अजमेर। दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को सुबह महिलाओं ने घर के बाहर गोवर्धन और गौ पूजा की, गोबर से बनाए गए गोबर्धन की परिक्रमा की। मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने के बाद गाय पालक को उपहार एवं अन्न वस्त्र देना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है।
पौराणिक कथा में बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर संपूर्ण गोकुल वासियों की इंद्र के कोप से रक्षा की थी। इंद्र के अभिमान को चूर करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है और यही पर्वत यहां बादलों को रोककर वर्षा करवाता है, जिससे कृषि उन्नत होती है। इसलिए गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।
तभी से गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट बनाकर गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है। वहीं एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार, आज के दिन अन्नकूट इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इंद्र के कोप से गोकुलवासियों को बचाने के लिए जब कान्हा ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया तब गोकुल वासियों ने 56 भोग बनाकर श्रीकृष्ण को भोग लगाया था। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों को आशीर्वाद दिया कि वह गोकुल वासियों की रक्षा करेंगे।
गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण के साथ ही धरती पर अन्न उपजाने में मदद करनेवाले सभी देवों जैसे, इंद्र, अग्नि, वृक्ष और जल देवता की भी आराधना की जाती है। गोवर्धन पूजा में इंद्र की पूजा इसलिए होती है क्योंकि अभिमान चूर होने के बाद इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तब कान्हा ने उन्हें क्षमा करते हुए गोवर्धन पूजा में उनकी आराधना का आदेश दिया।
मान्यता है कि गोवर्धन पूजा से पहले बृज में इंद्र पूजा की जाती थी। क्योंकि इंद्र वर्षा कराते हैं और मौसम अनुकूल रख फसलों की पैदावार में सहायता करते हैं। लेकिन द्वापर युग में जब श्रीकृष्णा ने अपनी माता यशोदा को इंद्र पूजा की तैयारियों में व्यस्त देखा, तब कान्हा ने कहा कि अब से हम इंद्रदेव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत और पेड़-पौधों की पूजा करेंगे। क्योंकि इन सभी से हमें जीवन जीने में सरलता होती है।
कान्हा की यह बात मानकर सभी बृजवासियों ने उस साल ऐसा ही किया। इस बात से इंद्र क्रोधित हो गए और मूसलाधार बारिश करा दी। यह कान्हा इंद्र के क्रोध को समध गए और उन्होंने बृजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया। इंद्र ने कुपित होकर लगातार 7 दिन तक मूसलाधार बारिश की लेकिन अंत में उन्हें कान्हा से क्षमा मांगनी पड़ी।