भारत में दोहरा संकट टूट पड़ा है। कोरोना वायरस बीमारी और उससे उपजी लॉकडाउन की मजबूरी, आर्थिक और मानवीय संकट।
लॉकडाउन से पूरा देश आर्थिक रूप से प्रभावित हो रहा है। भारत में काम में लगे लोगों में से 20 प्रतिशत से कम नौकरी पर निर्भर है। एक तिहाई दिहाड़ी मजदूर हैं, जो रोज कमाते हैं तो खाते हैं। लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव अन्य देशों के तुलना में बहुत अलग होगा। दुनिया के अन्य देशों में जहां लॉकडाउन किया गया है, वहां ज़्यादातर लोग नौकरीशुदा हैं। वहां सामाजिक सुरक्षा, जैसे कि बेरोजगारी भत्ता की बड़ी व्यवस्था भी है।
उन देशों में सरकारी स्वास्थ्य पर जीडीपी का 8-10 फ़ीसदी खर्च किया जाता है, जबकि भारत में एक फीसदी के आसपास है। सरकार की ओर से कोरोना के ख़िलाफ़ जो रणनीति अपनाई गई है, वह देश के उस हिस्से के लिए है, जो विकसित देश की तरह जीवनयापन करता है। आमदनी या बचत है, जिससे वो आर्थिक रूप से भी लॉकडाउन को झेल सकते हैं। केंद्र सरकार को खाना और नकदी, दोनों तरह की राहत देनी चाहिए. तीन महीनों तक जनधन योजना खाताधारकों को 500 रुपये देने से काम नहीं चलेगा। आर्थिक चुनौती के साथ-साथ यह एक सामाजिक चुनौती भी है।
व्यवसाय और रोजगार के बिगड़ रहे हालात
इस महामारी की वजह से कई देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है, केंद्र सरकार जनता को राहत देने के लिए हर संभव कदम उठा रही है । पहले लॉकडाउन लगाने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर अपने संबोधन में कहा था कि देश को अर्थव्यवस्था को लेकर भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । देश में कोरोना वायरस तेजी से फैलने के बाद केंद्र सरकार ने पहले 21 दिनों का लॉकडाउन किया था। यह लॉकडाउन डाउन 14 अप्रैल तक प्रभावी था उसके बाद स्थिति और बिगड़ने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे 3 मई तक फिर बढ़ा दिया है।
जाहिर है किसी देश में लगभग 40 दिनों का लॉकडाउन लगातार चलता रहे तो अनुमान लगाया जा सकता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था जरूर संकट में आ जाएगी। यानी सब कुछ अस्त-व्यस्त, व्यापार, नौकरी,धंधा सब जहां का तहां बुरी तरह प्रभावित होता है। ऐसे ही हमारे देश में इन दिनों अर्थव्यवस्था का हाल बुरे दौर में है। लॉकडाउन होने की वजह से हर रोज करोड़ों अरबों रुपये का रोज जबरदस्त घटा हो रहा है।
आरबीआई ने भी माना अर्थव्यवस्था बुरे दौर में
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि बुरे दौर से गुजर रहे हैं। कोरोना संकट की वजह से जीडीपी की रफ्तार घटेगी, लेकिन बाद में ये फिर तेज रफ्तार से दौड़ेगी। उन्होंने कहा कि कोरोना की वजह से ग्लोबल इकोनॉमी आर्थिक मंदी के दौर में जा सकती है। इसके बाद भी भारत की जीडीपी विकास दर बेहतर रहने की उम्मीद जताई गई है। आईएमएफ ने भले ही भारत के लिए 1.9% जीडीपी ग्रोथ का अनुमान जताया है, लेकिन यह अनुमान जी-20 समूह के बाकी देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है। गवर्नर ने आगे कहा कि दुनिया में बड़ी मंदी का अनुमान है, हम सबसे बुरे दौर में हैं।
फिर भी बैंकिंग सेक्टर मजबूती से खड़ा है। या हम आपको बता दें कि पिछले 1 साल से भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे खराब दौर चल रहा है। अब कोरोना और देश में जारी लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी है। जब भी कोरोना वायरस का कहर भारत से हटेगा केंद्र की मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती साबित होगा।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार