नई दिल्ली। कैंसर समेत 50 से अधिक गंभीर बीमारियों के इलाज में सफलता का परचम लहराने वाली जर्मनी की डॉ. जोहाना बडविग ने अपनी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कीमोथेरेपी और रेडिएशन को शामिल करने से इंकार कर दिया था जिसके कारण सात बार नामित होने के बावजूद उन्हें नोबेल पुरस्कार से वंचित रखा गया, पर आज उनकी चिकित्सा पद्धति से विश्वभर के कैंसर रोगी नया जीवन प्राप्त कर रहे हैं।
स्पेन के मलागा स्थित ‘बडविग सेन्टर’ नेचुरल इंटीग्रेटिड ट्रीटमेंट कैंसर सेंटर है जो डॉ. बुडविग की मूल चिकित्सा पद्धति पर काम करता है। केन्द्र की प्रबंधक एवं प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ कैथी जेनकिंस ने ‘यूनीवार्ता’ से विशेष बातचीत में दावा किया कि कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों से जंग में बडविग चिकित्सा पद्धति सफलतम है। उन्होंने कहा,“पिछले 70 सालों में इस चिकित्सा पद्धति से कई लोगों के जीवन में आशा की किरण नहीं बल्कि ‘जीवन का सूरज’ चमक रहा है लेकिन अफसोस की बात है कि विश्व की बड़ी आबादी बडविग प्रोटोकॉल से अनजान है। विश्वभर में कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं और इसकी चपेट में आने से हर वर्ष लाखों लोगों की दर्दनाक मौत हो रही है। आज कम उम्र के लोगों में ब्रेन कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। आशंका है कि मोबाइल फोन का उपयोग बढ़ जाने से ऐसा हो रहा है। सेल फोन के प्रयोग में आवश्यक हिदायत बरतना अनिवार्य है।”
जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक ओटो एच वारबर्ग ने वर्ष 1923 में कैंसर के मूल कारण की खोज कर ली थी। उन्होंने अपने प्रयोगों से सिद्ध कर दिया था कि सेल्स में ऑक्सीजन की कमी के कारण वे फर्मेन्टेशन की प्रक्रिया से श्वसन क्रिया करने लगते हैं और वे कैंसर सेल्स में परिवर्तित हो जाते हैं। फर्मेन्टेशन प्रक्रिया में लेक्टिक एसिड बनता है जिससे कैंसर में शरीर का पीएच एसिडिक हो जाता है। इस खोज के लिए उन्हें वर्ष 1931 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। डॉ़ वारबर्ग ने संभावना जतायी थी कि सेल्स में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए सल्फरयुक्त प्रोटीन और एक अज्ञात फैट जरूरी होता है परन्तु वह इस फैट को पहचानने में असफल रहे।
डॉ. बडविग ने उनके इस कार्य को आगे बढ़ाया। वर्ष 1951 में डॉ़ बडविग ने पहली बार लाइव टिश्यू में फैट्स को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। इससे सिद्ध हुआ कि ओमेगा-थ्री फैट किस प्रकार विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं, स्वस्थ जीवन के लिए कितने आवश्यक हैं और ट्रांसफैट से भरपूर हाइड्रोजिनेटेड फैट तथा माॅर्जरीन जानलेवा हैं। इस खोज से यह भी स्पष्ट हुआ कि सेल्स में ऑक्सीजन को आकर्षित करने वाला वह रहस्यमय एवं अज्ञात फैट अलसी के तेल में पाया जाने वाला अल्फा-लिनोलेनिक एसिड है जिसे डॉ़ वारबर्ग और कई वैज्ञानिक दशकों से तलाश थी। वर्षों के शोध के बाद डॉ़ बडविग ने अलसी के तेल, पनीर, जैविक फलों और सब्जियों के जूस, व्यायाम, सन बाथ आदि को शामिल करके कैंसर का अपना उपचार विकसित किया।
