल के जीवन में 4 महत्वपूर्ण पड़ाव मानता हूं जो ऐतिहासिक हैं और कालजयी हैं, यानी जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा। पहला आज़ादी की लड़ाई जिसमें उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत और अपने देश के उन नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ भी संघर्ष किया जो किसानों-मजदूरों और कामगारों के अधिकारों पर डाका डाल रहे थे।

दूसरा हरियाणा के गठन की लड़ाई जिसके नायक खुद चौधरी देवीलाल थे। हरियाणा के गठन का दौर तो पंजाब के तत्कालीन नेताओं के खिलाफ उनकी हिम्मत और हिंदी भाषी हरियाणा के क्षेत्रों के साथ हो रहे भेदभाव पर उनके आक्रोश से ओतप्रोत रहा। तीसरा आपातकाल के दौरान चौधरी देवीलाल का संघर्ष जब देश की सरकार ही अपने लोगों की आवाज़ को दबा रही थी।

चौथा वक्त वो जब ताऊ देवीलाल को देश की राजनीति में भूमिका निभाने की जिम्मेदारी मिली और उन्होंने अद्भुत नेतृत्व का परिचय देते हुए सर्वोच्च राजनीतिक त्याग की मिसाल कायम की।
ये चार अवसर इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इन सभी के बाद देश या प्रदेश में बड़ा परिवर्तन आया। आज़ादी के संघर्ष की बदौलत ना सिर्फ देश आज़ाद हुआ बल्कि देश के संविधान और सरकारी तंत्र में किसान-कमेरों और ग्रामीणों को जगह मिली।

हिन्दी भाषी क्षेत्रों के साथ पंजाब की सरकार में हो रहे भेदभाव के खिलाफ जब देवीलाल खड़े हुए तो हमें एक नया राज्य मिला जो आज लगभग हर मामले में पंजाब से आगे है। आपातकाल में चौधरी देवीलाल के आंदोलनों ने विशेषकर उत्तर भारत में राजनीतिक क्रांति लाई, जनता पार्टी और फिर लोकदल का उदय किया।

फिर 80 के दशक में न्याय युद्ध के माध्यम से लोगों को एकजुट कर उन्होंने ना सिर्फ हरियाणा में तख्तापलट किया बल्कि खुद केंद्र की राजनीति में शीर्ष स्थान हासिल किया। देश की संसद में प्रधानमंत्री बनने के लिए पहुंचे और कहा कि मैं तो ताऊ हूं, ताऊ रहकर ही खुश हूं।

ये चार मुख्य तौर पर वे अवसर थे जब चौधरी देवीलाल के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां थीं और उन्होंने टकराने का निर्णय लिया। उनके जहन में सबसे ऊपर किसान और गांवों में बसने वाले कमेरे लोग थे। शहर के छोटे व्यापारियों व हाथ का काम करने वाले लोगों को भी वे साथ रखते थे। संघर्ष का उनका रास्ता भी इन्हीं लोगों से होकर गुजरता था।

एक बार निर्णय ले लेने के बाद वे सीधा लोगों के बीच पहुंच जाते थे और उनका साथ लेकर, उनकी भागीदारी लेकर टकरा जाते थे, फिर चाहे सामने अंग्रेज हों, पुराने पंजाब के नेता हों, आपातकाल के दमनकारी नायक हों या फिर भ्रष्ट हो चुकी देश-प्रदेश की कोई सरकार हो।

मैं जब उनके सफर को याद करता हूं तो मेरा रोम-रोम रोमांचित हो उठता है और मैं अपने भीतर एक दैविक ऊर्जा व रोमांच महसूस करता हूं। पड़दादा चौधरी देवीलाल का सफर हमें प्रेरणा देता है कि मुश्किल वक्त में घबराना तो बिल्कुल नहीं है, बल्कि और ज्यादा संजीदगी, और ज्यादा ताकत के साथ आगे बढ़ना है। देवीलाल का जीवनदर्शन हमें सिखाता हैं कि जो आम लोग हमें नेतृत्व और ताकत देते हैं, उनके लिए अपना सुख-चैन छोड़कर संघर्ष करना हमारा दायित्व है।

देवीलाल सिखाते हैं कि क्षेत्रवाद और जातिवाद पर छोटी सोच के नेता चलते हैं, समाज में वर्ग दो ही हैं, कमेरा और लुटेरा। राजनेता का काम कमेरों के हकों की रक्षा करना और लुटेरों को समाज से भगाना है। देवीलाल जब कहते हैं कि ‘हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पर कपड़ा, हर सिर पर मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी’, तो किसी राजनेता को मानो मूलमंत्र मिल जाता है।

पहली बार जब वे मुख्यमंत्री बने तो दिसंबर 1978 में चौधरी चरण सिंह के जन्मदिवस पर विशाल जलसा करते हैं और लाखों किसानों के सामने गर्व के साथ कहते हैं, ‘मैं पहले किसान का बेटा हूं, मुख्यमंत्री बाद में’।

गांव में रहे तो छोटे किसानों के हकों के लिए बड़े जमींदारों और साहूकारों से लड़े, जेल में रहे तो कैदियों को अच्छा खाना दिलवाने के लिए जेलर से लड़े, हरियाणा बनवाने की बात आई तो पंजाब के नेताओं से लड़े, एमरजेंसी में अत्याचारों का सामना किया। उनके जीवन से एक और सीख मिलती है कि जब दमन की हद हो जाए और अन्याय होने लगे तो बगावत भी जरूरी है।

पड़दादा के बारे में जितना लिखूं उतना कम है क्योंकि एक के बाद एक बातें याद आती जाती हैं जो कभी अपने दादाओं से सुनी, कभी अपने पिता से और कभी उन साहित्यकारों की लेखनी ने बताई जिन्होंने जननायक पर दर्जनों किताबें लिखी हैं। उनकी 19वीं पुण्यतिथी पर हम उन्हें एक बदली हुई परिस्थिती में याद कर रहे हैं।

उनके आदर्शों से इस चुनौतीपूर्ण समय में हमें ना सिर्फ आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है बल्कि अपने राजनीतिक दायित्व को पूरा करने का रास्ता भी दिखता है। जननायक जनता पार्टी के गठन का फैसला और संगठन का निर्माण आसान नहीं था, लेकिन जैसे ही हमने पार्टी के नाम में देवीलाल जी की उपाधि को शामिल किया, सब कुछ सरल होता गया। मेरे पूरे परिवार, जननायक जनता पार्टी, जननायक सेवादल और इनसो से जुड़े हर कार्यकर्ता की ओर से जननायक चौधरी देवीलाल को शत शत नमन।

-दुष्यंत चौटाला, सांसद, हिसार