हाथरस। उत्तर प्रदेश में हाथरस के पीड़ित परिवार ने मंगलवार यहां कहा है कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा वे अपनी बेटी की अस्थियों का विसर्जन नहीं करेंगे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष अपना सोमवार को बयान दर्ज कराने के बाद पीड़ित परिवार देर रात से वापस हाथरस अपने गांव पहुंच गया है। पीड़ित परिवार ने कहा है कि जब तक उनकी बेटी को न्याय नहीं मिल जाता तब तक वे अस्थि विसर्जन नही करेंगे।
पीड़िता के पिता ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हमने न्यायालय के आदेश पर अपना बयान दर्ज कराया है। हालांकि, अंग्रेजी में बातचीत चल रही थी और हम ज्यादा समझ नहीं सकते थे, लेकिन हम यह बता सकते थे कि न्यायालय हाथरस जिला प्रशासन से खुश नहीं था। हम अब न्याय चाहते हैं, जब तक हमें न्याय नहीं मिलेगा बेटी की अस्थि को विसर्जित नहीं करेंगे।
पीड़िता का भाई, जो राष्ट्रीय राजधानी से लौटने पर न्यायलय में अपना बयान दर्ज कराने के लिए लखनऊ गया था, ने कहा कि न्यायालय में हमारी बहिन के दाह संस्कार से संबंधित प्रश्न पूछे थे। न्यायालय ने यह भी पूछा कि क्या हमारी इच्छा के अनुसार दाह संस्कार किया गया था। यह सुनवाई लगभग एक घंटे तक चली और अधिकांश बातचीत अंग्रेजी में हुई, लेकिन न्यायालय निश्चित रूप से जिलाधिकारी से खुश नहीं थी।
उप जिलाधिकारी अंजलि गंगवार, जो हाथरस से लखनऊ और वापस परिवार के साथ थीं, ने कहा कि सभी वाहनों में परिवार के सदस्यों के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाओं, बिस्कुट, चिप्स, पानी की बोतलें और अन्य आवश्यक चीजों का ध्यान रखा गया था। लखनऊ के उत्तराखंड भवन में दोपहर का भोजन बनाया गया था। पीड़ित के परिवार के सदस्यों के लिए पर्याप्त सुरक्षा और आराम की व्यवस्था की गई थी।
दूसरी ओर, हाथरस के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लश्कर भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष पेश हुए। उन्होंने कहा कि जिले में हिंसा से बचने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कथित सामूहिक बलात्कार पीड़िता का आधी रात को अंतिम संस्कार किया गया।
उन्होंने कहा कि परिवार को भड़काने में पीएफआई तथा पत्रकार शामिल होने के पुख्ता सबूत थे। गांव के बाहर असामाजिक तत्वों का भारी जमावड़ा था जो हिंसा पर आमादा थे। साथ ही, शव की स्थिति बिगड़ रही थी। इस परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से सलाह लेने के बाद, मैंने, हाथरस के जिला मजिस्ट्रेट के बतौर रात में पीड़िता का अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया।
जिलाधिकारी ने कहा कि प्रशासनिक पर्यवेक्षण के तहत अंतिम संस्कार करते समय पीड़ित के परिवार को विश्वास में लिया गया था। हिंसा भड़काने के षड्यंत्र पुष्टि करते हुए, जिलाधिकारी ने कहा कि यह भी सामने आया कि एक वेबसाइट ‘जस्टिस फॉर हाथरस’, अपनी भड़काऊ सामग्री के माध्यम से भी हाथरस और आसपास के इलाकों में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रही थी।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री से मिलने के बाद भी परिवार को भड़काने में पीएफआई और कुछ कथित पत्रकारों की भागीदारी की भूमिका के पुख्ता सबूत हैं। पीड़ित परिवार की सभी मांगें सरकार से पूरी की है। राज्य के माहौल बिगाड़ने के लिए पीएफआई के माध्यम से भीम आर्मी को फंडिंग के खुफिया इनपुट भी हैं। कुछ नक्सली संगठनों के बारे में भी जानकारी मिली है जो राज्य में सांप्रदायिक दंगों की साजिश रच रहे थे।
सोमवार को पीड़ित परिवार इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के सामने पेश हुआ। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख दो नवंबर तय की। न्यायाधीश पंकज मिथल और न्यायाधीश राजन रॉय की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई।
न्यायालय में पीड़ित परिवार ने उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के अलावा उत्तर प्रदेश के बाहर मामले को स्थानांतरित करने की मांग की है। पीड़िता के माता-पिता और भाईयो ने अपने बयान दर्ज किए। इसके अलावा अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेश (कानून व्यवस्था), हाथरस के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने न्यायालय में अपने बयान दर्ज कराए। हाथरस से कड़ी सुरक्षा के बीच पीड़िता के पिता, माता और तीन भाइयों को न्यायालय में लाया गया था।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को कथित तौर पर सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट और बलात्कार किया था। पीड़िता ने उपचार के दौरान 29 सितम्बर को दिल्ली के अस्पताल में दम तोड़ दिया था। उसके बाद हाथरस जिला प्रशासन ने रात में उसका दाह संस्कार कर दिया था।
हालांकि, अधिकारियों ने दावा किया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़की के साथ बलात्कार नहीं हुआ था। इस मामले में राज्य सरकार ने हाथरस के पुलिस अधीक्षक, क्षेत्राधिकारी और इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया था।