जयपुर। भारतीय संस्कृति प्रकृति को ईश्वर मानती है। आधुनिक विज्ञान का कितना भी महिमामंडन करें, तब भी उसकी सीमा है। भारतीय तत्त्वज्ञान के अनुसार धर्म और विज्ञान परस्परविरोधी नहीं हैं। प्राचीन भारतीय ऋषियों ने आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया द्वारा विज्ञान के सिद्धांत प्रगट किए इसलिए भारत में शिल्पशास्त्र, अग्नियानशास्त्र, नौकानयनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, गणित, खगोलशास्त्र आदि अनेक शास्त्र अत्यंत उन्नत थे।
परंतु मुगल, अंग्रेज और विदेशी आक्रमणकारियों ने प्राचीन अमूल्य ग्रंथसंपदा नष्ट कर दी, अनेक बाते चुरा लीं, सहस्रों स्थान हडप लिए। स्वतंत्रता के पश्चात ‘मेकाले’ प्रणित शिक्षा व्यवस्था स्वीकार कर प्राचीन ज्ञान की उपेक्षा की गई। आगे चलकर खरा इतिहास और ज्ञान भारतियों तक नहीं पहुंचने दिया।
इस प्राचीन भारतीय विज्ञान-तंत्रज्ञान परंपरा को पुनरुज्जीवित करने की आवश्यकता है। ये विचार हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया।
वे ‘अभियंता दिन’ के उपलक्ष्य में हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित ‘प्राचीन भारत : तंत्रज्ञान में उन्नत भारत’ इस ‘ऑनलाइन’ विशेष परिसंवाद में वे बोल रहे थे। ‘फेसबुक’ और ‘यू-ट्यूब’ के माध्यम से इस परिसंवाद का सीधा प्रसारण किया गया। यह परिसंवाद 60 हजार लोगों ने प्रत्यक्ष देखा तथा 2 लाख 28 हजार लोगों तक यह कार्यक्रम पहुंचा।
प्राचीन भारतीय ज्ञान सिखाए जाने से भारत विश्वगुरु के रूप में पुनर्स्थापित होगा
चार वेद ज्ञान का मूल स्रोत हैं। वेदों में बीजरूप में विद्यमान ज्ञान का विस्तार वेदांग, दर्शनशास्त्र, उपवेद आदि में किया है परंतु दुर्भाग्यवश आज प्राचीन ज्ञानग्रंथ अखंडित रूप में उपलब्ध नहीं हैं। जो प्राचीन ज्ञान उपलब्ध है, वह क्रमिक पाठ्यक्रम में नहीं पढाया जाता। वैसा होने पर भारत विश्वगुरु के रूप में पुनर्स्थापित हो सकेगा।
भारतीय दृष्टि का अभाव, यथार्थ शास्त्र का अज्ञान, दूषित उद्देश्य और विदेशी विचार के कारण आज भारतीय शास्त्र के संबंध में प्रश्न उपस्थित किए जाते हैं। विमानशास्त्र कपोलकल्पित है, ऐसा कुप्रचार किया जाता है परंतु वर्तमान काल में हुए शोध द्वारा भी प्राचीन भारतीय ज्ञान की पुष्टि मिलती है।
प्राचीन भारतीय विज्ञान और तंत्रज्ञान के अभ्यासक तथा लेखक श्री. विजयकुमार उपाध्याय ने बताया है कि, यूरोप में जो वैज्ञानिक उन्नति देखने को मिली है, उसके पीछे का ज्ञान परोक्ष रूप में भारत से ही अरब, पर्शिया मार्ग से यूरोप में पहुंचा है।
जर्मनी से गणितज्ञ और ‘हिन्दू मेथमेटिक्स’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. भास्कर कांबळे ने ‘हिन्दू गणित के ट्रिग्नोमेट्री’ विषय पर जानकारी देते हुए कहा है कि गणित का उद्भव ग्रीस में नहीं, अपितु भारत में ही हुआ है।
विदेशी गणितज्ञों के हजारों वर्ष पहले श्लोक अथवा सूत्र रूप से जानकारी देनेवाले भास्कराचार्य, आर्यभट्ट, माधव, ब्रह्मगुप्त की जानकारी भी डॉ. कांबळे ने दी है। उसी प्रकार सद्गुरु पिंगळेजी ने प्राचीन नौकानयनशास्त्र तथा विजय कुमार उपाध्याय ने इस परिसंवाद में शिल्पशास्त्र संबंधी जानकारी दी।