सीधा कालू मन का चालू | एक समय की बात है एक गांव में एक कालू नाम का नाई था जो कि बहुत चतुर चालाक था। पर दिखता बहुत सीधा जिसकी वजह उसकी मीठी वाणी थी जिस के द्वारा वह हर किसी का मन मोह लेता जो उसकी दुकान पर आता। यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति वहां आता तो उनसे ज्ञान की बातें सुनकर और सुनाकर व कोई पिता आता तो उनसे घर परिवार की बाते कर और कोई नवयुवक हो तो उनसे जवानी भरी बातें कर प्रसन्न करने का प्रयास करता था और वह इसमें सफल भी हो जाता जिसका कारण उसकी चतुराई थी।
लेकिन यदि कोई सीधा व्यक्ति आता तो वह उन्हें फटकार लगाते हुए बात करता था इसलिए कि वह जानता था कि जो व्यक्ति सीधा होगा वह उसकी बात का बुरा नहीं मानेगा। इस तरह वो अपनी कमाई करता था। श्यामू नाम का बालक जो कि बालपन से उसकी दुकान पर जाकर बाल कटवाता वह बहुत ही अच्छा श्रोता था जो सबकी बात बड़े ध्यान से सुना करता और उनका नीरक्षण करता था। पर उस दिन वह नवयुवक बन चुका था जो अब बोलने भी लगा था क्योंकि अब उसे अपनी बात कहने में संकोच नहीं होता था। वह अपने पिता के साथ उसकी दुकान पर आया था और उसके पिता बाहर किसी से बात कर रहे थे
इसलिए कालू ने चालकी के साथ उसके बाल काटते हुए उससे पूछा कि तुम्हे कोई कष्ट तो नहीं हुआ तो श्यामू ने उसे उत्तर दिया हां फिर उसने फटकार लगाते हुए कहा तो बताया क्यों नहीं। पर इसबार श्यामू ने भी चालकी के साथ अपने पिता को आवाज लगाई यह कहते हुए कि कालू ने मेरा कान काट दिया और उसके पिता को लगा था कि वह अब भी सीधा बालक हैं इसलिए वह सच मानकर उसकी तरफ़ दौड़े और देखा कि उसके कान से रक्त निकल रहा था पर उसका कान नहीं फटा था ।और उसके पिता समझ गए कि बात कुछ और है। इसलिए श्यामू के पिता ने तेज आवाज में पूछा कि क्या हुआ कालू तूने क्या कर दिया। कालू बहुत डर गया था उसके हाथ कांपने लगे क्योंकि उसे लगा की आज उसकी हजामत की बारी है।
इसलिए वह उस पल अपनी चालकी को भूल गया और कहा कि उसका कान बहुत धीरे से थोड़ा कट गया उसके डर को देखते हुए उन्होंने अपने पुत्र को उसे माफ़ करने को कहा और श्यामू ने बुद्धिमानी दिखाते हुए उसे माफ़ कर दिया। यह देख कालू का मन शांत हुआ। पर उसे दुःख हुआ था कि आज एक शांत नवयुवक ने उसे डर का एहसास करा दिया। उसकी चतुराई सीधे लोगो के लिए नहीं बल्कि उसके जैसे चतुर लोगों के लिए हैं। इसलिए अब उसने निर्णय लिया कि वह प्रत्येक के साथ अपनी मीठी वाणी का प्रयोग करें।
सारांश- डर का एहसास सब भूला देता है ।
लेखक : शुभम शर्मा