-परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-माउंट आबू। पिछले एक सप्ताह में सिरोही जिले की दो विधानसभाओं से कांग्रेस के दो पदाधिकारियों के बयान आये हैं। रेवदर विधानसभा और पिंडवाड़ा आबू विधानसभा के दोनो पदाधिकारी ने ही कहा कि स्थानीय अधिकारी और कर्मचारी लोगों काम अटका रहे हैं। इस पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि अशोक गहलोत सरकार ने कांग्रेस को हराने के लिए उपखंड, तहसील, नगर निकाय, पंचायतों में बैठाए अधिकारियों के माध्यम से कांग्रेस कार्यकर्ताओ को उत्पीड़ित कर कांग्रेस को हरवाने की पूरी तैयारी कर ली है।
ताजा मामला माउंट आबू का है। यहां की माॅनीटरिंग कमेटी के द्वारा जिला कलेक्टर को लिखे पत्र की ताबीर बता रही है कि उपखंड अधिकारी पद पर तैनात जूनियर आईएएस अधिकारी सीनियर आईएएस जिला कलेक्टर और जयपुर बैठे सचिवों पर भारी पड़ रहे हैं। ये निजी हित साधने के चक्कर में उनके आदेश-निर्देश को दरकिनार करके वरिष्ठों की ही ही पर्यावरण फंसाने की जुगत में लग गए हैं। इधर किरोड़ीमल मीना ने भी लिमबड़ी कोठी के कारण यहाँ निर्माण सामग्री जारी करने में उपखंड अधिकारियो की भूमिका की जानकारी मांगी है।
कमेटी ने जो लिखा है उसके अनुसार ये ईको सेंसेटिव जोन के तहत जोनल मास्टर प्लान के माध्यम से माउण्ट आबू के लोगों को मुख्यमंत्री की मंशानुसार राहत देने के बिल्कुल खिलाफ नजर आ रहे हैं। चुनाव के समय में पिण्डवाडा-आबू विधानसभा के सबसे बडे शहरी मतदाता और 11 ग्राम पंचायतों को परेशान करने वाले अधिकारियों को फील्ड में लगाकर कांग्रेस की मिट्टी पलीत होने की आशंका से कोई इनकार नहीं किया जा सकता।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बिपरजाॅय के बाद जालोर जाते समय आबूरोड में अल्पप्रवास के दौरान उनके सलाहकार संयम लोढा ने भी माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारियों के एकाधिकार नहीं छोडने की जिद से माउण्ट आबू के लोगांे को परेशान करने की शिकायत की थी। जबकि माउंट आबू उपखंड अधिकारी तो ये हथधर्मिता तब कर रहे हैं जबकि उन्हें कानूनी रूप से तो कोई आधिकार हैं ही नहीं, उनको दिए सारे अधिकार ही।मोनिटरिंग कमेटी के द्वारा हस्तांतरित हैं।
हाल में सोशल मीडिया पर माॅनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष और सदस्यों को जो लेटर वायरल हो रहा है उससे इतना स्पष्ट है कि माॅनीटरिंग कमेटी को दरकिनार करने की वर्तमान उपखण्ड अधिकारी की जिद ने जिले और प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के साथ माउंट आबू उपखंड अधिकारी पर तैनात रहे पिछले सब अधिकारियो को न्यायालय में हाजिर करवाने की रूपरेखा तैयार कर ली है। ये स्थिति जिला कलेक्टर के मातहत होने की वजह से उनके द्वारा माउण्ट आबू एसडीएम को नोडल अधिकारी बनाकर अधिकार हस्तांतरित करने के बाद उसके कथित दुरुपयोग तथा एनजीटी व पर्यावरण अधिनियम का कथित उल्लंघन करने की वजह से आती दिख रही है। क्योंकि 5 सालों से लगातार उपखंड अधिकारियो द्वारा बाहर से आये व्यापारियों और बड़े होटल मालिको के लिए स्थानीय लोगों।के।लिए बनाए नियमो का फायदा स्थानीय आम लोगों को नहीं देने से अब स्थानीय लोगों का भी धैर्य जवाब देने लगा है।
माउंट आबू में ईको सेंसेटिव जोन है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यहां पर निर्माण और मरम्मत गतिविधि के लिए मोनिटरिंग कमिटी बनाई गई है। लोगों को समस्या नहीं हो इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार ने इस समिति को पूरी तरह से स्थानीय बनाने की कोशिश की है। शुरू में इसके अध्यक्ष केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारी थे।
