हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन की आज जयंती है। इस मौके पर उनके द्वारा लिखी गई रचना ‘मधुशाला’ याद आती है जो कि आज भी युवाओं में प्रेरणा बनी हुई है। हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और कवि हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1960 को इलाहाबाद के पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ के गांव बाबूपट्टी में कायस्थ परिवार में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एमए किया।
कई सालों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापक रहे बच्चन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी के कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएचडी पूरी की थी। उन्होंने कुछ समय आकाशवाणी और विदेश मंत्रालय में भी काम किया था। कवयित्री महादेवी वर्मा, आचार्य रामचंद्र शुक्ला, सुमित्रानंदन पंत और महावीर प्रसाद द्विवेदी से उनकी मित्रता थी। बच्चन को राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया था। हरिवंश राय बच्चन का 18 जनवरी 2003 को निधन हो गया था।
1935 में लिखी थी ‘मधुशाला’
हिंदी साहित्य जगत में हरिवंश राय बच्चन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1935 में छपी ‘मधुशाला’ के लिए बच्चन को आज भी याद किया जाता है। ‘मधुशाला’ हरिवंश जी की उन रचनाओं में से है जिसने उनको साहित्य जगत में एक अलग पहचान दिलाई। ‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’- एक के बाद एक तीन संग्रह शीघ्र आए। बच्चन की कविता को किसी एक युग में नहीं बांधा जा सकता। हरिवंश राय बच्चन की कविता में छायावाद, रहस्यवाद, प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का एक साथ समावेश दिखता है। मधुशाला के कई रंग हैं और उन्ही रंगों में एक रंग सांप्रदायिक सद्भाव का है।
‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ समेत चार आत्मकथाएं भी लिखी थी
हरिवंश राय बच्चन ने चार आत्मकथा लिखीं थी। उनकी पहली आत्मकथा थी- ‘क्या भूलूँ , कया याद करूं’। कहने को तो ये एक आत्मकथा थी लेकिन इसमें उस समय के भारत में रहने वाले लोगों के बारे में बहुत कुछ है। उस समय लोगों के बीच में रिश्ते कैसे होते थे, ये सारी चीज़ें उनकी इस आत्मकक्षा में समझने को मिलती हैं।
बच्चन की दूसरी आत्मकथा ‘नीड़ का निर्माण फिर’, तीसरी आत्मकथा ‘बसेरे से दूर’ और चौथी ‘दशद्वार से सोपान’ है। उन्होंने साहित्य में ‘हलावाद’ युग की शुरूआत की थी।
कुछ इस प्रकार है हरिवंश राय बच्चन की लिखी रचना मधुशाला की चंद लाइने
‘हाथों में आने से पहले नाज दिखाएगा प्याला, अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला, बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले, पथिक न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला’। ‘धर्मग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला, मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला, पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला’।
साहित्य अकादमी और पद्म भूषण से किया गया था सम्मानित
उन्होंने शराब और मयखाने के माध्यम से सौंदर्य और प्रेम के साथ-साथ दुख, पीड़ा मृत्यु जैसे जीवन के तमाम पहलुओं को सामने रखा। उनकी काव्यभाषा बेहद सरल रही जिसके कारण यह आम लोगों की कविता बन गई। उनकी कृति दो चट्टानें को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर उनकी रचना ‘मधुशाला’ आज भी प्रेरणा देती है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार