कोटा। देश में नए कृषि कानून के बाद चल रही बहस के बीच भारतीय किसान संघ ने फसल खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाने की मांग की है।
संघ की कोटा में 7 अक्टूबर को सम्पन्न हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नए कृषि कानूनों, किसानों के पराली जलाने और जीएम फसलों को अनुमति देने के प्रयास को लेकर विस्तार से चर्चा हुई।
बैठक में स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का विवरण भी प्रस्तुत किया गया। किसान संघ अपने संगठनात्मक ढ़ांचे को और सुदृढ़ करने के लिए जनवरी 2021 से सदस्यता अभियान चलाएगा। इस बार देश के 6 लाख गांवों में से करीबन 1 लाख गांवों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
किसान संघ के राष्ट्रीय मंत्री मोहिनी मोहन ने बताया सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसानों को फसल अवशेष और पराली उपयोगी बनाने के लिए 2500 रूपए प्रति एकड़ सहयता राशि दी जाए। पंचायत स्तर पर किसानों को प्रशिक्षण देकर मशीनरी पर 50 प्रतिशत छूट दी जाए।
न्यायालय के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों की अवहेलना करते हुए राज्य सरकारें किसानों पर प्रकरण लादकर जुर्माना वसूल कर रहीं हैं। बिना सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालना किए किसानों पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।
इसके लिए भारतीय किसान संघ न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने का मामला सर्वौच्च न्यायालय के पास लेकर जाएगा। बैठक में सरकारों से पराली जलाने के नाम पर वसूल गई अवैध जुर्माना राशि का वापस करने की मांग की गई।
किसान संघ अध्यक्ष आईएन बसवे गौड़ा ने कहा कि जीईएसी द्वारा बीटी बैंगन को बिना चर्चा के अनुमति देने को गलत है। उन्होंने कहा कि यह अनुमति विशेषज्ञ समिति द्वारा तथा उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी करते हुए दी गई है।
गैर कानूनी तरीके से जेनेटिक मोडिफाइड बीजों के प्रसार को रोकने के लिए राज्य और केन्द्र सरकार से मांग की गई। उन्होंने कहा कि 2002 में बीटी कपास की अनुमति मिली, लेकिन यह 2006 में विफल हो गई। जिसके बाद 2006 में बोलगार्ड-2 के नाम पर दूसरी बीटी कपास को लाया गया। यह भी वर्ष 2009 में विफल हो गई।
इसके बावजूद बीटी बैंगन के नाम पर जीएम फसलों को प्रसारित करने का दुस्साहस किया जा रहा है। संसद की स्थाई समिति, सर्वोच्य न्यायालय की एक्सपर्ट कमेटी और देशभर के किसान भी इसका विरोध कर चुके हैं।
मोहिनीमोहन ने बताया कि एचटीबीटी की फसलों से जो रसायन प्रयोग किया जाता है, वह कैंसर का कारण बनता है। जिस खेत में इस रासायनिक ग्लाईफोसेट का प्रयोग किया जाता है, उस फसल को छोड़कर शेष पौधों को नष्ट कर देता है। जिससे जैव विविधता और जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है।
आज तक जितनी भी जीएम फसल आई है, किसी में भी अधिक उपजाऊ करने वाला गुणसूत्र प्रयोग नहीं हुआ है। इन प्रतिबंधित बीजों का निर्माण करने वाले निर्माताओं पर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। इस बीज के नाम पर करोड़ों रूपए का बीज व्यापार किया जा चुका है, वह पैसा भी किसानों को वापस किया जाए।
कृषि कानूनों को लेकर चार प्रस्ताव पारित
केन्द्र सरकार के नये कृषि कानूनों को लेकर किसान संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने चार प्रस्ताव पारित किए हैं। इनमें सरकार द्वारा घोषित उत्पादन को कम से कम से समर्थन मूल्य पर कृषि खरीदी का प्रावधान करने के लिए चौथा कानून बनाए।
व्यापारियों का राज्य और केन्द्र में बैंक सिक्यूरिटी के साथ पंजीयन हो और वह जानकारी सरकारी पोर्टल के माध्यम से उपलब्ध हो। कृषि संबंधी सभी विवादों के लिए स्वतंत्र कृषि न्यायालय की स्थापना हो तथा यह विवाद किसान के जिले में ही निपटाया जाए।
जीवन आवश्यक वस्तु अधिनियम में सुधार करते हुए भण्डारण सीमा पर से सभी निर्बंध हटाए गए हैं। विशेष परिस्थितियों में यह कानून लागू होगा। लेकिन उसमें से प्रस्संस्करण और निर्यातक को दी गई छूट समझ से परे है। इससे उपभोक्ता को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसे तर्कसंगत बनाना होगा।