सबगुरु न्यूज। किसी भी कर्म की सिद्धि के लिए चिंतन मनन करना और उसी अनुरूप अपने आप को ढालने के प्रयासों के रास्तो को ढूढना तथा अपने उपलब्ध साधनों को सुरक्षित संरक्षित और संवर्धित करने की योजना को बनाना और उसी अनुरूप व्यवहार करने के लिए मन को एकाग्र कर के आन्तरिक ऊर्जा को जगाना ही गुप्त शक्ति का उदय कहलाता है।
प्रकट शक्ति का उदय तो सामूहिकता से होता है और वह गुप्त शक्ति की आधार शिला पर खड़ी होती है। गुप्त शक्ति के उदय के बिना प्रकट शक्ति अस्तित्व में नहीं आती है।
शिशिर ॠतु का जाता हुआ काल माघ मास का शुकल पक्ष तथा गीष्म ऋतु का जाता हुआ काल आषाढ़ मास का शुक्ल पक्ष यह दोनों ही ऋतु परिवर्तन की पूर्व संध्या होती है और उसके कई प्रभाव पृथ्वी जगत पर पडते हैं।
इन प्रभावों से बचने के लिए व्यक्ति अपने शरीर व कर्म को उसी धारा में बहाता है और अपने अगले सफर के रास्तो के नक्शे को तैयार कर उसी के अनुसार अपने मन को एकाग्र करता है और यही एकाग्रता गुप्त शक्ति को प्रकट कर बदलते हुए ऋतु चक्र के अनुसार व्यवहार करती है।
धार्मिक मान्यताओं में यही गुप्त नवरात्रा कहलाते हैं वह इसलिए कि आने वाले ऋतु चक्र में यह गुप्त शक्ति का उदय व संचय करे और प्रकट नवरात्रा की सामूहिकता में खुशियां मनाए या कार्य सिद्धी का आनंद उत्सव मनाएं। इसलिए चेत्रीय नवरात्रा और शारदीय नवरात्रा प्रकट नवरात्रा कहा जाता है।
दरअसल इन सब का व्यावहारिक सम्बन्ध खेत की जुताई बुआई और नई फसल के अंकुरित होने से है। बीजों को जमीन में गुप्त कर दिया जाता है और उन्हें सुरक्षित संरक्षित और संवर्धित किया जाता है तब ही फसल का उत्पादन होता है और यही प्रकट उत्पादन हमारी खुशियों के आनंद उत्सव मनाता है।
हमारे शरीर रूपी जमीन पर भी कर्म अपनी खेती करता है और आन्तरिक ऊर्जा उस कार्य को अंजाम देतीं हैं और गुप्त नवरात्रा मनाती है और परिणाम स्वरूप फल की प्राप्ति होती है तब मन प्रसन्न हो कर प्रकट रूप में खुशियां मनाता है। यहीं प्रसन्नता प्रकट नवरात्राबन कर फिर ऊर्जा बन जाती है जो सब को दिखाईं देती हैं।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति स्वंय मानव को अपने ऋतु चक्र के परिवर्तन से आन्तरिक ऊर्जा को बढाने के संकेत शरीर को देती है और शरीर ऋतुओं के गुण धर्म के अनुसार ही व्यवहार करता है अर्थात गर्मी की ऋतु में शरीर को ठंडा रखना और सर्दी की ऋतु में शरीर को गर्म रखना तथा वर्षा ऋतु में शरीर की ऊर्जा संतुलित रखता है।
यही शरीर की आन्तरिक ऊर्जा का सृजन कहलाता है जो हर ॠतु का प्रकट लाभ लेता है और यदि शरीर नहीं माने तो वह रोग ग्रस्त हो जाता है। धर्म अदृश्य शक्ति के अदृश्य देव के सहारे मानव को इन ऊजाओ के बारे में बता उसे शक्ति के नवरात्रा के रूप में मनाता है और हर कार्यों की सिद्धि की ओर ले जाता है।
इसलिए हे मानव यह आषाढ़ मास का एक दिन जो अपनी गर्मी से अत्यधिक तपा कर जा रहा है और वर्षा ऋतु का आगाज़ कर रहा है। इस वर्षा ऋतु में शरीर को संतुलित रख तथा उन्ही वस्तुओं का सेवन कर जो शरीर को अनुकूल बनाए रखे अन्यथा बेमौसमी ख़ान पान रहन सहन शरीर की ऊर्जा को बिगाड़ कर बीमार कर देंगे।
वर्षा ऋतु किन बीमारियों को लेकर आएंगी यह गुप्त ही होता है। इसलिए शरीर की ऊर्जा संतुलित रख ताकि आन्तरिक ऊर्जा शक्ति बढे और आने वाले प्रकट नवरात्रा तेरे कर्म का फल प्रदान करें।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर