नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने मतदान बाद एक्ज़िट पोल के परिणामों को 23 मई के नतीजों की दिशा करार देते हुए सोमवार को कहा कि 2019 का राजनीतिक संदेश यह है कि नए भारत में जातिवाद एवं वंशवाद राजनीति की जगह प्रतिभाओं एवं वैचारिक स्पष्टता वाली पार्टियों को ही जगह मिलेगी जो कामकाज पर केन्द्रित होंगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यहां एक लेख में कहा कि अगर राजनीतिक दल इस संदेश को नहीं स्वीकारेंगे तो उनके एवं मतदाताओं के बीच खाई और बढ़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि हममें से ज़्यादातर लोग एक्ज़िट पोल की प्रामाणिकता एवं सटीकता को लेकर बहस को जारी रख सकते हैं।
पर सच यह है कि जब अनेक एक्ज़िट पोल एक ही संदेश दे रहे हों तो परिणामों की दिशा मोटे तौर पर उसी तरफ होती है। एक्ज़िट पोल निजी साक्षात्कार पर आधारित होते हैं। ईवीएम की इसमें कोई भूमिका नहीं होती है। यदि एक्ज़िट पोल के परिणाम 23 मई के अंतिम नतीजे एक ही दिशा में रहते हैं तो विपक्ष का ईवीएम का फर्जी मुद्दा बेदम हो जाएगा।
जेटली ने कहा कि यदि 2014 के चुनावी परिणामों को एक्ज़िट पोल के साथ पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय लोकतंत्र तेजी से परिपक्व हो रहा है। मतदाता चुनाव में वोट डालने से पहले राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है। जब एक समान सोच वाले पढ़े लिखे लोग एक ही दिशा में वोट देते हैं तो इससे लहर बनती है। लोकतंत्र की इस परिपक्वता के कुछ राजनीतिक संदेश भी निकले हैं।
उन्होंने कहा कि वंशवाद एवं जातिवाद पार्टियां और बाधा डालने वाले वामदलों को 2014 में झटका लगा था। 2019 में यही झटका और जोर से लगेगा। प्रतिद्वन्द्वियों के गठबंधन अस्थिर गठजोड़ हैं और मतदाता अब उन पर भरोसा नहीं करते।
राजनीतिक पंडित भ्रमित हैं लेकिन मतदाताओं में कोई भ्रम नहीं है। वे त्रिशंकु संसद नहीं चुनते है जहां अस्थिर एवं बदसूरत गठबंधन अगुवा होते हैं। उन्होंने कहा कि जातिवादी गठबंधनों की अंकगणित चुनावों में बढ़त बनाने वाले की रसायनिकी से बिगड़ जाते हैं। यह रसायनिकी राष्ट्रीय हितों पर लोगों की कल्पना से तैयार होती है। फर्जी मुद्दे केवल फर्जीवाड़ा गढ़ने वालों को संतुष्ट करते हैं, मतदाता उन पर भरोसा नहीं करते।
जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध निजी अभियान 2014 में कुछ असर नहीं डाल पाया और 2019 में भी नहीं कर पाएगा। नेताओं को गुणों के आधार पर परखा जाता है, न कि जाति या वंश के आधार पर।
इस प्रकार से प्रधानमंत्री की जाति से ऊपर उठने की शैली एवं प्रदर्शन से जुड़े मुद्दों पर फोकस करने को मतदाताओं की अधिक स्वीकार्यता हासिल हुई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का प्रथम परिवार एक संपत्ति नहीं बल्कि पार्टी की गर्दन में फांस के समान हो गई है। बिना परिवार के उन्हें भीड़ नहीं मिलती और उनके रहने से वोट नहीं मिलते।
उन्होंने कहा कि अधिकतर राजनीतिज्ञों का मानना है कि वे ही सबसे बुद्धिमान हैं, इससे वे किसी भी कठोर समाधान खोजने के हक में नहीं होते हैं। उभरता नया भारत केवल सुसंगठित पार्टियाें को ही स्वीकार करेगा जो प्रतिभा और वैचारिक स्पष्टता के साथ प्रदर्शन पर केन्द्रित हैं। यदि राजनीतिक दल 2014 के संदेश जो संभवत: 2019 में भी आने वाला है, को स्वीकार नहीं करेंगे तो उनके एवं मतदाताओं के बीच खाई और चौड़ी होगी।