हिन्दू राष्ट्र, आज के राष्ट्रीय परिदृश्य में इस शब्द को सांप्रदायिक कहा जा रहा है। ‘हिन्दू राष्ट्रविरोधी भूमिका’, एक तो राजनीतिक षड्यंत्र है या अज्ञानवश है। कुछ लोग ‘हिन्दू राष्ट्र समाजविघातक है’, एेसे कहकर उसकी पाकिस्तान जैसे इस्लामी राष्ट्र से तुलना करते हैं।
वास्तविक हिन्दू राष्ट्र केवल हिन्दू हितरक्षक संकल्पना नहीं, अपितु राष्ट्रहितैषी, लोककल्याणकारी तथा आदर्श राज्यव्यवस्था का प्रतीक है। हिन्दू राष्ट्र की इसी संकल्पना को समाज में दृढ करने हेतु देश की राजधानी दिल्ली में 21 से 23 सितंबर को उत्तर भारत हिन्दू अधिवेशन हो रहा है।
लोकतंत्र की विफलता स्पष्ट करने वाली वर्तमान राष्ट्रीय स्थिति
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि किसी देश का संविधान कितना भी अच्छा हो, उसे कार्यान्वित करने वाले लोग दुर्बल होंगे तो वह विफल होगा। इसलिए अच्छा संविधान और लोकतंत्र भी काम का नहीं, जबतक उसे निःस्वार्थी, प्रजाहितरक्षक और कर्तव्यपरायण राजनेता और प्रशासक नहीं मिलते। आज राज्यव्यवस्था, शिक्षा, आरोग्य, न्याय व्यवस्था, पुलिस-प्रशासन, कृषि, सुरक्षा और वित्त इन सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का बोलबाला है।
आर्थिक एवं औद्योगिक स्तर पर देखें तो वर्ष 1947 में भारत पर 1 रुपए का भी ऋण अर्थात कर्ज नहीं था, पर आज प्रत्येक भारतीय के सिर पर 53,796 रुपए (मार्च 2016 तक) का ऋण है। 1947 में 33 प्रतिशत से अधिक निर्यात करने वाले भारत का आज का निर्यात घटकर, बहुत थोडा रह गया है। पहले इस देश में 10-20 विदेशी कंपनियां ही होती थीं पर आज उनकी संख्या 4,000 से अधिक है।
विधि और न्याय व्यवस्था की बात करें, तो जिस भारत में पहले सभी जनपदों (जिलों) में शांतिपूर्ण वातावरण होता था, अब उसके 300 से अधिक जनपद अशांत घोषित किए गए हैं।
आज शस्त्रास्त्र के विषय में भारत भले ही आगे हो, सुरक्षाव्यवस्था की स्थिति पर गौर करें तो अपना देश आतंकी और नक्सली गतिविधियां रोकने में विफल रहा है, यह स्पष्ट है। हाल ही में पकडे गए शहरी नक्सलियों पर हो रहे आरोप और सामने आए तथ्य चौकाने वाले ही हैं।
शिक्षा के स्तर पर कॉन्व्हेंट और मदरसों में ईसाई तथा इस्लाम पंथ की शिक्षा दी जाती है। परंतु हिन्दुआें को हिन्दू धर्म की शिक्षा देने पर प्रतिबंध है। देश के विश्वविद्यालयों में सरकारी अनुदान से पढने वाले विद्यार्थियों के मस्तिष्क में वहां के साम्यवादी प्राध्यापक राष्ट्रविरोधी विचार भरते रहते हैं। इससे ये विद्यार्थी निडर होकर भारत तेरे टुकडे होंगे जैसे नारे लगाते हैं।
धर्म के आधार पर सरकारी अनुदान का सूत्र तो हिन्दुआें पर हो रहा अन्याय स्पष्टता से उजागर करता है। हज यात्रा के लिए मुसलमानों को करोडों रुपए सरकारी अनुदान मिलता है। परंतु 12 वर्ष में एक बार लगने वाले कुंभमेले में जाने के लिए रेलभाडा बढा दिया जाता है।
हिन्दुआें के नैसर्गिक हितों की रक्षा पर दृष्टी डालें तो कश्मीरी हिन्दुआें की समस्या अभी भी हल नहीं हुई है। आज भी लाखों कश्मीरी हिन्दू अपने घर लौट नहीं पाए हैं।
हिन्दुआें की रक्षा पर गौर करें, तो दक्षिण भारत में सैकडों हिन्दुआें की निर्मम हत्या की जा रही है। बंगाल तथा केरल में हिन्दुआें के धर्म-परिवर्तन के साथ-साथ उन पर बडी संख्या में अत्याचार किया जा रहा है।
संक्षेप में कहें, तो आज ‘बहुसंख्य हिन्दुआें के लिए कायदा और अल्पसंख्यकों के लिए फायदा-ही-फायदा’, यह धर्मनिरपेक्षता की व्यावहारिक (प्रैक्टिकल) परिभाषा बन गई है साथ ही कुल मिलाकर देखें, तो भारत की 70 वर्ष पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रत्येक क्षेत्र में विफल सिद्ध हुई है।
हिन्दुआें का गला घोंटना
ऐसी परिस्थिति में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को उजागर करने वालों पर अशोभनीय आरोप लगाए जाते हैं। असहिष्णु, बलात्कारी, हिन्दू तालिबानी, भगवा आतंकवादी, अल्ट्रा नेशनलिस्ट, फ्रिंज एलिमेन्ट्स आदि अनेक प्रकार से हिन्दुओं को हीन दृष्टि से देखा जाता है। वर्ष 2015 का दादरी हत्याकांड और उसके बाद मचा असहिष्णुतावाला बवाल कोई भी राष्ट्रप्रेमी नागरिक भुला नहीं सकता।
धर्मनिरपेक्षता की आड में होता हिन्दुओं का विरोध
इस स्थिति को दूसरे परिदृश्य से देखें तो साम्यवाद का समर्थन करने वाले लोग अराजकता के बीज बोने वाले नक्सलवाद के विरोध में केवल चुप्पी ही नहीं साधते अपितु उनके हितों की रक्षा करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं। सेक्यूलर ब्रिगेड जेएनयू में लगाए गए भारत विरोधी नारों के विरोध में अथवा सेना पर पथराव करने वाले और देश की अखंडता के लिए चुनौती बने कश्मीर के राष्ट्रद्रोहियों के विरोध में कुछ नहीं बोलते।
दूसरी ओर ये और ऐसी अन्य राष्ट्रीय समस्याएं सुलझनी चाहिए, इसकी लगन राष्ट्रवादी तथा हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों में ही क्यों दिखाई देती है? सत्यनिष्ठ और तर्कपूर्ण विचार करने की क्षमता रखने वाले प्रत्येक को इसका उत्तर अपने आप मिल जाएगा। ऐसे होते हुए भी बहुसंख्यक हिन्दुआें के देश में हिन्दुआें को ही अन्याय का सामना करना पड रहा है।
धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना
प्रत्यक्ष में सर्वाधिक सहिष्णु, सर्वाधिक सहनशील और सर्वसमावेशकता आदि गुण हिन्दुओं में हैं। वसुधैव कुटुम्बकम की सीख पर प्रत्यक्ष आचरण कर, संसार के सामने आदर्श रखने वाले हिन्दुओं को आतंकवादी कहना दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी स्थिति में हिन्दू राष्ट्र ही आशा की किरण है।
धर्मग्रंथ मेरुतंत्र में लिखा है कि हीनं दूषयति इति हिन्दु इस परिभाषा के अनुसार जो हीन गुणों, अर्थात रज-तम का और इनसे होेने वाले शारीरिक, वाचिक और मानसिक कर्मों का परित्याग करता है, अर्थात सात्त्विक आचरण करता है, वह हिन्दू है। ऐसा व्यक्ति, मैं और मेरा यह संकुचित विचार त्यागकर, विश्व के कल्याण का विचार करता है।
संक्षेप में कहें, तो समाज की उन्नति के लिए बिना भेदभाव के सबका कल्याण करने वाली व्यवस्था ही हिन्दू राष्ट्र है! इस संबंध में हमारे सामने प्रभु श्रीराम का आदर्श धर्मराज्य और छत्रपति शिवाजी का हिन्दवी स्वराज्य ये दो महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
अब किसी को लगेगा कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना राजनीतिक स्तर पर होगी। वास्तव में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना एक शास्त्रीय प्रक्रिया है। वहां केवल सत्य का ही स्थान है। प्रत्यक्ष में यह एक आध्यात्मिक कार्य है तथा धर्माधारित अर्थात सत्य पर आधारित हिन्दू राष्ट्र, हमें अभिप्रेत है। यहां त्याग, नि:स्वार्थ भाव, सत्शीलता आदि दैवी गुणों से संपन्न लोगों की आवश्यकता है। लोकतंत्र में इससे शत-प्रतिशत विपरीत परिस्थिति है। इस पृष्ठभूमि पर हिन्दू राष्ट्र की आकांक्षा सफल होने के लिए हिन्दू समाज का हिन्दू राष्ट्र से संबंधित विचार, उच्चार और आचार भी सर्वत्र एकसमान दिखने चाहिए।
उत्तर भारतीय हिन्दू अधिवेशन के उद्देश्य
इन्हीं कारणों के लिए हिन्दू जनजागृति समिति वर्ष 2012 से अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशनों का आयोजन कर, धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयासरत है। इन अधिवेशनों के माध्यम से वर्तमान स्थिति में भारत के 22 राज्यों के साथ ही बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया इन देशों के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने मिलकर एक वज्र संगठन बना लिया है।
हिन्दू राष्ट्र के विषय को गांव-गांव में पहुंचाने के लिए समिति की ओर से जिलास्तरीय, राज्यस्तरीय तथा प्रांतीय स्तर पर भी अधिवेशन आयोजित किए जाते हैं। इसी के एक भाग के रूप में 21 से 23 सितंबर 2018 की कालावधि में देहली में भारत सेवाश्रम संघ, स्वामी प्रणवानंद मार्ग, श्रीनिवासपुरी में उत्तर भारतीय हिन्दू अधिवेशन का आयोजन किया गया है। इसमें देहली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड इन उत्तर भारत के राज्यों के हिन्दुत्वनिष्ठ सहभाग लेंगे।
इस अधिवेशन से प्रेरणा लेकर, आगामी काल में हिन्दू समाज को भारतभूमि में रामराज्य की अनुभूति देने वाले हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर बल मिले, यह प्रभु श्रीराम के चरणों में प्रार्थना है!
रमेश शिंदे
संपर्क :7021912805
राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति