जयपुर। राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि ओडिशा में छोटे-छोटे सपनों के साथ पली-बढ़ी जनजाति समाज की बेटी को राष्ट्रपति भवन तक जाने का रास्ता दिया गया, यह लोकतांत्रिक स्वप्न है, यही अन्त्योदय है, यह गांव, गरीब और जंगल की बेटी पर विश्वास जताना है।
अपने चुनाव प्रचार के लिए जयपुर आई मुर्मू ने भाजपा विधायकों एवं सांसदों के साथ बैठक के दौरान आज यह बात कही। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार आदिवासी समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना देश के सभी आदिवासी भाई-बहनों का यह बड़ा सम्मान है।
उन्होंने कहा कि राजग और समर्थक दलों की ओर से जब मुझे राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनाया गया तो मैं इसके पीछे की सोच को समझ सकती थी क्योंकि मेरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संवेदनशील चेतना एवं दूरदर्शी सोच से साक्षात्कार है। वे मरूभूमि की मां-बेटियों के हाथों में किताब और कलम देखना चाहते हैं और वनभूमि की माँ-बेटियों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि मोदी सरकार के शासन में नारी शक्ति के घर नल से जल पहुंच रहा है। साथ ही जनजाति समाज की बेटियों को शिक्षा से जोड़कर उनको सपने देखने की स्वतंत्रता का अधिकार मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि वह बैठक में मौजूद सांसदों और विधायकों के माध्यम से राजस्थान की देवतुल्य जनता का समर्थन मांग रही है। उन्होंने कहा कि मैंने कभी राष्ट्रपति बनने के विषय में नहीं सोचा था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग ने अंतिम छोरों पर बसे गांवों के लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए मुझे माध्यम बनाया है। वंचित, आदिवासी और शोषित मुझमें स्वयं को देख सकते हैं। हम में ना कोई भेद है, ना मतभेद है, नए भारत के निर्माण के लिए आशांवित, अग्रसर और आश्वस्त हैं।
मुर्मू ने कहा कि राजस्थान और ओडिशा में भौगोलिक परिस्थितियों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों राज्यों में काफी समानताएं हैं, जिनमें प्रकृति के साथ जीना, राजस्थान के लोगों द्वारा जल को जीवन की भांति संवारकर रखना, इसी प्रकार ओडिशा के लोगों को चक्रवाती तूफानों के बावजूद जिंदगी का पहिया नई उम्मीदों के साथ घूमाते रहना आता है।
उन्होंने कहा कि एक राजस्थानी कहावत है कि अंबर को तारो-हाथ से कौनी टूटे मैं जहां से यहां तक आई हूं इस कहावत की व्यवहारिकता को मैं समझती हूं। मेरी अब तक की जीवन यात्रा का अनुभव कहता है कि अनायास कुछ नहीं होता, हमारे आज के साथ बीते हुए कल के संघर्ष जुड़े हुए रहते हैं। संघर्ष हमें उद्देश्य व संकल्पों के प्रति सचेत रखते हैं।
पवित्र नदियां माही, सोम और जाखम के संगम की संघर्ष व बलिदान की भूमि बेणेश्वर धाम को प्रणाम करती हूं। मुझे अन्त्योदय को जमीनी रूप देने की जमीनी जानकारी है, जो मैंने विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए अंतिम व्यक्ति के घर को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के हरसम्भव प्रयत्न किए हैं और यह प्रयत्न निरन्तर जारी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अब सुरक्षित एवं विकसित होती व्यवस्था के मुख्य भागीदार बन रहे हैं। पिछले कई वर्षों में वंचितों, शोषितों एवं आदिवासियों के जीवन में उन्नति के साथ बड़े बदलाव आए हैं। विकास अब दूरस्थ क्षेत्रों तक बराबरी से पहुंच रहा है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार आदिवासी समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना, जिसका सबसे जीवंत उदाहरण है, जो देश के सभी आदिवासी भाई-बहनों का सम्मान है।