नैनीताल। उत्तराखंड के ऋषिकेश में वन भूमि पर स्थित आशाराम बापू के आश्रम को वन विभाग अब अपने कब्जे में ले सकता है। न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की पीठ ने गत चार दिसंबर आश्रम खाली कराने की कार्रवाई पर लगाई रोक को हटा लिया था लेकिन आदेश की प्रति शुक्रवार को प्राप्त हुई।
न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2002 के बी सी बढ़ेरा बनाम केन्द्र सरकार मामले का हवाला देते हुए कहा कि वन भूमि पर गैर वानिकी गतिविधियां संचालित नहीं की जा सकती हैं। अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि वन भूमि पर गैर वानिकी गतिविधि संचालित की जा रही है, जो वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधानों का उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि वन विभाग की ओर से आशाराम के ऋषिकेश के मुनि की रेती स्थित आश्रम को खाली कराने के लिए नौ सितम्बर 2013 को एक आदेश जारी किया गया था। आश्रम की ओर से इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और अदालत ने 17 सितम्बर 2013 को वन विभाग के आदेश पर स्थगनादेश जारी कर दिया था।
स्टीफन डुंगई नामक व्यक्ति ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और अदालत में कुछ नए तथ्य पेश किये। डूंगई ने अदालत को बताया कि जिस वन भूमि पर आश्रम है उसकी लीज 1970 में समाप्त हो चुकी है और आज तक लीज नहीं बढ़ाई गई है।
डूंगई ने अदालत को बताया गया कि जमीन की असली लीज आशाराम के बजाय त्यागी लक्ष्मण दास के नाम है और उसे भी वन विभाग की ओर से मात्र 20 साल के लिए लीज प्रदान गयी थी।
डूंगई ने अदालत में नौ सितम्बर 2005 का आदेश भी पेश किया गया जिसमें वन विभाग की ओर से साफ- साफ कहा गया कि यदि मुख्य लीज होल्डर अन्य किसी को लीज हस्तांतरित करता है तो वन विभाग जमीन को अपने कब्जे में ले लेगा। इसके बाद न्यायालय ने आश्रम खाली कराने की कार्रवाई पर लगाई को रोक को वापस ले लिया।