लेकिन समय पर बैठकें हों और लोगों को राहत मिले इसके लिए धीरे धीरे स्थानीयकरण किया जाता रहा। डिविजनल कमिश्नर को इसका अध्यक्ष बनाया। तब भी बैठक में देरी होती थी तो और राहत देने के लिए फिर से मोनिटरिंग कमिटी का पुनर्गठन किया गया। इसमें स्थानीय व्यक्ति को ही अध्यक्ष बनाया गया। जिला कलेक्टर हर समिति में सचिव ही रहे।
27 जुलाई को माउंट आबू की मॉनिटरिंग की बैठक हुई। इसमें मोनिटरिंग कमिटी ने चार गुणा छह का शौचालय निर्माण, जर्जर भवनों के निर्माण और मरम्मत, स्थानीय स्तर पर सीमेंट डीपो खोलने, निर्माण सामग्री जारी करने के टोकन आदि के लिए उप समिति बनाई गई। इसमें निर्णय लिए बिना किसी भी तरह का काम उपखण्ड अधिकारी अपने स्तर पर नहीं कर सकते है। क्योंकि ये समिति सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार ईको सेंसेटिव जोन के अंदर पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1989 की धारा 3 के तहत बनाई है।
यहां के समस्त आधिकार नगर पालिका को अधिकार हस्तांतरित नही करने की स्थिति में ये समिति ही सर्वेसर्वा है। उपखंड अधिकारी को सिंगल हैंडेड कोई अधिकार नहीं है। उनके सिंगल निर्णय से लिये गए सभी निर्णय अवैधानिक है। ऐसे में उपखण्ड अधिकारी इस समिति को दरकिनार करके किसी भी तरह की अनुमति स्वयं के स्तर पर जारी नहीं कर सकते। लेकिन, माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्यों का आरोप है कि माउण्ट आबू के पूर्व उपखण्ड अधिकारियों की तरह ही वर्तमान उपखण्ड अधिकारी भी माउण्ट आबू पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए माॅनीटरिंग कमेटी की उपसमिति के निर्णय के बिना ही माउण्ट आबू में निर्माण सामग्री जारी कर रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि समिति के वास्तविक सचिव और उनसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी जिला कलेक्टर डा भंवरलाल के आदेश को दरकिनार करके न तो माॅनीटरिंग उपसमिति में लिए निर्णयों की पालना कर रहे हैं और न हीं पर्यावरण कानूनों की पालना। माॅनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष और सदस्यों ने जिला कलक्टर को पत्र लिखकर माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारी के द्वारा की जा रही कथित हठधर्मिता और स्वेच्छाचारिता के खिलाफ पर्यावरण अधिनियम 1986 की धारा 19 के तहत नियमों की पालना नहीं करने को लेकर कार्रवाई करने को मजबूर होना पडेगा।
-अध्यक्ष ने ये लिखा कलेक्टर को
माॅनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष ने 31 अगस्त को माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्य सचिव को पत्र लिखकर ये बताया कि उस दिन माॅनीटरिंग कमीटी की बैठक थी। सदस्यों ने बताया कि माॅनीटरिंग कमीटी के नोडल अधिकारी बनाए गए उपखण्ड अधिकारी से 27 जुलाई 2023 को लिए गए निर्णय की पालना नहीं की जा रही है। वे अपने स्तर पर ही अनुमतियां और निर्माण समाग्री जारी कर रहे हैं। इससे माउण्ट आबू में अवैध निर्माण सामग्री की लगातार आवक हो रही है। जो एनजीटी के आदेशों और पर्यावरण अधिनियम के खिलाफ है। अध्यक्ष ने सचिव को माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी के निर्माण सामग्री जारी करने और रिजेक्ट करने के माॅनीटरिंग कमेटी के द्वारा लिए गए अधिकारों को तुरंत वापस लेने की सिफारिश की है।
-कई उपखण्ड अधिकारियों पर गिरेगी गाज
लिमबड़ी कोठी प्रकरण ने कायदे ताक में रखकर निर्माण सामग्री जारी करने के कारण माउंट आबू के।पिछले 5 उपखंड अधिकारी पहले ही ईडी के रडार पर है। मीना इनकी सन्दिग्ध भूमिका के दस्तावेज भी जुटा रहे हैं। ऐसे में पत्र में लिखे अनुसार यदि मोनिटरिंग कमिटी धारा 19 के तहत परिवाद दर्ज करवाती है तो माउण्ट आबू में उपखण्ड अधिकारी के द्वारा माॅनीटरिंग कमेटी की बजाय खुद ही सारे अधिकारी अपने पास रखने की कोशिश वर्तमान उपखण्ड अधिकारी ही नहीं पूर्व उपखण्ड अधिकारियों पर भी भारी पड सकती है।
