चंडीगढ़। पंजाब में घटित एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के तहत राज्य की दो बार मुख्यमंत्री के रूप में कमान सम्भालने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज शाम यहां कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले ही पद से इस्तीफा दे दिया।
मुख्यमंत्री के साथ उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों ने भी अपने पदों से इस्तीफे राजभवन में राज्यपाल बनवाली लाल पुरोहित को सौंपे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के इस्तीफे स्वीकार करते हुए इन्हें वैकल्पिक व्यवस्था होने तक अपने पदों पर बने रहने को कहा है।
सारा दिन चली राजनीतिक सरगर्मियों के बीच विधायक दल की पांच बजे यहां प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में होने वाली आपात बैठक से पहले ही कैप्टन अमरिंदर ने राजभवन पहुंच कर राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से सायं लगभग 4.35 बजे मुलाकात की और उन्हें अपना इस्तीफा सौंपा।
इसके साथ ही राज्य विधानसभा चुनावों से लगभग पांच माह पूर्व ही उनके मुख्यमंत्रित्वकाल का अंत हो गया। उनके साथ उनकी मंत्रीपरिषद के सहयोगियों ने भी अपने इस्तीफे सौंप दिए। कैप्टन अमरिंदर ने इसके बाद पार्टी विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लिया।
अमरिंदर का इस्तीफा प्रदेश कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। वह प्रदेश में कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं और उन्हीं नेतृत्व में कांग्रेस की राज्य में गत दो बार सरकार बनी।
इससे पहले कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों के पार्टी हाईकमान को लिखे पत्र के माध्यम से पार्टी विधायक दल की यहां शाम पांच बजे प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में बैठक बुलाई गई थी जिसमें पार्टी के प्रदेश मामलों के प्रभारी हरीश रावत और केंद्रीय पर्यवेक्षकों अजय माकन और हरीश चौधरी ने भाग लिया।
कैप्टन के इस्तीफा देने के बाद विधायक दल की बैठक महज एक औपचारिकता ही रह गई जिसमें विधायक दल के नये नेता के चयन के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अधिकृत करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया।
राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद अमरिंदर ने राजभवन के गेट के बाहर मीडियाकर्मियों को सम्बोधित करते हुए पद से इस्तीफा देने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनकी सुबह ही फोन पर बात हो गई थी तथा उन्होंने उन्हें पद से इस्तीफा देने के बारे में अपने फैसले से अवगत करा दिया था।
उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें हटाया नहीं बल्कि स्वयं पद से इस्तीफा दिया है। उन्होंने कहा कि मेरे साथ ऐसा तीसरी बार हुआ है जब मुझे जानकारी दिए बगैर विधायक दल की बैठक बुलाई गई। दो बार यह बैठकें दिल्ली में हुईं और अब चंडीगढ़ में। यह सरासर मेरा अपमान है। मुख्यमंत्री होने के नाते मुझे बैठक आयोजित करने की जानकारी तक नहीं दी गई। ऐसा लगता है कि आलाकमान का मुझ पर से भरोसा उठ गया। इसलिए और अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता था इसलिए मुझे यह फैसला लेना पड़ा।
उन्होंने भारी मन से कहा कि अब आलाकमान जिस पर भरोसा हो उसे मुख्यमंत्री बनाए। रही बात पार्टी के किए गए वादों की तो हमने 92 प्रतिशत वादे पूरे कर दिए थे। इससे ज्यादा और क्या किया जा सकता है। अब आगे की रणनीति वह उनके 52 साल के राजनीतिक जीवन में साथ रहे साथियों से बातचीत कर तय करेंगे।
उन्होंने कहा कि वह पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं लेकिन आगे के विकल्प खुले हैं। उन्होंने कहा कि गत विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में ही पार्टी चुनाव मैदान में उतरी और भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। लगता है कि अब पार्टी आलाकमान को उन पर भरोसा नहीं है अगला विधानसभा चुनाव जीत पाएंगे या नहीं।
उल्लेखनीय है कि कैप्टन अमरिंदर की कार्यशैली को लेकर विधायकों और मंत्रियों में पहले से ही काफी आक्रोश व्याप्त था है जिसके बारे में सिद्धू अनेकों बार पार्टी हाईकमान को बता और उससे दिल्ली में बैठक कर चुके थे। पार्टी के लगभग 40 विधायकों और मंत्रियों का आरोप था कि अनिवार्य कार्यों के लिए भी मुख्यमंत्री से मिलना बेहद मुश्किल था और इसीलिए आगामी विधानसभा चुनावों में जनता को वह क्या जबाव देते।