गया। भारतीय खासकर युवा वर्ग भले ही पाश्चात्य संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रही हो लेकिन इसके उल्ट विश्व के विभिन्न देशों के लोगों का झुकाव अब भारतीय परम्परा की तरफ बढ़ रहा है।
भारतीय संस्कृति में मृत्यु में बाद आत्मा को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान करने की परम्परा रही है और बिहार के ‘गयाजी’ को देश-विदेश में मोक्ष धाम के रूप में जाना जाता है। वैसे तो पूरे साल गया में पिंडदान किया जाता है लेकिन आश्विन मास के दौरान प्रतिवर्ष पड़ने वाले ‘पितृपक्ष’ के मौके पर पिंडदान का विशेष महत्व है।
पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना को लेकर मोक्ष भूमि गयाजी में रूस, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान से 24 विदेशियों का एक जत्था सोमवार को गया पहुंचा। इस दल में कई महिलाएं भी शामिल थीं।
विदेशी मेहमानों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गया के विष्णुपद, फल्गु नदी, देवघाट, अक्षयवट सहित विभिन्न पिंडवेदियों पर तर्पण एवं कर्मकांड किया।
अक्षयवट में इन विदेशी श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए किए जा रहे पिंडदान कार्य को ‘सुफल’ के साथ संपन्न किया। इस पूरे कर्मकांड का नेतृत्व पंडा लोकनाथ गौड़ ने किया। गौड़ के नेतृत्व में ही विदेशी मेहमान दिल्ली से विमान के जरिये गया पहुंचे।
गया पहुंचने पर काफी खुश नजर आ रहे विदेशी मेहमानों का कहना है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित होकर वह अपने पितरों के पिंडदान के लिए यहां आये है। कर्मकांड खत्म करने के बाद बोधगया का भ्रमण कर वापस अपने देश लौट जाएंगे।
उन्होंने कहा कि हम लोग भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित हुए हैं। यहां की सनातन परंपरा काफी प्रभावित करती हैं, इसलिए हमलोग अपने पितरों की मुक्ति दिलाने के लिए गया धाम आये हैं। गया कि पवन भूमि को स्पर्श कर काफी अच्छा लगा।