पर्यावरण | सृष्टि के आरम्भ से ही मानव और प्रकृति का साथ है। वाय, जल, अन्न, और वस्त्र सभी तो हमें प्राकृतिक संपदा से ही मिलती है। प्रातःकाल का सुर्य, सायंकाल का चन्द्रमा, काले बादल और लहलहाते खेत हमें एक नयी ऊर्जा प्रदान करते हैं। भारत तो सबसे प्रिय स्थलों में एक है जहां भूतल के वातावरण और प्राकृतिक धरोहर के कारण सभी उल्लासमय बनता है। जहां प्रजंड गर्मी भी पडती है तो प्रबल शीत, अत्यधिक वर्षा तो हल्की गुनगुनी बंसत का भी आगमन होता है।
प्रकृति के कारण नव जीवन का संचार होता है परन्तु कुछ सालों से स्वयं धरती भी आपदा का कारण बन रही है। जो कि मनुष्य की भूल की वजह से हो रहा है। अत्यधिक प्रदुषण के कारण सभी विनाश की ओर जा रहे हैं। मनुष्य प्रकृत्ति के सौन्दर्य को नष्ट करते जा रहा है। यहां तक कि पहाड़ो को तोड़ कर समतल बनाया जा रहा है। सभी प्रकार के वृक्ष नष्ट होते जा रहे हैं।
जिस धरती मां ने हमें सब कुछ दिया आज हम उसी का सीना काट रहे हैं। धरती से कोयला, रेत निकालते उसे खोखला कर दिया जा रहा है। विकास के नाम पर हजारों पेड़ों को काट दिया जाता है। नतीजन हरियाली और स्वस्थ हवा दोनों का नुकसान हो रहा है। सुर्य की किरणें सीधे व्यक्ति के शरीर पर पडती है। तापमान आज 50‘के ऊपर जा रहा है। हिमालय पिघल रहा है। ग्लेशियर पिघलने के कारण समुद्र में गंदे पानी का स्तर बढ़ता जा रहा है। जो बहुत ही चिंता का विषय बनते जा रहा है।
एक फसल के आने पर 150 से 180 दिन का समय लगता है। और 16000 मिलियन लीटर से अधिक पानी लगता है। तब जाकर कही 1किलो गेहूं या चांवल की उत्पत्ति होती है। पर्यावरण प्रदूषण कई रूपों में सामने आ रहा है। भूमि, जल, और वायु प्रदूषण। धरती के ताप को यदि कम करना है तो हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने के साथ साथ जल का भी संरक्षण करना होगा। जो भी जल के साधन है उन्हें स्वच्छ और साफ करना होगा। हम सबको समय रहते इसका निदान करना आवश्यक है। वायु प्रदूषण की रोक तभी संभव है, जब उघोग धंधों की दुषित वायु को वायुमंडल में फैलने न दे। इसके लिए उपयुक्त फिल्टरो को लगाना चाहिए।
उर्वरकों का प्रयोग जो कि भूमि के उपजाऊ तत्व को खतम कर रहा है। कीटनाशक दवाईयों का उपयोग हो रहा है जिसके कारण कैंसर जैसी बीमारियां ज्यादा फैल रही है। मनुष्य के साथ साथ पशु पक्षी और अनय प्राणी भी शुध्द वायु के लिए छटपटा रहे हैं। हम सब को समय रहते इसका निदान करना आवश्यक है। शहर बढकर जंगलों की ओर बढ रहा है। सभी जीव जन्तु नष्ट हो रहे हैं।
हम सब को पर्यावरण बचाने के लिए बेहद काम करना होगा। मानव सौंदर्य की जगह मनुष्यों में जरा जरा सा प्राकृतिक सौंदर्य को बचाने, संवारने की सोच और क्षमता आ जाये तो पृथ्वी पुनः हरी भरी हो सकती है। गंगा जमुना जैसे विशाल नदियां भी अपनी पवित्रता और शुध्दता खो चुकी हैं। इन सबसे बचने के लिए हमें व्यक्तिगत नहीं पुरे विश्व की तरफ से सोचना और उचित कदम उठाना चाहिए। जीवन को सुखमय और कल्याण कारी बनाने के लिए पर्यावरण प्रदूषण को दूर करना ही होगा। अन्यथा कुछ समय बाद कुछ भी हमारे वश में नहीं होगा।