डॉ. बडविग ने 24 अगस्त 2000 में स्पेन के डॉ़ लोयड जेनकिंस को अपनी चिकित्सा पद्धति और तकनीक से इलाज शुरु करने के लिए सर्टिफाइड दस्तावेज दिया था। डॉ जेनकिंस ने वर्ष 2003 में इस केन्द्र की स्थापना की थी और उसके बाद से बड़ी संख्या में लोग इससे लाभांवित हो रहे हैं। जर्मनी में होलिस्टिक आँकोलॉजिस्ट लोथर हरनाइसे अपने सहयोगी क्लॉस पर्टल के साथ मिलकर 2003 से बडविग केन्द्र को सफलतापूर्वक चला रहे हैं।
डॉ. बडविग 1949 में जर्मन के मंस्टर शहर की ड्रग्स और फैट्स के रसायन अनुसंधान की प्रमुख बनी थी। इस दौरान उन्होंने कैंसर पर काफी अनुसंधान किये और कैंसर के रोगियों के खून में प्लेटलेट अग्रेशन और कुछ हरापन पाया। उन्होंने इसकी एक वजह खून में ऑक्सीजन की कमी को माना। उन्होंने अनुसंधान के नतीजों को इंसानों पर आजमाया। इसके लिए वह अस्पतालों से कैंसर के ऐसे मरीजों को अपनी क्लीनिक पर लेकर आती थी जिन्हें डॉक्टरों ने कुछ माह,कुछ दिन और कुछ पलों का जीवन दिया था। उन्होंने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि अपनी चिकित्सा पद्धति से उन्होंने कैंसर के अंतिम चरण के मरीजों में मात्र तीन माह के अंदर जीवन का नया सवेरा पाया।
कैथी ने एडमिन ऐट बडविगसेन्टर डॉट कॉम (एडीएमआईएन ऐट बीयूडीडब्ल्यूआईजीसीईएनटीईआर डॉट कॉम) पर मेल भेजकर स्पेन के बडविग केन्द्र और चिकित्सा पद्धति की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने की सलाह देते हुए कहा,“इस चिकित्सा पद्धति में खानपान की कुछ विशेष वस्तुओं को प्रतिबंधित करने,फ्लैक्सीड्स ऑयल(अलसी का तेल) तथा कॉटेज ची़ज समेत कई प्राकृतिक आहार और सूरज स्नान ,योग ,ध्यान ,आदि कई नायाब प्राकृतिक तरीकों से कैंसर तथा अन्य गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों का इलाज किया जाता है। सभी प्रकार के कैंसर के चौथे और अंतिम चरण के सैकड़ों मरीजों के ईमेल केन्द्र को लगातार प्राप्त होते हैं। इस पद्धति से इलाज की सूची बहुत लंबी और वैज्ञानिक है। इसे विस्तार से पढ़कर ही समझा जा सकता है।”
उन्होंने कहा, “अमेरिका की किंडली सैंड्रा ने ईमेल भेजकर अपनी नयी जिन्दगी के लिए डॉ़ बडविग और हमारे केन्द्र को धन्यवाद देते हुए कहा कि वह लिखते समय अपने आंसुओं पर नियंत्रण नहीं पा रही हैं और वह चाहती हैं कि जिस तरह उन्होंने कैंसर को मात दी,अन्य लोग भी इस पर विजय प्राप्त करें। वह चाहती हैं कि पूरी दुनिया बडविग चिकित्सा पद्धति से वाकिफ हो सकें। सैंड्रा को फरवरी 2016 में चौथे चरण के ब्रेस्ट कैंसर और बोन मेटास्टेसिस का पता चला था। संयोग से वह बिडविग प्रोटोकॉल के बारे में जानती थीं और इसके बारे में ब्लाॅग भी लिखती थीं। वह तुरंत स्पेन पहुंची और अपना उपचार शुरु किया। उनका 12 अप्रैल 2017 में कैट स्कैन हुआ जिसकी रिपोर्ट देखकर अमेरिका के उनके चिकित्सकों ने कहा कि उनकी हड्डियों में काेई बीमारी नहीं है और ब्रेस्ट सेल्स भी सक्रिय नहीं हैं। उन्होंने नियमित जांच के लिए सैंड्रा को छह माह में बुलाया। इस बार की कैट स्कैन की जांच में डॉक्टरों ने कहा कि थेरेपी काम कर रही है ,हालांकि उन्हें मालूम नहीं था कि वह कौन सी थेरेपी ले रही थीं।”
