परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। राजस्थान की 14 विधानसभा का पहला सत्र 15 जनवरी से शुरू हो गया है। इत्तेफाक से 17 दिसम्बर को शपथ लेने वाली कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को 16 जनवरी को 30 दिन पूरे हो गए, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इन तीस दिनों में अशोक गहलोत सरकार राजस्थान के नागरिकों को वो अधिकार बहाल नहीं कर पाई जो खुद गहलोत ने 8 साल पहले दिया था और वसुंधरा राजे सरकार ने उसे एक तरह से हाशिये में डाल दिया था।
भारत के सबसे महत्वपूर्ण लोक सेवा गारंटी अधिनियम 2011 को सिरोही समेत राज्य के दूसरे जिलों में अब तक बहाल नहीं करवाया जा सका है। जबकि सिर्फ एक पत्र लिखने पर ही राजस्थान के लोगों को यह अधिकार मिल जाता और बरसों से सरकारी कार्यालयों में अटके उनके सामान्य कार्य पूर्ण होने षुरू हो जाते। यहीं नहीं राजनीतिक विरोधों को छोड़कर खुद वसुंधरा राजे इस कानून को सख्ती से लागू करवा देतीं तो गुड गवर्नेंस के अभाव में भ्रष्टाचार से आकंठ डूबी उनकी सरकार की रुख्सती नहीं होती।
गहलोत सरकार की ये लापरवाही तब है जबकि उन्हें इसका लाभ जनता को दिलवाने के लिए एक रुपए के कागज के अलावा कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा। जरूरत है सिर्फ सामान्य प्रशासन विभाग के एक ई-मेल और राज्य के सभी जिलों में धूल खा रहे बोर्डों को स्टोर से बाहर निकलवाने की।
क्या है लोक सेवाओं की गारंटी अधिनियम?
राजस्थान की अषोक गहलोत सरकार ने लोक सेवा कानूनों के अंतर्गत वे वैधानिक कानून शामिल है जो सरकार द्वारा नागरिको को प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं के समयबद्ध वितरण की गारंटी प्रदान की थी। इसके साथ ही समयबद्ध तरीके से सेवाओं का वितरण नहीं होने पर सरकारी मुलाजिमों को दण्डित करने के लिए तंत्र भी प्रदान करते हैं। इन कानूनों का प्रमुख उद्देश्य सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ाना एवं भ्रष्टाचार में कमी लाना है।
ऐसा भारत का एकमात्र कानून
यूं तो लोक सेवा गांरटी कानून लागू करने वाला पहला राज्य मध्यप्रदेश है। जिसने 18 अगस्त 2010 को सेवा का अधिकार अधिनियम पारित किया था। वहीं राजस्थान में लोक सेवा गारंटी अधिनियम दिनांक 14 नवम्बर 2011 को लागू किया गया था। लेकिन, राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने अधिनियम के उल्लंघन पर दंड सम्बन्धी प्रावधान रखे हैं।
यह था कानून में
इस अधिनियम के अंतर्गत 15 विभागों की 108 सेवाओं को शामिल किया गया है जिसमे बिजली, जलदाय, स्वास्थय, नगर निगम, पंचायती राज जैसी सेवाएं शामिल है। इसके अंतर्गत प्रत्येक अनुसूचित विभाग एक कार्मिक की नियुक्ति करना होगा। जो अधिनियम के अंतर्गत शिकायतों को लेने के लिए उत्तरदायी होगा।
अधिकृत कर्मचारी आवेदक को लिखित में अभिस्वीकृति देगा तथा आवश्यक दस्तावेज संलग्न होने पर नियत समय सीमा का उल्लेख भी करेगा। यदि आवश्यक दस्तावेज संलग्न नहीं है तो इसका उल्लेख अभीस्वीकृति में किया जाएगा तथा नियत समय सीमा नहीं दी जाएगी।
