गुरु पूर्णिमा | गुरु पूर्णिमा के व्रत और पूजन विधि कापूरा विधान हमारे पूर्वजों ने सुनिश्चित किया। इसके अनुसार व्रत और पूजन करने से ही समुचित फल मिलता है। कालान्तर में इसकी अन्य पूजन विधियां अपनी-अपनी सुविधा अनुसार विकसित कर ली गई।
पूजन सामग्री:-
पूजन सामग्री में निम्नलिखित वस्तुएं यथायोग्य होनी चाहिए। दूध, दही, घी, शर्करा(शक्कर), गंगाजल, रोली, मौली, ताम्बूल(पान) , पूंगीफल, धूप, फूल(सफेद कनेर), यज्ञोपवीत, श्वेत वस्त्र, लाल वस्त्र, आक, बिल्व-पत्र, फूलमाला, धतूरा, बांस की टोकरी, आम के पत्ते, अक्षत (चावल) , तिल, जौ, नारियल (पानी वाला), दीपक, कपूर ऋतुफल, नैवेद्य, कलष, पंचरंग, चन्दन, आटा, रेत, समिधा, कुश, आचार्य के लिए वस्त्र, शिव-पार्वती की मूर्ति दूब, आसन आदि।
पूजन विधि:-
पूजन योग्य आचार्य से ही करवाना चाहिए। प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आचार्य के दिशा-निर्देश के अनुसार किसी पवित्र स्थान पर आटे से चौक पूर कर केले का मण्डप बनाएं। उस मंडप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करे। यह कार्य आचार्य भी संपन्न कर सकता है। इसके बाद नये कपड़े पहन कर आसन पर पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठकर देशकाला आदि के उच्चारण के साथ हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
इसके बाद गणेश जी का आवाहन व पूजन शुरू करें। वरुणा आदि देवों का आवाहन करके कलश पूजन करें। चन्दन आदि समर्पित करें। घण्टी बजायें। गन्ध अक्षत समर्पित करके द्वारा घण्टी एवं दीपक(दीये) को नमस्कार करें।
इसके बाद इस मंत्र का पूजन करे :-
“ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः।”
मन्त्र का उच्चारण करके पूजन सामग्री एवं अपने ऊपर जल छिड़कें। इन्द्र आदि अष्टलोकपालों का आवाहन कर पूजन करें।
इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए शिव जी को स्नान करायें –
“मन्दार मालाकुलिजालकायै, कपालमालाकिंतशेखराय।
दिव्याम्बरायै च सरस्वती
रेवापयोश्णीनर्मदाजलैः।
स्नापितासि मया देवि तेन शान्ति पुरुष्व मे।।”
इसके उपरांत इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए पार्वती जी का जलाभिषेक करना चाहिए –
“नमो देव्यै महादेव्यै सततम नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्मताम्।।”
इतना सब करने के बाद पंचोपचार पूजन करें यानि चन्दन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप आराध्य को दिखाएं।
इसके बाद नैवेद्य चढ़ाकर आचमन करायें। हाथों के लिए उबटन समर्पण करें। तदोपरांत सुपारी अर्पण करें। दक्षिणा भेंट करें। नमस्कार करें।
इसके बाद उत्तर की ओर निर्माल्य का विसर्जन करके महाअभिषेक करें।
सुन्दर वस्त्र समर्पण करें और यज्ञोपवीत धारण करायें। चन्दन, अक्षत और सप्तधान्य समर्पित करें।
इसके बाद हल्दी, कुंकुम, मांगलिक सिंदूर आदि अर्पण करें। ताड़पत्र यानि भोजपत्र कण्ठ की माला आदि समर्पित करें।
सुगन्धित पुष्प चढ़ायें तथा धूप दें। दीप दिखाकर नैवेद्य समर्पित करें।
फिर हाथ-मुख धुलाने के लिए जल अर्पित करें। चन्दन अर्पित करें। नारियल तथा ऋतुफल चढ़ायें। ताम्बूल सुपारी और दक्षिणा द्रव्य चढ़ायें।
कपूर की आरती करें और पुष्पांजलि दें। जिस आचार्य ने पूजन करवाया है उन्हें बांस की टोकरी में वस्त्र, फल, नैवेद्य, यथायोग्य दक्षिणा देकर उन्हें भोजन कराने के बाद चरण स्पर्श करके विदा करें।
गुरु की पूजा इसलिए जरूरी है क्योंकि उसकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
दूसरी पूजन विधि:-
गुरु पूजन का एक और विधान धर्म आचार्यों ने बताया है। इस पूजन में भी ऊपर बताई गई सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। यथा –
अपने घर के मंदिर में या किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं।
इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें-
“गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये।”
अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें। यदि गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं। उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें। उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद बांस की टोकरी में वस्त्र, फल, मिष्ठान, और यथायोग्य दक्षिणा देकर पैर छूकर विदा करें।
तीसरी पूजन विधि:-
सबसे पहले भगवान विष्णु की अराधना करें। इसके बाद घर के मुख्य द्वार को आम के पत्तों से सजाएं।
भगवान सत्यनारायण की पूजा के लिए वेदी का निर्माण कर उसे सिंदूर, चंदन और कुमकुम से सजाएं।
इसके बाद भगवान को पुष्पहार समर्पित करें। वेदी के दोनों ओर केले के पत्ते लगाएं। फल, सूखे मेवे,सुपारी, विभिन्न अनाज के पकवान, पान के पत्ते चढ़ाएं।
पूजा के अंत में वेदी के सामने खड़े होकर आरती करें और भगवान का आशीर्वाद लें।
व्रत में चावल, नमक और अनाज से बनी कोई चीज न खाएं। चांद देखने के उपरांत उपवास तोड़ें।