सबगुरु न्यूज। मास शिवरात्रि के दिन व्रत-पूजन करने का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। हिंदू पुराणों में शिव रात्रि के व्रत का महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती ने भी शिवरात्रि का व्रत करके भगवान शिव का पूजन किया था।
भगवान शिव के पूजन के लिए उचित समय प्रदोष काल में होता है। ऐसा माना जाता है कि शिव की अराधना दिन और रात्रि के मिलने के दौरान करना ही शुभ होता है। शिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के अभिसरण का पर्व माना जाता है। आइए जानते हैं मासिक शिवरात्रि का महत्व और पूजन विधि।
मासिक शिवरात्रि का महत्व
हिन्दू धर्म में मासिक शिवरात्रि का अपना अलग ही महत्व है। शिव के भक्त जहां साल में एक बार महाशिवरात्रि बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। मासिक शिवरात्रि पर भी भोलेनाथ की आराधना करने की परंपरा हैं। शिव पुराण के अनुसार इस दिन व्रत और भगवान शिव की आराधना करने से मनोमनाएं पूरी होती हैं। इस दिन व्रत करने से मुश्किलें दूर होने लगती हैं। कहा जाता है कि कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। इससे विवाह में आ रही रुकावटें भी दूर होती हैं।
मासिक शिवरात्रि व्रत विधि
हर महीने आने वाले इस पर्व को इस व्रत को महिला और पुरुष दोनों कर सकते है। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि की रात को जागकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए। मासिक शिवरात्रि वाले दिन आप सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद किसी मंदिर में जा कर भगवान शिव और उनके परिवार (पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदी) की पूजा करें। पूजा के दौरान शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, शुद्ध घी, दूध, शक़्कर, शहद, दही आदि से करें।
शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं। अब आप भगवान शिव की धुप, दीप, फल और फूल आदि से पूजा करें। शिव पूजा करते समय आप शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ करें। इसके बाद शाम के समय फल खा सकते हैं लेकिन व्रती को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगले दिन भगवान शिव की पूजा करें और दान आदि करने के बाद अपना व्रत खोलें। कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन शिव पार्वती की पूजा व्यक्ति को हर तरह के कर्जों से मुक्ति दिलाती है।
शिव रात्रि कथा -1
एक बार भगवान शिव के क्रोध के कारण पूरी पृथ्वी जलकर भस्म होने की स्थिती में थी। उस वक्त माता पार्वती ने भगवान शिव को शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर शिव जी का क्रोध शांत होता है। तब से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन उपासना की जाती हैं। इसे शिव रात्रि व्रत कहते हैं। शिव रात्रि के व्रत से सभी प्रकार के दुखों का अंत होता है। संतान प्राप्ति के लिए, रोगों से मुक्ति के लिए शिवरात्रि का व्रत किया जाता है।
शिवरात्रि कथा-2
विष्णु एवं ब्रह्मा जी के बीच मतभेद हो जाता है। दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं इस बात को लेकर दोनों के बीच मन मुटाव की सूचना मिलने पर शिव जी एक अग्नि के सतम्भ के रूप में प्रकट होते हैं और विष्णु जी और ब्रह्माजी से कहते हैं कि मुझे इस प्रकाश स्तम्भ कोई भी सिरा दिखाई नहीं दे रहा हैं। तब विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास होता हैं और वे अपनी भूल पर शिव से क्षमा मांगते हैं। इस प्रकार कहा जाता है कि शिव रात्रि के व्रत से मनुष्य का अहंकार खत्म होता है। मनुष्य में सभी चीजों के प्रति समान भाव जागता है। कई तरह के विकारों से मनुष्य दूर होता है।
शिवरात्रि व्रत एवं पूजा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है, इसे बड़े व्रतों में से एक माना जाता है। सभी मंदिरों में शिव की पूजा की जाती है। बारह ज्योतिर्लिंगों का बहुत अधिक महत्व होता है।