नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश पुलिस ने कानपुर के बिकरू गांव के दुर्दांत अपराधी विकास दुबे एवं उसके गुर्गों के साथ मुठभेड़ का उच्चतम न्यायालय में बचाव करते हुए शुक्रवार को कहा कि इन मुठभेड़ों को किसी भी प्रकार से फर्जी मुठभेड़ नहीं कहा जा सकता।
पुलिस की ओर से हलफनामा दायर करके शीर्ष अदालत को बताया गया है कि मुठभेड़ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के सभी दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन किया गया है। पुलिस ने विकास दुबे के मामले में दावा किया है कि हिरासत में होते हुए भी पुलिस का हथियार छीनकर भागने की कोशिश कर रहे और पुलिसकर्मियों को निशाना बना रहे अपराधी पर आत्मरक्षार्थ गोली चलायी गयी थी, जिसमें दुबे मारा गया था।
पुलिस का कहना है कि मुठभेड़ के बाद शीर्ष अदालत के दिशानिर्देश के अनुसार राज्य सरकार ने न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है, जो मुठभेड़ की जांच कर रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ दर्ज सभी आपराधिक मामलों की सूची अपने हलफनामे के साथ न्यायालय को सौंपी है। इसके अलावा घटनास्थल पर पलटी पुलिस की गाड़ी की फ़ोटो, विकास दुबे के शव की फ़ोटो, बिकरू गांव में दुबे के हाथों मारे जाने वाले पुलिसकर्मियों की तस्वीरें भी न्यायालय को साझा की गई है।
उत्तर प्रदेश पुलिस के हलफनामे में कहा गया है कि दुबे कुख्यात गैंगस्टर था, जिस पर 64 मामले दर्ज थे। दो-तीन जुलाई की मध्य रात्रि को उसे पकड़ने पहुंची पुलिस टीम पर पूरी योजना बनाकर उसने हमला करवाया। पुलिस पर हमलावरों में कम से कम 80 से 90 अपराधी शामिल थे। इस घटना में आठ पुलिसकर्मी मारे गए। सर्किल ऑफिसर को गोली से छलनी करने के बाद उनका पैर भी काटा गया। विकास दुबे अपनी दहशत फैलाना चाहता था।
हलफनामा के अनुसार घटना के बाद सभी फरार हो गए थे। अगले दिन विकास के घर से भारी मात्रा में हथियार मिले, जिन्हें दीवारों और छत में छुपाया गया था। तलाशी के दौरान जब बिल्डिंग कमज़ोर हो गई और आगे की तलाश सुरक्षित नहीं रही, तब जेसीबी से मकान को गिराना पड़ा। बाद में विकास के कई सहयोगियों को पकड़ा गया। अमर दुबे समेत विकास दुबे के कुछ गुर्गों ने गिरफ्तारी की कोशिश के दौरान पुलिस टीम पर हमला भी किया और जवाबी कार्रवाई में उनकी मौत हुई।
पुलिस ने शीर्ष अदालत को बताया है कि विकास दुबे ने आत्मसमर्पण नहीं किया था, बल्कि उसे उज्जैन पुलिस ने पकड़ा था। ग्वालियर में मौजूद उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम ने उज्जैन जाकर दुबे को अपने कब्जे में लिया। बाद में गुना में दूसरी टीम ने उसे अपने साथ लिया। इसलिए गाड़ी बदल दी गई थी। उज्जैन से गुना तक विकास दुबे ‘यूपी32बीजी 4485’ नंबर की गाड़ी में था, वहां से आगे ‘यूपी70एजी 3497’ नंबर की टीयूवी में।
पुलिस का कहना है कि काफिले में एस्कॉर्ट के लिए तीन गाड़ियों में 15 पुलिसकर्मी थे। विकास को दो कांस्टेबल के बीच बैठाया गया था, इसलिए उसे हथकड़ी नहीं लगायी गयी थी। कानपुर से 25 किलोमीटर पहले भारी बारिश और सड़क पर मवेशियों के आ जाने के चलते गाड़ी पलट गई थी।
विकास ने पुलिसकर्मी की पिस्टल छीनकर भागने लगा। उसे समर्पण करने के लिए कहा गया, लेकिन वह गोलियां चलाता रहा। गोली चलाने के दौरान वह जब पुलिस टीम के तरफ मुड़ा था, तभी उसे पुलिस की तीन गोलियां सामने से लगी थीं।
हलफनामे में कहा गया है कि यह कहना गलत है कि वह पैर में रॉड लगी होने के चलते भागने में सक्षम नहीं था। वह पूरी तरह से सक्षम था। घटनास्थल से दो किलोमीटर पहले मीडिया की गाड़ियों को रोकने का आरोप गलत है। वे गाड़ियां चेक पॉइंट पर जाम में फंस गई थीं।
घटना के तुरंत बाद दो चैनलों की टीमें वहां पहुंच गई थी। इस पूरे मामले में कहीं से भी पुलिस टीम की भूमिका संदिग्ध नहीं रही है। फिर भी मामले की जांच के लिए न सिर्फ एसआईटी का गठन किया गया है, बल्कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में कमेटी भी बनाई गई है।
इस मामले की सुनवाई 20 जुलाई को होनी है। शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान हैदराबाद की तरह ही तथ्यान्वेषी समिति गठित करने के संकेत दिए थे।