सेवा नियत समय सीमा में उपलब्ध कराई जाएगी तथा सेवा में विलम्ब या नहीं मिलने की दशा में पदाभिहित अधिकारी कारणों का स्पष्ट उल्लेख करेगा, अपील के लिए समयवधि तथा अपील अधिकारी की भी जानकारी देगा। नियत समय सीमा की गणना करते समय लोक अवकाशों को शामिल नहीं किया जाएगा।
पदाभिहित अधिकारी अनिवार्य रूप से जनता की जानकारी के लिए नोटिस बोर्ड पर सेवाओं से सम्बंधित सभी सुसंगत जानकारियों का प्रदर्शन करेगा। इसमें सेवा के लिए समस्त आवश्यक दस्तावेजों का भी उल्लेख होगा। प्रथम अपील, द्वितीय अपील तथा पुनरीक्षण आवदेन के साथ कोई फीस देय नहीं होगी।
प्रार्थी नियत समय सीमा की समाप्ति के तीस दिनों के भीतर प्रथम अपील अधिकारी को अपील कर सकेगा। प्रथम अपील अधिकारी या तो सम्बंधित पदाभिहित अधिकारी को सेवा प्रदान करने का आदेश देगा या फिर अपील को नामंजूर कर देगा। प्रथम अपील अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध ऐसे निर्णय की तारीख से साठ दिनों के भीतर द्वितीय अपील अधिकारी को अपील की जा सकेगी।
पांच सौ से पांच हजार तक शास्ति
जहां द्वितीय अपील अधिकारी की यह राय हो की पदाभिहित अधिकारी वांछित सेवा प्रदान करने में पर्याप्त कारणों से विफल रहा है तो वह पांच सौ से अधिक तथा पांच हजार रुपए से कम की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा।
जहां द्वितीय अपील अधिकारी की यह राय हो की पदाभिहित अधिकारी ने वांछित सेवा प्रदान करने में पर्याप्त कारणों से विलम्ब किया है तो वह दो सौ पचास रुपए प्रतिदिन की दर से शास्ति अधिरोपित कर सकता है जिसकी अधिकतम सीमा पांच हजार रुपए होगी।
जहां द्वितीय अपील अधिकारी की यह राय हो की प्रथम अपील अधिकारी नियत समय सीमा के भीतर अपील का विनिश्चय करने में पर्याप्त कारणों से विफल रहा है तो वह पांचसौ से अधिक तथा पांच हजार रूपए से कम की शास्ति अधिरोपित कर सकेगा। इस राशि को द्वितीय अपील अधिकारी के आदेशानुसार प्रार्थी को प्रतिकर के रूप में दिया जा सकता है।
किसी कार्यालय में नहीं दिखी पालना
अशोक गहलोत सरकार के लिए लोकसभा चुनावों से पहले गुड गवर्नेंस देने के अपने वादे को लागू करने के लिए एक सबसे बड़ा हथियार था। इस कानून की इन तीस दिनों में पालना मात्र करवा देने से लोगों को प्रशासनिक पारदर्शिता के उनके वादे पर विश्वास हो जाता और निचले स्तर के भ्रष्टाचार से परेशान होने वाले लोगों को राहत मिलती।
सिरोही समेत राज्य के अधिकांश् कार्यालयों में न तो इस कानून के तहत दी जाने वाली सेवाओं के बोर्ड लगे हैं और न ही इसमें की जाने वाली शास्ति, समय सीमा और अपील अधिकारियों की कोई सूची। इतना ही नहीं सुनवाई करने वाले कार्मिकों का भी कोई ठिकाना नहीं है। हां, पाली के राजस्थान हाउसिंग बोर्ड के कार्यालय में जरूर ये बोर्ड लगा हुआ दिखाई दिया।
-इनका कहना है…
एक्ट अभी एक्सिस्ट कर रहा है। राज्य स्तर से फिलहाल कोई निर्देश इस कानून के लिए नहीं आए, लेकिन हम अपने स्तर पर ही इसके लिए कार्य कर रहे हैं।
अनुपमा जोरवाल
कलक्टर, सिरोही।