सिर्फ वर्तमान उपखण्ड अधिकारी ही ऐसा कर रहे हों ऐसा नहीं है। गहलोत राज में माउण्ट आबू में लगे हर उपखण्ड अधिकारी ने उनको मिले अधिकारों को दुरूपयोग करते हुए बिना उप समिति की बैठक बुलाए ही अपने निजी हित साधने के लिए रईसों को टनों निर्माण सामग्री के टोकन जारी कर दिए हैं।
यदि माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्यों द्वारा जिला कलेक्टर को लिखे गए पत्र के अनुसार ये मामला न्यायालय में गया तो ये सारे उपखण्ड अधिकारी भी जांच के दायरे में आ सकते हैं। सूूूत्रों के अनुसार यहां निर्माण सामग्री जारी करने की प्रक्रिया को जानने को लेकर किरोड़ीमल मीणा भी पत्रकारों से सम्पर्क किया है ताकि ईडी में इसकी जानकारी दी जा सके।
माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्य सचिव जिला कलक्टर हैं। उन्हीं के मातहत होने के कारण उप समिति का नोडल अधिकारी उपखण्ड अधिकारियों को बनाया गया है। ऐसे में ये मामला न्यायालय में गया तो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1989 की धारा 17 के अनुसार जिला कलेक्टरों को ये बताना पडेगा कि उपखण्ड अधिकारी उनकी जानकारी के बिना ऐसा कर रहे थे। यदि वे ये तथ्य प्रस्तुत नहीं करते हैं तो गाज उन पर भी गिर सकती है।
माउण्ट आबू से सिरोही सिर्फ अस्सी किलोमीटर और डेढ घंटे का रास्ता है। उप समिति बनाने की जगह मूल समिति ही हर 15 दिन में ये बैठक सिरोही, आबूरोड, माउण्ट आबू में कर सकती है। जिला कलेक्टर कार्यालय में पहले से ही माउण्ट आबू की माॅनीटरिंग समिति के काम देखने वाले लोग हैं। सारे निर्णयों की अनुपालना वहीं से करवाई जा सकती है। वरना जो हालात माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने बना रखे हैं पानी सिर से निकलने पर उससे सीधी गाज माॅनीटरिंग कमेटी के सचिव पर भी गिरेगी इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अपनी हठधर्मिता से उपखंड अधिकारी माउंट आबू के लोगों के सुरक्षित जीवन जीने, रोजगार करने के उन मानवाधिकारों का भी उल्लंघन कर रहे हैं जो संविधान प्रदत्त हैं।
-क्या कहती है धारा 19
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1989 की धारा 19 के तहत कोई न्यायालय इस अधिनियम के तहत अपराध का संज्ञान ले सकती है यदि ये प्रकरण केन्द्र और राज्य सरकार के प्राधिकृत अधिकारी के माध्यम से या फिर उस व्यक्ति के माध्यम से न्यायालय में ले जाया जाता है जिसने नियमों के उल्लंघन की सूचना प्राधिकृत अधिकारी को दे दी है।
माउण्ट आबू के प्रकरण में माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्यों ने उपखण्ड अधिकारी के द्वारा उप समिति के निर्णय बिना निर्माण अनुमति और निर्माण सामग्री जारी करने की सूचना दे दी है। ऐसे में अब माॅनीटरिंग कमेटी उपखण्ड अधिकारी के द्वारा किए जा रहे उल्लंघन के लिए न्यायालय में जाने को अधिकृत हो जाती है।
इसी की धारा तीन की उपधारा तीन के तहत केन्द्र सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए समिति या प्राधिकरण गठित कर सकती है। वहीं इसकी धारा 21 में ये दिया है कि इस तरह की समिति और प्राधिकरण के सदस्य लोकसेवक की श्रेणी में आएंगे। ऐसे में माॅनीटरिंग समिति के सदस्यों को भी धारा 19 के तहत न्यायालय में परिवाद दर्ज करवाने का अधिकार दिया गया है। इसलिए माउण्ट आबू की माॅनीटरिंग कमेटी के सदस्यों ने माउण्ट आबू के उपखण्ड अधिकारी के द्वारा माॅनीटरिंग कमेटी के निर्णयों की पालना नहीं करने पर इस धारा के तहत न्यायालय की शरण में जाने की मजबूरी जिला कलेक्टर को बताई है।