जकार्ता । चार साल पहले की बात है जब ओड़िशा की एथलीट दूती चंद को जेंडर विवाद के चलते भारत की ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों की टीम से बाहर कर दिया गया था लेकिन जीवट और हौंसले की धनी इस एथलीट ने 18वें एशियाई खेलों में महिलाओं की 100 मीटर स्पर्धा का रजत जीतकर अपना खोया सम्मान वापिस पा लिया।
दुती ने अपने करियर में एक ऐसा दौर गुजारा था जब उन्हें हर पल अपमान भरे शब्दों से गुजरना पड़ता था। यह ऐसा समय था जो किसी भी खिलाड़ी को मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ सकता था। उनके अपने गांव के लोग पूछते थे कि क्या वह पुरूष हैं। किसी भी महिला एथलीट के लिये यह सबसे अपमानजनक शब्द हो सकते थे लेकिन दुती ने ऐसे प्रतिकूल हालात से निकलकर जो वापसी की और जैसा प्रदर्शन उन्होंने कल जकार्ता में 100 मीटर के फाइनल में किया वह भारतीय खेल इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया।
22 साल की दुती को लंबे समय तक ऐसी परिस्थितियों में जीना पड़ा था जब स्वभाविक रूप से उनका टेस्टोस्टोरोन स्तर ऊंचा हो जाता था और उनपर पुरूष होने का आरोप लगा था जिसके चलते वह एक साल तक अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पायी थीं। उनकी अपील पर लुसाने स्थित खेल मध्यस्थता अदालत ने उनपर लगा आईएएएफ का प्रतिबंध हटा दिया था जिससे वह 2016 के रियो ओलंपिक में हिस्सा ले पायी थीं।
दुती ने फाइनल में 11.32 सेकंड का समय लिया और स्वर्ण विजेता एडिडियोंग ओडियोंग के 11.30 सेकंड के समय से मामूली अंतर से पिछड़कर रजत जीता। स्पर्धा समाप्त होने के बाद विजेताओं के लिए फोटो फिनिश का सहारा लिया गया जिसमें दुती का नाम दूसरे स्थान पर आते ही भारतीय एथलीट ने तिरंगा अपने कंधों पर उठा लिया। दुती के लिए यह पदक गौरव का क्षण था।
दुती इस तरह देश की महान एथलीट पी टी उषा के 1986 के सोल एशियाई खेलों में 100 मीटर में रजत पदक जीतने के बाद यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय एथलीट बनीं। उन्होंने अपनी स्पर्धा में पदक हासिल करने के बाद कहा,“ मैं अब आपको बता सकती हूं कि मैं कैसा महसूस कर रही हूं। जब मां एक बच्चे को जन्म देती है तो उस समय वह भूल जाती है कि वह कैसी पीड़ा से गुजरी थी। मेरे अंदर भी उसी तरह की अनुभूति है।”
उन्होंने कहा,“ इस पदक से मैं अपने सारे दर्द और अपमान को भूल चुकी हूं। मेरे लिये यह बहुत बड़ा क्षण है। वे कड़वी यादें मुझे इससे पहले तक बहुत परेशान किया करती थीं, लोग पता नहीं क्या क्या कहते थे लेकिन मैंने हर किसी को नज़रअंदाज़ किया और सिर्फ अपने अभ्यास पर ध्यान लगाया। मैंने ईश्वर पर से भरोसा नहीं खोया।”
ओड़िशा की इस एथलीट ने कहा,“ मैं रोजाना छह घंटे अभ्यास करती थी। मैंने स्वर्ण पाने के लिये अपना सबकुछ झोंक दिया लेकिन ईश्वर की मर्जी से मुझे रजत पदक मिला। मैं खुश हूं।” दूती 1980 के बाद से 2016 के रियो ओलंपिक में 100 मीटर में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनी थीं। उन्होंने अपनी कानूनी टीम को भी इस पदक के लिये धन्यवाद किया जिन्होंने कैस में उनका मामला लड़ा था।