लखनऊ। पिछले दो दशकों से गांधी परिवार के अभेद्य दुर्ग के तौर पर विख्यात उत्तर प्रदेश के अमेठी से आखिरकार गुरूवार को कांग्रेस की विदाई हो गई।
वर्ष 1967 में अस्तित्व में आयी अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार के किसी सदस्य की यह पहली हार है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 55 हजार 120 मतो से शिकस्त दी। इसके साथ ही ईरानी ने वर्ष 2014 में गांधी के खिलाफ मिली पराजय का बदला ले लिया। देश भर की निगाहें गुरूवार को सारा दिन इस सीट की मतगणना पर टिकी रहीं।
अमेठी में जीत मिलने के बाद ईरानी ने ट्वीट कर कहा कि कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता..। बाद में उन्होंने एक और ट्वीट कर अमेठी के लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने लिखा कि एक नई सुबह अमेठी के लिए, एक नया संकल्प। धन्यवाद अमेठी शत शत नमन। आपने विकास पर विश्वास जताया, कमल का फूल खिलाया। अमेठी का आभार।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी में मिली हार को स्वीकार करते हुए ईरानी को जीत की मुबारकबाद दी और साथ ही उन्हें अमेठी के लोगों का ध्यान रखने की गुजारिश की। हार को स्वीकारते हुए कहा कि अमेठी में कांग्रेस के विध्याधर वाजपेयी ने वर्ष 1967 में अमेठी में पार्टी की जीत की नींव रखी थी। त्रिपाठी यहां लगातार दो बार सांसद चुने गए जबकि 1977 में जनादेश जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह के पक्ष में गया।
गांधी परिवार के हाथ में अमेठी की कमान वर्ष 1980 में आई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी यहां के सांसद चुने गए। इस बीच एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु हो गई जिसके बाद यहां से निर्वाचित राजीव गांधी 1981 से लेकर 1991 तक अमेठी सीट के सांसद बने रहे।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के फिदाईन हमले में निधन के बाद इस सीट की जिम्मेदारी कांग्रेस के सतीश शर्मा के कंधों पर आई। शर्मा ने अमेठी सीट की बागडोर 1991 से लेकर 1998 तक संभाली हालांकि भाजपा के संजय सिन्हा ने वर्ष 1998 में कांग्रेस के दुर्ग में पहली दफा सेंधमारी कर अपना कब्जा जमाया। सिन्हा का यह कार्यकाल बहुत लंबा नहीं जा सका और 1999 में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने संजय सिन्हा को चुनाव में हराया और 1999-2004 तक वह अमेठी की सांसद बनी रही।
वर्ष 2004 में गांधी ने अमेठी की जिम्मेदारी अपने पुत्र राहुल को सौंपी और खुद पड़ोसी जिले रायबरेली से चुनाव लड़ने का फैसला किया। 2004 से अब तक कांग्रेस अध्यक्ष तीन बार अमेठी के सांसद बने। वर्ष 2014 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस को उसके ही गढ़ में ललकारा लेकिन उन्हे एक लाख से अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा।
टीवी धारावाहिक ‘सास भी कभी बहू थी’ के जरिये छोटे पर्दे पर धमाल मचाने वाली स्मृति के इरादे इस हार के बाद और मजबूत हुए। वर्ष 2003 में टीवी की दुनिया से राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाली ईरानी ने भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री का जिम्मा उठाने के साथ ही पिछले पांच साल के दौरान कई बार अमेठी का दौरा किया और यहां की जनता की समस्यायों को करीब से न सिर्फ जाना बल्कि निदान के लिए कदम उठाए।
भाजपा नेत्री का यह अंदाज अमेठी की जनता को खूब भाया। अपनी पुश्तैनी सीट पर राहुल गांधी को चुनाव से पहले कतई भान नहीं था कि उनके क्षेत्र में सेंध लग चुकी है।