सबगुरु न्यूज। डूबते सूरज के सामने खडे व्यक्ति की परछाईयां बढ़ जाती है, जबकि उस व्यक्ति के सामने ही सूरज शनैः शनैः डूबता रहता है और कुछ काल के बाद वहां अंधेरा छा जाता है। परछाईयों का अस्तित्व केवल क्षणिक होता है जो कद काठी को बढ़ा कर लोप हो जाती है और व्यक्ति उस अंधकार में खो जाता है जहां फिर रातों का अंधेरा ही होता है।
महाभारत के महायुद्ध में पांडवों के अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसा कौरव सेना विजयी हो गई और अहंकारी बनकर महाभारत के युद्ध को जीतने का शंखनाद बजा दिया। डूबते सूरज ने कौरवों की परछाईयां बड़ा दी ओर उन बढी परछाईयां में वे अपने आपको ही एक मात्र शक्तिशाली योद्धा मान बैठे।
चक्रव्यूह युद्ध में पूर्ण रूप से अनभिज्ञ अभिमन्यु को सबने मिलकर मार दिया। इस विजय को लेकर कोरव बड़े उत्साहित थे, लेकिन वे भूल गए थे कि अभिमन्यु को इस युद्ध का ज्ञान न था ओर उन्हें विजय श्री हासिल हुई। अंत में इन बढ़ी परछाईयां की गलतफहमी में महाभारत के महायुद्ध में कौरव परास्त हो गए।
ऋतुराज बसंत ये समझ नहीं पाया था कि फागुन से मिलनकर आगे क्या व किस दौर से गुजरना पडेगा। बंसत और फाल्गुन का मिलन एक नई रचना को जन्म दे गया और चैत्र मास को गर्मी से झुलसाना शुरू कर दिया। मौसमी बीमारी का आगाज़ करते हुए मृत्यु तुल्य कष्टों से बचने की ओर संकेत करने लगा। उत्साह और उमंग स्वत: ही कम पडने लगी और संयम ने भी अपने पांव जमा लिए।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, प्रकृति की हर ऋतु अपने ऋंगार के साथ आती है और जीव जगत को अपने ही अनुसार व्यवहार करने को उत्साहित करती है। कोई हकीकत को स्वीकार नहीं करता है तो बे मौसम की गुलाल फिर चर्म रोग पैदा कर देती है।
इसलिए हे मानव तेरी कद काठी का भान तो उगता हुआ सूरज ही करवाएगा, डूबता सूरज तो केवल तेरी परछाईयां बढाकर तुझे सांत्वना देकर चला जाएगा। अपने पथ पर आगे बढता सूर्य अपने चक्र को पूरा करने के लिए बेताब होकर नई व्यवस्था में जाने के लिए उत्साहित हो रहा है।
काल का यहीं हिस्सा लोकाचार में चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नया वर्ष कहलाने लग जाएगा ओर बंसत ऋतु, फालगुन मिलन के बाद की शिथिलता से स्वत: ही संयमित होती नौ दिन में अपनी शक्ति फिर एकत्र कर पूर्णता के बाद गंभीर हो आगे बढ़ती हुई नए मिलन के नए जोश से नया वर्ष मनाएगी ओर नई शुरुआत करेगी। इस कारण तू परछाईयों को छोड़ और हकीकत की दुनिया को देख जहां तुझे तेरे कद काठी का भान हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल