Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
महाराष्ट्र में रास गरबा और डांडिया पर लगी रोक, युवाओं में निराशा - Sabguru News
होम Breaking महाराष्ट्र में रास गरबा और डांडिया पर लगी रोक, युवाओं में निराशा

महाराष्ट्र में रास गरबा और डांडिया पर लगी रोक, युवाओं में निराशा

0
महाराष्ट्र में  रास गरबा और डांडिया पर लगी रोक, युवाओं में निराशा

मुंबई। नवरात्रि का त्यौहार शुरू हो चुका है और इस दौरान पारंपरिक परिधानों में सज-संवरकर गरबा खेलने की तैयारियां भी शुरू हो चुकी थी, लेकिन कोरोना वायरस महामारी को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र की सरकार ने इस वर्ष भी राज्य में गरबा खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे युवा वर्ग काफी निराश है।

सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि गरबा आयोजक भी थोड़े परेशान से हैं क्योंकि सरकार के लगाए गए प्रतिबंध की वजह से वे ‘डांडिया रास’ का आयोजन कर पाने में सक्षम नहीं हैं, जिनके टिकट बेचकर उन्हें काफी मुनाफा होता था। लगातार दूसरे साल भी कोरोना के प्रभाव के चलते कपड़ा व्यवसायियों को भी बहुत नुकसान हो रहा है क्योंकि वे गरबा के दौरान पहने जाने वाले खास तरह के पोशाकों को बेच नहीं पा रहे हैं।

नवरात्रि के त्यौहार के दौरान मां दुर्गा के भक्त पारंपरिक परिधानों में सजकर ‘रास गरबा’ और ‘डांडिया’ का जमकर लुफ्त उठाते हैं, लेकिन इनमें कुछ ही लोगों को इस त्यौहार के सृजन, इसके महत्व और इतिहास के बारे में है। यह आमतौर पर मां ‘अंबे’ की आराधना से जुड़ा हुआ है, जो समृद्धि, रचनात्मकता और सार्वभौमिकता की प्रतीक हैं।

इसकी उत्पत्ति ‘गर्भ दीप’ नामक शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य मिट्टी का बना हुआ एक दीया है, जिसे जलाए जाने के बाद लोग गाना गाते हुए इसके चारों ओर झूमते हैं। ‘गरबा’ शब्द का अर्थ होता है नृत्य करना। देवी की पूजा शक्ति मत, कृष्णा मत जैसे कई अलग-अलग रीतियों से की जाती है और रही बात गरबा रास की, तो इसमें लोग भिन्न तरीकों से नृत्य का प्रदर्शन कर प्रत्येक मतों से की जाने वाली आराधना को दर्शाते हैं।

इनमें से शक्ति मत के ताली रास का समय के साथ विकास हुआ है, जिसे हम आज के जमाने में ‘गरबा’ कहकर बुलाते हैं। प्राचीन इतिहास की किताबों में नृत्य के इन रूपों का जिक्र देखने को मिलता है।

रासों में ताली रास को सबसे कठिन माना जाता है। इसका अभ्यास गुजरात के कुछ स्थानों में वरिष्ठ नागरिकों द्वारा किया जाता है। हालांकि देश के अन्य हिस्सों में अधिकतर डांडिया रास का आयोजन किया जाता है।

ताली रास में लयबद्ध तरीके से किए जाने वाले नृत्य में हर डेढ़ कदम के बाद ताली बजाने का चलन है और ऐसा खासकर महिलाओं द्वारा किया जाता है। दूसरा है डांडिया रास, जिसका उल्लेख नौवीं शताब्दी ईसवी में संस्कृत के प्रख्यात विद्वान राजशेखर द्वारा लिखित ग्रंथ ‘कर्पूरमंजरी’ में मिलता है।

इसी के साथ पांचवीं शताब्दी ईसवी में बनी बाघ की गुफाओं में बनी मूर्तियों में भी इनका जिक्र मिलता है। रास में लय का ध्यान डंडियों को बजाने के साथ रखा जाता है। इसमें पहले अपने हाथ में डंडियों को आपस में बजाते हैं और फिर नृत्य में शामिल अन्य लोगों के साथ अदला-बदली कर इन्हें बजाया जाता है।

‘रास’ और ‘गरबा’ का उल्लेख वैदिक साहित्य, पुराणों, जैन साहित्य सहित अन्य ग्रंथों और लोक कलाओं में मिलता है। इन लोक नृत्यों का विकास गुजरात में रास और गरबा के नाम से हुआ है और अब ये गुजरात की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।

सरकार ने धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना करने की अनुमित दे दी है। मंदिर कल भी खुले रहेंगे। हालांकि इस दौरान कोविड-19 के मानकों का खास ध्यान रखा जाएगा और मंदिर में परिसर की क्षमता के अनुसार 50 फीसदी दर्शनार्थियों को ही आने की इजाजत मिलेगी।