नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो और भारतीय रिजर्व बैंक के कामकाज में हस्तक्षेप के मोदी सरकार पर लग रहे आरोपों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि संस्थानों के सुचारु रुप से काम नहीं करने से किसी भी देश का असफल होना निश्चित है।
डा. सिंह ने शांति, सदभावना एवं प्रसन्नता की ओर: संक्रमण से परिवर्तन पर यहां एक राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में शांति एवं सदभावना बनाए रखने के लिए शासन व्यवस्था के सभी संस्थानों का सुचारु रुप से काम करना आवश्यक है। इसके अलावा इन संस्थानों को अनिवार्य रुप से पक्षपात रहित, तथ्यपरक तथा समाज के सभी वर्गों के हित में काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से प्रमुख संस्थानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। संस्थानों के कमजोर होने से शासन व्यवस्था के अन्य निकायों के कामकाज पर विपरीत असर पड़ता है और उन पर भरोसा घटता है। ऐसी स्थिति में समाज, अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था में अराजकता पैदा हो सकती है। संस्थानों की सुचारु रुप से काम नहीं करने से किसी भी देश का असफल होना निश्चित है।
इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पूर्व उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी समेत कई प्रमुख हस्तियां मौजूद थी। सम्मेलन का आयोजन मुखर्जी के प्रणव मुखर्जी फाउंडेशन की ओर से किया गया था।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस समेत विपक्षी दल मोदी सरकार पर सीबीआई और रिजर्व बैंक जैसे प्रमुख संस्थानों के कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप लगा रहे हैं। डा. सिंह ने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के सभी संस्थानों का धर्मनिरपेक्ष चरित्र भी शांति, सदभावना और हिंसा मुक्त बदलाव की पहली शर्त है।
राजनीतिक एवं धार्मिक नेताओं, नागरिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और मीडिया की यह जिम्मेदारी है कि संविधान एवं संस्थानों की विश्वसनीयता बनाए रखी जाए। उन्होंने कहा कि जब संस्थान जाने-अनजाने में गैर संवैधानिक शक्तियों के समक्ष झुककर अपने संवैधानिक दायित्वों से परे हटने लगते हैं तो संक्रमण और परिवर्तन की प्रक्रिया में हिंसा होने का खतरा बढ़ जाता है।
लोगों की खुशी को सामाजिक आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक माहाैल से जुडा बताते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोग देश की विविधता का गलत फायदा उठा रहे हैं और देश की अखंडता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्हाेंने गुरु नानक देव, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और अल्लामा इकबाल की उक्तियों का उल्लेख किया और कहा कि बहुधर्मी समाज में सामाजिक सदभाव आवश्यक है जिससे लोग भय और अनिश्चितता से मुक्त जीवन जी सके। समाज का धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने से भय, बैचेनी और अनिश्चिता का माहौल बनता है।
कांग्रेस नेता ने आपसी संघर्ष और रोष को शांति, सदभाव एवं प्रसन्नता में बदलने के लिए सभी से एक साथ काम करने का आह्वान करते हुए कहा कि इसके लिए सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की जरुरत है।
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से राजनीतिक दल अपने हितों लिए धर्म, जाति और अन्य ऐसे मुद्दों का इस्तेमाल करते हैं जिससे घृणा और विभाजन का माहौल बनता है। ऐसे माहौल में शांति एवं परिवर्तन को गंभीर खतरा पैदा होता है। इसलिए शांति, सदभाव और प्रसन्नता के लिये खतरा बनने वाली ताकतों से निपटने के लिए की समाज के सुधिजनों को एकजुट होने की आवश्यकता है।
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि देश मौजूदा समय मे सामाजिक- सांस्कृतिक एवं राजनीतिक – आर्थिक चुनौतियों, गरीबी, असमानता, बेराेजगारी, निरक्षरता और कूपोषण जैसी समस्याओं से घिरा हुआ है। लोगों को इनसे निपटने में सशक्त बनाने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप जरुरी है। बाजार आधारित अर्थव्यवस्था अपने आप समाज के निचले वर्ग तक नहीं पहुंचती है।
उन्होंने कहा कि सरकार को समाज के निचले वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र के निजी संस्थानों को नियंत्रित करना होगा जिससे वंचित लोगों काे भी विकास और आर्थिक समृद्धि के लाभ मिल सकें।