नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने गुड़िया सामूहिक दुष्कर्म मामले में दोनों दोषियों को 20-20 साल की सजा सुनाई है और 11-11 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायधीश नरेश कुमार मल्होत्रा ने पाॅक्सो एक्ट-6 के तहत दोषी मनोज और प्रदीप को गुरूवार को यह सजा सुनाई।
छह साल पुराने इस गैंगरेप मामले में पीड़िता का केस लड़ रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का ने कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि इस मामले में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी और पीड़िता को 25 लाख रुपए तक का मुआवजा मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि इसलिए वह इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे।
गौरतलब है कि 15 अप्रेल 2013 को दिल्ली के गांधी नगर में मनोज और प्रदीप ने पड़ोस में रहने वाली गुड़िया का अपहरण कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था। दोनों आरोपियों ने गुड़िया के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसके साथ हैवानियत की सारी हदों को पार कर दिया था।
इसके बाद वे उसको मृत समझकर भाग गए थे और इसके दो दिन बाद गुड़िया बेहोशी की हालत में मिली जिसके बाद उसे पुलिस ने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। वहां चले लंबे इलाज के बाद गुड़िया की हालत में सुधार आया था।
गुड़िया गैंगरेप मामले को बीबीए हाई कोर्ट में देगा चुनौती
बचपन बचाओ आंदोलन ने दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत के गुड़िया सामूहिक दुष्कर्म मामले के दोनों दोषियों को 20-20 साल की सजा सुनाने पर ‘गहरी निराशा’ व्यक्त करते हुए इसे उच्च न्यायालय में चुनौती देने का फैसला किया है।
बीबीए के प्रवक्ता संपूर्ण बेहुरा ने कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नरेश कुमार मल्होत्रा की ओर से पाॅक्सो कानून 6 के तहत दोषी मनोज और प्रदीप को गुरुवार सजा सुनाए जाने पर गहरा असंतोष व्यक्त किया है।
बेहुरा ने कहा कि हम सजा की अवधि को लेकर खासे निराश हैं क्योंकि पांच वर्ष की बालिका को बिना किसी दोष के नृशंसता पूर्वक सामूहिक दुष्कर्म के बाद मरने के लिए छोड़ दिया गया और उसे छह प्रमुख सर्जरी से गुजरना पड़ा।
इस मामले में केवल 20 वर्ष की सजा देना न्याय नहीं है बल्कि दोषियों के प्रति नरमी है। आजीवन कारावास की सजा नहीं देकर पॉक्सो कानून का उद्देश्य भी बाधित होता है। यह फैसला पीड़िता केंद्रित न होकर आरोपी केंद्रित है।
छह साल पुराने इस सामूहिक दुष्कर्म मामले में पीड़िता का मुकदमा लड़ रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि इस मामले में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी और पीड़िता को 25 लाख रुपए तक का मुआवजा मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि इसलिए वह इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे।
बीबीए ने कहा कि इस मामले में पीड़िता को सिविल सोसायटी का समर्थन हासिल है लेकिन ऐसी हजारों गुड़िया हैं जिन्हें अब भी न्याय का इंतजार है।