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चांद को बैबस देख सूरज भी रो पडा - Sabguru News
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चांद को बैबस देख सूरज भी रो पडा

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चांद को बैबस देख सूरज भी रो पडा

सबगुरु न्यूज। सुरा के नशे में और अप्सराओं के नृत्य में डूबी उस नगरी की दुर्दशा देख रात में जगत की पहरेदारी करता चन्द्रमा बैबस हो गया। उस नगरी का कोई क्षेत्र अछूता ना रहा। सर्वत्र सुरा का साम्राज्य देख धर्म वहां से भाग गया और सत्य मौन होकर सिसक रहा था। संस्कृति को गणिकाओं का ठिकाना बना दिया।

अधर्म और अनीति ने वहां व्यवस्थापक बन अपना कारोबार जमा लिया और कुबेर ने म्लेच्छ लक्ष्मी के द्वार खोल दिए। देव वहां से चले गए और सर्वत्र इलाकों से दैत्यो के डेरे लग गए। कालचक्र समूचे घटनाक्रम का मूक गवाह बन कर इतिहास में लिख रहा था।

यह माजरा देख देवराज इंद्र बोले हे देव गुरू अब तो कुछ उपाय करें नहीं तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और सभी आमजन सत्य और धर्म से मुंह मोड़ लेंगे। देव गुरू बोले हे देवराज यह सब तुम्हारी ही देन है तुम केवल राजा बने रहने के लिए छल, बल, पाखंड सब कुछ कर लेते हो पर भक्ति में लीन रहने और उपासना के स्थान पर तुम सुरा तथा सुंदरी के नशे में डूब जाते हो।

देवराज इंद्र सुनो, इस देवनगरी की दुर्दशा तुमने ही करा दी है। यहां पाताल से आकर दानव सुरा और सुंदरी के नशे में डूब कर चूर हो रहे हैं। देवराज इंद्र बोले हे देव गुरू अब दया करो और कोई उपाय करों क्योंकि रात का चांद बैबस होकर इस अधर्म और अनीति की रखवाली कर रहे हैं और दिन के सूरज की आंखों में आंसू आ रहे हैं कि मैं रोज दिन को इनके झूठे मान प्रतिष्ठा और सम्मान के लगे मेले को देख कर रो रहा हू।

देवगुरु सभी देवों को लेकर ब्रह्मा विष्णु और महेश के पास जाते हैं और वे जगत का संचालन करने वाले सभी देवों को लेकर हिमालय पर्वत पर पहुंच कर दैवी शक्ति की आराधना करते हैं। देवी शक्ति असुरों का नाश करके उस महाशक्तिशाली महिषासुर का अंत कर देतीं हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, ये कहानियां केवल सकारात्मक सोच व नकारात्मक सोच का बताकर व्यवस्था पर लांछन लगाती है। सकारात्मक सोच रखकर भी यदि जहां अनैतिक मूल्यों को बढा दिया जाता है तो वहां संस्कृति की दशा और दिशा दोनों ही पतन का कारण बन जाती है। लूट, खसोट, झूठ, फरेब, लालच और अंहकार मजबूत बनकर संस्कृति का चीर हरण कर देते हैं। अपने कारनामों पर पर्दा डालकर अपनी जमात में शामिल लोगों से अपनी ईज्जत के पट्टे लिखवा लेते हैं।

यह सब कुछ देख नकारात्मक मूल्य को भी शर्म आने लगती हैं और एक दिन नकारात्मक मूल्य ही इनसे संघर्ष कर व्यवस्था में भूचाल ला देते हैं। इसलिए हे मानव तू इस संस्कृति का चीर हरण मत होने दे और दुशासन को जमीदोज कर दे।

सौजन्य : भंवरलाल