उन्होंने कहा कि जिस चिकित्सा पद्धति को डॉ. बडविग ने शुरु की थी और उसके उपचार में जिन तरीकों को अपनाया था उसकी नकल की जा रही है लेकिन पद्धति को पूरी तरह से नहीं अपनाये जाने से वांछित लाभ नहीं होता है। कैंसर के बढ़ते मामले पर चिन्ता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा,“मैं चाहती हूं कि जिस तरह सैंड्रा जैसे कई लोगों ने इस चिकित्सा पद्धति की वजह से नया जीवन प्राप्त किया, उसी तरह जिन्दगी की उम्मीद खो चुके लोग बडविग प्रोटोकॉल के ‘सूरज’ से अपने जीवन में उजाला भरें और भरपूर जीयें।”
राजस्थान में कोटा के बडविग केन्द्र के संस्थापक डॉ़ ओम प्रकाश वर्मा पिछले करीब 10 साल से बडविग चिकित्सा पद्धति से इलाज कर रहे हैं। सभी प्रकार के कैंसरों के अंतिम चरण के करीब पांच सौ रोगियों का सफल इलाज करने का दावा करते हुए डॉ़ वर्मा ने कहा,‘‘ यह चिकित्सा प्रणाली सफल होने के साथ-साथ कम खर्चीली भी है। कई स्तर की जांच के बाद रोगी का इलाज शुरु किया जाता है। परिजनों को इलाज की पूरी जानकारी और चिकित्सा उपयोग में लायी जाने वाली सामग्रियों के साथ एक ही दिन में ही घर भेज दिया जाता है। समय-समय पर संपर्क करके रोगी की जानकारी ली जाती है और चिकित्सा सामग्री मुहैया करायी जाती है।”
उन्होंने कैंसर से बचाव के लिए आवश्यक सुझाव देते हुए कहा, “एक से दो टेबलस्पून फ्लैक्ससीड्स का तेल और करीब 25 ग्राम फ्लेक्स सीड्स का नियमित सेवन करना चाहिए।बाजार में मिलने वाले सभी खाद्य पदार्थ ट्रांस फैट्स (बनस्पती और रिफाइंड तेल) से बने होते हैं और से कैंसर के प्रमुख कारकों में से एक हैं, इनसे बचना चाहिए। जंक फूड और बाजार में प्रचलित पेय पदार्थ तो जहर के समान हैं। मोबाइल फोन ,माइक्रोवेव ओवन आदि से निकले वाले खतरनाक मैग्नेटिक रेडिएशन को वैज्ञानिकों ने कैंसर की जननी का नाम दिया है। ”
मोबाइल फोने के अंधाधुंध उपयोग के कारण बढ़ते ब्रेन कैंसर की गंभीर स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा,“ जहां तक हो सके मोबाइल फोन पर लंबी-लंबी बातें नहीं करनी चाहिए। बेहतर होगा कि हम अपने घर यानी लैंड लाइन की ओर लौटें। माइक्रोवेव ओवन को टाटा बाय-बाय करने में समझदारी है। अगर हम डॉ़ बडविग के सिद्धांतो पर चले तो हमें विश्व में एक भी कैंसर अस्पताल की जरुरत नहीं होगी। डॉ़ बडविग ने कहा है कि हमारे सेल्स में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच रही है तो कैंसर की बीमारी हमारे शरीर में सेंध नहीं लगा सकती। सेल्स में ऑक्सीजन का प्रवाह उचित तरीक से पहुंचाने में अलसी और अलसी का तेल बेहद कारगर है।”
(डाॅ़ आशा मिश्रा उपाध्याय )