सबगुरु न्यूज-माउंट आबू। अशोक गहलोत शासन में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा के प्रदेश की नौकरशाही के जनता को उत्पीड़ित करने के बयानों के बाद राजस्थान में अफसरशाही में दो नए शब्द चलन में आये गुड ब्यूरोक्रेसी और बैड ब्यूरोक्रेसी। इससे पहले सिरोही के विधायक संयम लोढ़ा ने तो पूर्व मुख्य सचिव निरंजन आर्य पर ही बदहाल नौकरशाही पर सीधे निशाना साधा था।
बैड ब्यूरोक्रेसी से जयपुर में अशोक गहलोत के मंत्री और विधायक ही नहीं राजस्थान के अंतिम छोर के इलाकों के लोग भी परेशान रहा हैं। पिछले करीब तीन साल से माउंट आबू के लोग भी उपखण्ड अधिकारी पद पर तैनात ऐसे ही ब्यूरोक्रेट्स से परेशान रहे।
लाइब्रेरी में जिला कलेक्टर भंवरलाल और नवनियुक्त उपखण्ड अधिकारी राहुल जैन द्वारा जनसुनवाई के दौरान का व्यवहार देखकर लोग इनके व्यवहार की तुलना माउंट आबू में गहलोत सरकार के दौरान रहे उपखण्ड अधिकरियो से तुलना करने लगे। उनके लिहाज से ये दोनों माउंट आबू के लोगों के लिए गुड ब्यूरोक्रेट की श्रेणी में आये। दोनो के सामने एक प्रतिनिधि मंडल के सदस्य ने तो ये तक कह दिया कि आप लोगों का जनता के प्रति अच्छा व्यवहार देखकर वो वापस जनसुनवाई में लौटे हैं।
– 4 साल सिर्फ लोगों के काम अटकाए
माउंट आबू के लोगों की मानें तो यहाँ के आम आदमी की समस्याओं के प्रति संवेदना रखने वाला अंतिम गुड ब्यूरोक्रेट जो यहाँ थे वो थे ओला। उनके कार्यकाल के बाद सरकार बदली।
रविन्द्र गोस्वामी यहाँ के नए उपखण्ड अधिकारी बने, लेकिन, अधिकांश समय कोरोना में निकल गया।
इनके बाद आये गौरव सैनी। यहाँ से बैड ब्यूरोक्रेसी की शरुआत हुई। जिन्होंने माउंट आबू के आम लोगों को 35 साल बाद मिली राहत में सबसे पहला रोड़ा डाला। एक लेटर जयपुर लिखा और उसके बाद उसे फ़ॉलो आप नहीं दिया और बिल्डिंग बायलॉज को अटका दिया। प्रशासनिक काम से ज्यादा राजनीतिक में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा। इन्हीं के समय में नगर पालिका कार्मिक और नगर परिषद जनप्रतिनिधियों की ऑडियो वायरल होने की शुरुआत हुई। इनकी कार्यप्रणाली से यूँ लगा रहा था कि इन्हें सीएमओ ने कांग्रेस का डिब्बा गोल करने को भेजा है। आम जनता की राहत रोक लिमबड़ी कोठी का नियम विरुद्ध काम इन्हीं के कार्यकाल से परवान चढ़ा।
इनके बाद आये अभिषेक सुराणा। महात्मा गांधी की कथित विवादित मूर्ति का अनावरण इन्हीं के समय हुआ। आम आदमी को मरम्मत के लिए कोई खास राहत नहीं दे पाए, बिल्डिंग बायलॉज के ज़ोन मार्किंग की जयपुर से ये भी पास नही करवा पाए। लेकिन, कथित राजनेताओं की लिमबड़ी कोठी का नियमविरुद्ध निर्माण सामग्री इनके कार्यकाल में भी जारी रही।
फिर आये कनिष्क कटारिया। जनसुनवाई के दौरान लोगों की माने तो आईएएस के टॉपर होने की वजह से आम आदमी को लोवर समझने का सबसे बड़ा मुगालता इन्हें ही था। ऐसा ही आम लोगों के प्रति रवैया। लिमबड़ी कोठी को इनके कार्यकाल में 3 से 4 मंजिला बनने दिया गया, ये शांति से बैठे रहे। वहीं सदर बाजार में छत की ऊंचाई 6 इंच बढ़ने पर उसे गिरा दिया।
आम आदमी को मकान के मरम्मत के लिए सब ज्यादा परेशानी इन्हीं के कार्यकाल में उठाने का आरोप लगा। लोगों ने बताया कि इनके पूर्व के एसडीएम के द्वारा दी मरम्मत अनुमतियाँ को खुद जांचने के लिए अटकाया जैसे इनके पूर्व के आईएएस अधिकारी इनसे कम सक्षम हों। काम के प्रति तत्परता इतनी थी कि जुलाई महीने की आरटीआई के तैयार जवाब को इन्होंने नवम्बर में अपने स्थानांतरन के समय भिजवाया जिससे अपील या कोई अन्य समस्या का सामना इनके बाद आने वाला एसडीएम झेले।
कुल मिलाकर पिछले तीन आईएएस अधिकारियों जैसे अधिकारियो की फील्ड पोस्टिंग दिव्या मदेरणा के दावे के अनुसार इस बात की गारंटी है कि इन्हें फील्ड में लगाने वाली सरकार चुनाव में अपने विधायकों की संख्या फॉर्च्यूनर में आने जितनी रखने की मंशा रखती है।
– सुना ही नहीं डिसकस भी किया
माउंट आबू में हुई जनसुनवाई में सबसे ज्यादा मामले पट्टे के आये। फिर निर्माण और मरम्मत के। लेकिन समस्याएं आना इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है इनके निराकरण के लिए तुरन्त चर्चा भी करना। जो जो मामले आ रहे थे जिला कलेक्टर भंवरलाल और माउंट आबू के नवनियुक्त उपखण्ड अधिकारी राहुल जैन आपस में इनके निराकरण के लिए किए जा सकने वाले उपायों पर भी चर्चा करते जा रहे थे।
कुछ समस्याएं तो ऐसी सामने आई जिन्हें न्यूनतम मानवीय आवश्यकता का विषय माना। जिन समस्याओं को पूर्व के तीन उपखण्ड अधिकारी मानने को तैयार नहीं थे उन पर जिला कलेक्टर और नए एसडीएम ने न सिर्फ सुना बल्कि उनके समयबद्ध निराकरण के लिए फॉलो अप करते रहने का भी आश्वासन दिया।